हिमालय की गोद से

हिमालय  की  गोद  से
बहुत खुबसूरत है आशियाना मेरा ,है यही स्वर्ग मेरा,मेरु मुलुक मेरु देश

Sunday, May 29, 2011

गढ़वाली कविता : लोकभाषा और संस्कृति



लोक-भाषा -संस्कृति हमरी
मुल्क हिवांला की च शान
बिन भाषा और संस्कृति  का
बतावा  क्या च हमरी पछ्याँण ?

ढोल सागर की संस्कृति जक्ख
खतेंदु   छाई जागर गीतौं कु दुर्लभ ज्ञान
लोक-भाषा बिन वक्ख बतावा
भौल  कन्नू कैकी मुख दिखांण ?

मांगल गीतौं की जक्ख  बोग्दी गंगा
लोक-नृत्य
करद हिमालय कु  सिंगार 
अजर अमर संस्कृति  सांखियुं की
आवा करला यून्की  शौक- संभाल

बीरौं भड़ौं का लग्दिन पंवाडा जक्ख
धरुं धरुं  मा हुन्द उन्कू यशगान
स्वर्ग से भी सुन्दर च धरती हमरी
छोडिक इन्थेय हमल निर्भग्यो
जाण ता आखिर कक्ख  जाण ?

भाषा बचोंला  संस्कृति बचोंला
बचोंला साखियुं पुरणी पछ्याँण
भाषा छोडिकी संस्कृति छोडिकी
क्या लिजाण और कक्ख लिजाण ?

मनखी रे कैरी  सदनी
माँ- भाषा और संस्कृति कु सम्मान
गेड  मारिकी धैरी लै - यूँ बिन
नी च  तेरी कुई  पछ्याँण
नी च तेरी कुई  पछ्याँण

 


रचनाकर :गीतेश सिंह नेगी ,सिंगापूर प्रवास से,सर्वाधिकार सुरक्षित
स्रोत : मेरे अप्रकाशित गढ़वाली काव्य संग्रह  " घुर घुगुती घुर " से  

     

No comments:

Post a Comment