हिमालय की गोद से

हिमालय  की  गोद  से
बहुत खुबसूरत है आशियाना मेरा ,है यही स्वर्ग मेरा,मेरु मुलुक मेरु देश

Saturday, May 14, 2011

गढ़वाली कविता : क्या व्हालू ?

गढ़वाली कविता  : क्या व्हालू  ?

जक्ख रस अलुंण्या राला
और निछैंदी मा व्हाला छंद
कलम होली कणाणि दगडी
वक्ख़ लोक-भाषा और साहित्य कु
क्या व्हालू  ?


जक्ख  अलंकार उड्यार लुक्यां राला 
और शब्दों  फ़र होली शान ना बाच
जक्ख गध्य कु मुख टवटूकु हुयुं रालू
और पद्य की हुईं रैली फुन्डू पछिंडी
वक्ख़  लोक -भाषा और साहित्य कु
क्या व्हालू  ?  


जक्ख जागर ही साख्युं भटेय सियाँ राला
और ब्यो - कारिज मा  औज्जी
दगडी ढोल-दमो अन्युत्याँ  राला
वक्ख़ लोकगीत तब बुस्याँ -हरच्यां हि त राला  
और बिचरा लोग -बाग तब  दिन -रात
वक्ख़ मंग्लेर ही  खुज्याणा  राला
वक्ख़  लोक -भाषा और साहित्य कु
क्या व्हालू  ?
वक्ख़  लोक -भाषा और साहित्य कु
क्या व्हालू  ?



रचनाकार : ( गीतेश सिंह नेगी ,सिंगापूर प्रवास से ,सर्वाधिकार  सुरक्षित )
स्रोत :         ( म्यार ब्लॉग हिमालय की गोद से )

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