हिमालय की गोद से

हिमालय  की  गोद  से
बहुत खुबसूरत है आशियाना मेरा ,है यही स्वर्ग मेरा,मेरु मुलुक मेरु देश

Friday, September 6, 2013

गढ़वाली में अनुदित साहित्य परम्परा

गढ़वाली में अनुदित साहित्य परम्परा 

(साभार : भीष्म कुकरेती )


भीष्म कुकरेती 
   किसी भी भाषा के साहित्य में अनुवाद का महत्वपूर्ण स्थान होता है। अनुवाद से साहित्य को नये नये विषय, नई शैली, नये विचार, नई संस्कृति , अनुभव मिलते हैं।
अनुवाद विषयी साहित्य में कई धारणाएं व सिद्धांत साहित्य में बताये गये हैं जसे अनुवादक को  दोनों भाषा का महति ज्ञान होना आवश्यक है। जिस भाषा  में अनुवाद किया जा रहा है उस भाषा का अनुवादक को पूरा ज्ञान होना चाहिए। अनुवादक को अनुवादित विषय का घन ज्ञान बांछित है। अनुवादक को दोनों भाषाओं में अंतर और सम्बन्ध का ज्ञान भी आवश्यक है। एन्ड्रयु चेस्टरमैन, फिलिप्स कोड ,इतामार इवान जौहर, रोज गाडिज, ई जेंतजलर , टी हरमान्स, जेरमी  मुंडे, नाम फुंग  चैंग, जी टौरी, इंड्रे लीफवेरे , सुसान बासनेट, आदि समीक्षकों ने कई सिद्धांत प्रतिपादित किये और अनुवाद सम्बन्धी सिद्धांतो  की समीक्षा भी की है।      
          गढवाल में प्रिंटिंग व्यवस्था ब्रिटिश काल से आई और गढवाली इस विधा में पारंगत व धनी  भी नही थे तो यह आश्चर्य नही है कि आधुनिक गढ़वाली गद्य की शुरुवात तो अनुदित साहित्य से ही हुयी। गढवाली में अनुदित  साहित्य को निम्न भागों में बंटाना सही होगा:
अ- अन्य भाषा साहित्य का गढवाली में अनुवाद 
ब- गढवाली साहित्य का अन्य भाषा में अनुवाद   
                                अ- अन्य भाषा साहित्य का गढवाली में अनुवाद 
   अन्य भाषाओं का गढ़वाली में अनुदित साहित्य को इस प्रकार विभाजित किया जाना ही श्रेय कर है 
१-अन्य भाषाइ कविताओं का गढ़वाली कविता में अनुवाद   
२- अन्य भाषाइ कविताओं का गढ़वाली गद्य में अनुवाद 
३-अन्य भाषाओं के गद्य व पद्य लोक साहित्य का गढवाली में अनुवाद 
४- अन्य भाषाओं के धार्मिक, आध्यात्मिक  व दार्शनिक साहित्य का   गढवाली में अनुवाद 
५- अन्य भाषाओं की कहानियों का गढवाली में अनुवाद
६- अन्य भाषाओं के नाटक का अनुवाद या नाट्य रूपांतर 
७- अन्य भाषाओं के समाचारों व समाचार पत्र हेतु गढ़वाली में विभिन्न अनुवाद 
८- अन्य भाषाओं की अन्य विधाओं का गढवाली में अनुवाद 
 ऐसा माना जाता है सन  1820 के करीब  क्रिस्चियन मिसनरीयों ने बाइबल का अनुवाद किया था। सन  1876 में 'न्यू टेस्टामेंट' का अनुवाद प्रकाशित हुआ।
 गढ़वाल के प्रथम डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर गोविन्द घिल्डियाल ने संस्कृत शास्त्रीय  पुस्तक 'हितोपदेश' का पांच खंडो में अनुवाद किया जो डिवेटिंग क्लब अल्मोड़ा से 1902 में प्रकाशित हुआ।
                          गढवाली भाषा में काव्यानुवाद 
सन 1920 में कुला नन्द स्वयंपाकी ने 'जर्जर मंजरी' का अनुवाद 'गढ़भाषोपदेस' नाम से छापा   
सन चालीस से पहले बलदेव प्रसाद नौटियाल ने वाल्मीकि रामयण  का 'छाया रामायण ' के नाम से गढवाली में अनुवाद किया 
सन सैंतालीस से पहले तुलाराम शर्मा ने गीता के 'कर्मयोग' भाग का गढवाली में अनुवाद किया  
भोला दत्त देवरानी ने गीता के  कुछ भागों का   गढवाली में अनुवाद किया 
भोला दत्त देवरानी ने कालिदास के मेघदूत का अनुवाद किया जो बाडुळी में छपा। 
सन सैंतालीस से पहले परुशराम थपलियाल ने तुलसी कृत रामयण के कुछ भागों का अनुवाद किया 
अबोध बंधु बहुगुणा  द्वारा सन 1965 में गोविन्द स्रोत्र का 'भज गोविन्द स्रोत्र नाम से किया गया 
'मेघदूत' का अनुवाद 'मेघदूत छान्दानुवाद ' के नाम से सन 1971 में धर्मा नन्द जमलोकी ने  प्रकाशित किया 
गढ़वाली काव्यानुवाद में प्रखर स्वतंत्रता सेनानी आदित्यराम दुदपुड़ी सर्वाधिक योगदान है।  उन्होंने निम्न अनुवाद साहित्य रचा 
1979 में आदित्यराम दुदपुड़ी ने उपनिषद का अनुवाद इशादी उपनिषद के नाम से अनुवाद छपवाया 
1990 में उपनिषदों का अनुवाद 'प्रश्नादि  छ उपनिषद 'के नाम से आदित्यराम दुदपुड़ी का अनुवाद साहित्य प्रकाश में आया 
1991में आदित्यराम दुदपुड़ी ने नीतिशतकम का अनुवाद गढ़ नीतिशतकम नाम से अनुवाद किया  
1991में ही आदित्यराम दुदपुड़ी ने चाणक्य नीति का अनुवाद गढ़ चान्यक  नीति के नाम से प्रकाशित किया 
1992 में आदित्यराम दुदपुड़ी द्वारा विदुर नीति का नौवाद किया गया 
1992 में पन्द्रह उपनिषदों -शिव-संकल्पादि का अनुवाद आदित्यराम दुदपुड़ी ने छापा   
आदित्यराम दुदपुड़ी द्वारा 1993 में छान्दोगेय  उपनिषद का अनुवाद सामने आया 
1993 में वृहदारण्यक   उनिषद का अनुवाद  गढ़ वृहदारण्यक नाम से दुदपुड़ी द्वारा प्रकाशित किया गया 
आदित्यराम दुदपुड़ी  1995 में मनुस्मृति का गढ़ मनुस्मृति का अनुवाद प्रकाशित हुआ 
1987 में डा नन्द किशोर ने श्रीमद भगवत गीता का अनुवाद किया 
डा नन्द किशोर ढौंडियाल ने कुछ उपनिषदों का अनुवाद प्रकाशित किया 
1980 के दरमियान अबोध बंधु बहुगुणा ने टैगोर रचित गीतांजली के कुछ पदों का अनुवाद किया 
1985-87 के करीब पंडित वैदराज पोखरियाल द्वारा गीता का अनुवाद अलकनंदा में श्रीख्लाव्ध प्रकाशित हुआ 
1989-90 में जयदेव  द्वारा गीता का अनुवाद गढ़ ऐना में श्रृंखला बद्ध  प्रकाशित हुआ 
2001 में चिट्ठी में मोहन लाल नौटियाल का गीता के कुछ खंडो का  अनुवाद प्रकाशित हुआ 
2012 में भीष्म कुकरेती ने दार्शनिक शकर रचित आत्मा का अनुवाद नाटक विधा में रस और रस्वादन (रस अर रस्याण )  स्पष्ट करने के लिए किया 
2012 में गीतेश नेगी द्वारा अन्तराष्ट्रीय स्तर के उर्दू , हिंदी व  विदेशी कवियों   काव्यानुवाद इन्टरनेट माध्यम में छपे। गीतेश नेगी का यह कार्य गढवाली भाषा के लिए साहित्यकारों के मध्य अत्त्याधिक सरहनीय कार्य माना गया।  
 गीतेश नेगी ने नवाज देवबंदी (सहारनपुर ), मिर्जा ग़ालिब , कतिल और  निदा फाजली की गजलों का गढवाली में पद्यानुवाद प्रकाशित किया 
सुमित्रा नन्द पन्त के दो कविताएँ मोह और पर्वत प्रदेश में पावस का गढवाली में काव्यानुवाद किया 
सीगफ्राइड सासून की  विश्व युद्ध विभीषिका आधारित  ,विश्वप्रसिध कविता 'द सर्वाइवर्स, हाउ टु  डाई' का अनुवाद कन कै मोरण' नाम से किया 
वाल्ट हिटमैन की कविता 'ओ कैप्टेन ओ कैप्टेन ' का 'ओ कप्तान  ओ कप्तान ' नाम से किया .
नोबेल पुरुष्कार विजेता विजेता जर्मन कवि गुटुर ग्रास की इजरायल समस्या सम्बन्धी कविता 'व्हट  मस्ट बि सेड' का सुन्दर काव्यानुवाद किया 
युवा कवि गीतेश नेगी का प्रसिद्ध कवि रुडयार्ड किपलिंग, अल्फ्रेड टेनिसन, की  कविताओं का अनुवाद सराहनीय है 
                                 लोक कथा अनुवाद 
 आदित्यराम दुदपुड़ी  ने पंचतन्त्र की कथाओं का अनुवाद 'कथा कुसुम ' नाम से प्रकाशित की 
भीष्म कुकरेती ने  पंचतन्त्र के दस कथाओं का अनुवाद गढ़ ऐना में 1989-1900 के मध्य प्रकाशित किये 
भीष्म कुकरेती ने मिश्री, चीनी और जर्मनी लोक कथाओं का अनुवाद 1989-1900  के मध्य गढ़ ऐना में प्रकाशित किये। कुछ कथाएँ इंटरनेट पर भी पोस्ट हुयी हैं  
                         अन्य भाषाओं की कथाओं का गढ़वाली में अनुवाद 
 भीष्म कुकरेती ने जर्मनी , यदीज (प्रवासी यहूदियों की भाषा ), चीनी कथाओं का अनुवाद इन्टरनेट में छपवाया 
भीष्म कुकरेती द्वारा विद्या सागर नौटियाल की हिंदी कथा दूध का स्वाद ' 'का अनुवाद  'दूधो स्वाद ' से किया जो  खबर सार (2012) में प्रकाशित हुई,
भीष्म कुकरेती ने प्रसिद्ध उर्दू कथाकार सदाहत मंटो की कथा 'सौरी ब्रदर' का अनुवाद 'सौरी भुला' नाम से इन्टरनेट माध्यम में प्रकाशित की।  
                अन्य भाषाओं के  नाटकों का गढ़वाली में अनुवाद 
प्रेम लाल भट ने अ नाईट इन इन का अनुवाद ' किया जिसका मंचन 'चट्टी की ek  रात ' से हुआ 
इसी नाटक अ नाईट इन इन का अनुवाद भीष्म कुकरेती द्वारा 'ढाबा की एक रात ' नाम से इन्टरनेट माध्यम में 2012 में प्रकाशित हुआ
राजेन्द्र धषमाना ने मराठी नाटक का अनुवाद 'पैसा ना धेला नाम गुमान सिंह थोकदार' के नाम से किया जिसका मंचन भी हुआ 
कश्मीरी नाटक 'रिहर्शल ' का भी रूपान्तर गढवाली में हुआ और दिल्ली में मंचित हुआ 
कालिदास कृत अभिज्ञान शाकुंतलम का अनुवाद डा पुष्कर नैथाणी    किया जो कोटद्वार में मंचित हुआ 
                 अन्य भाषाओं के समाचारों व समाचार पत्र हेतु गढ़वाली में विभिन्न अनुवाद 

  गढ़वाली भाषा में पहला दैनिक होने का श्रेय 'गढ़ ऐना ' को जाता है जो देहरादून से सन 1987-1991 तक प्रकाशित होता रहा।
 दैनिक समाचार हेतु कई सामग्री अनुवाद करना लाजमी होता है।
गढ़ ऐना की टीम इश्वरी प्रसाद उनियाल (सम्पादक ), क्षितिज डंगवाल, राजेन्द्र जुयाल , प्रकाश धश्माना रोज न्यूज एजेंसी या अन्य  स्रोत्रों से प्राप्त हिंदी , अंग्रेजी समाचारों व लेखों का अनुवाद गढवाली में करते थे और इस तरह गढवाली दैनिक प्रकाशित होता था।
इस तरह के अनुवाद में  में सबसे अधिक योगदान राजेन्द्र जुयाल का रहा है। गढ़वाली साहित्यि राजेन्द्र जुयाल के महान योगदान को सदा याद करता रहेगा 
                            अन्य अनुवाद 
   डा रानी  लिखित गढवाली रंगमंच हिंदी लेख  का भीष्म कुकरेती द्वारा अनुवाद चिट्ठी पत्री व गढवाल सभा के नाट्य महोत्सव  स्मृति पुस्तिका में प्रकाशित हुआ 
                             ब --गढवाली साहित्य का अन्य भाषा में अनुवाद
   
 गढवाली साहित्य का अन्य भाषा में अनुवाद का कार्य छित पुट ही हुआ है।
कन्हया लाल डंडरियाल  की काव्यकृति 'अंज्वाळ पुस्तक का ' का अनुवाद हिंदी में घना नन्द  जदली ने किया  
भीष्म कुकरेती ने कई लोक मन्त्रों और लोक गीतों का भावानुवाद अंग्रेजी में किया जो कि  गढवाली साहित्य की अंग्रेजी में समीक्षा हेतु की गयी 
गिरीश सुंदरियाल का  कविता  संग्रह मौऴयार   में  गिरीश सुंदरियाल की कुछ कविताओं का अंग्रेजी अनुवाद परिशिष्ट में छपा है।
 इस तरह हम पाते हैं की अन्य भाषाओं में संस्कृत काव्य, धार्मिक -आध्यात्मिक -दार्शनिक व नीतगत विषयों का गढ़वाली भाषा में सर्वाधिक अनुवाद हुआ। विदेशी भाषा के साहित्य  का अनुवाद भी अब शुरू हो गया है। आशा की जाती है गढवाली में अनुदित  साहित्य अपनी अलग पहचान  बनाने में सफल होगा 
 Copyright@ Bhishma Kukreti 29/3/2013

Wednesday, July 24, 2013

        बाँध की विभीषिका पर आधारित गढ़वाली कविता त्राहि माम  

                                (BY : Geetesh Singh Negi )

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 गढ़वाली कविता :  "त्राहि माम "

धरती  घैल  च
घैल पोडयूँ असमान
रुणी डाली टूप टूप यखुली
चखुला रिटणा बौल्या समान

रूमुक्ताल प्वडी द्यैली  मा सुबेर की
पंदेरा घाट श्मशान समान
थर्र -थर्र कौंपणी जिकुड़ी कुयेडी
बैठ्युं कक्ख 
लुकैकी मुख सुर्ज घाम

व्हेय गईं   गदेरा रोई रोईऽ  समोदर
रन्डे ग्याई फ्योंली भी ज्वान
लमडयूँ लतपत -लमसट्ट व्हेकि भ्यालूं 
 कक्ख प्यारु  म्यारु  लाल बुराँस

हर्च्यीं मौल्यार फूलोंऽ फर
भौरों पुत्लौं खुण  शोक महान
ढून्गा अब सिर्फ ढून्गा रै गईं
विपदा मा  देब्तौंऽ का भी थान

गलणु ह्युं लाचारी मा द्याखा
जाणु उन्दु काल समान
छित्तर छित्तर व्हे गईं बीज हिमवंती
हे विधाता ! त्राहि माम
                 त्राहि माम
                 त्राहि माम


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 रचनाकार : गीतेश सिंह नेगी ,सर्वाधिकार सुरक्षित

Saturday, March 16, 2013

सखी री याद पिया की आये

                                       "सखी री याद पिया की आये "


सखी री याद पिया की आये 
सावन बिता  ,भादो बिता  
यौवन  बिता जाये
सखी री  याद पिया की आये

बैरन हो गई घडी मिलन की
पल पल युग  सा जाये
सखी री  याद पिया की आये

फूल खिले हैं आँगन उपवन
गीत पपीहा  गाये 
सखी री  याद पिया की आये

अंखिया बरसत  बादल सी अब
कौन इन्हे समझाए 
सखी री  याद पिया की आये

प्यासे  नैना पिया दर्शन  को
झर  झर झरत  ही  जाए
सखी री  याद पिया की आये

पिया बिन बेरंग मेरी होरी
मोहे रंग ना कोई भाये 
सखी री  याद पिया की आये

दीप जले हैं जगमग जग में
मोहे अँधियारा भाये
धूं धूं  करती जलूं विरह में
कोई राह  नज़र ना आये
सखी री  याद पिया की आये

मन के मन्दिर मूरत पिया की
जग रास ना मोहे आये
ध्यान धरुं में निश  दिन पिया का 
उन् बिन्न दिन ना  कोई  जाये 
सखी री  याद पिया की आये

रोग जटिल  है  दवा कठिन है
सखी कुछ तो कहो उपाय 
सखी री  याद पिया की आये

राह तक्कुं  में मारी विरहन की
नज़र पिया ना  आये
सखी री  याद पिया की आये







गीतकार  :गीतेश सिंह नेगी ,हिमालय हिमालय  की गोद से ,सर्वाधिकार सुरक्षित

Sunday, January 13, 2013

आखिर कुछ त बात होलि

              "आखिर कुछ त बात  होलि  "


लग्युं  च ह्युं  हिवालियुं  या फिर  लग्गीं कुयेडी बस्गाल होलि
 मुछियला फिर बागी बण्या छीं  आखिर कुछ त बात  होलि

मनु जब सच  किटकतली  खित हैसणु च झूठ मुख खोली
किल्लेय कुई  फिर भी चुपचाप च बैठ्युं आखिर कुछ त बात  होलि

सुलगणा छीं  लोग
जक्ख  तक्ख उठ्युं धुँवारोळ  द्याखा
लग्गीं  खिकराण सब्बू थेय आखिर कुछ त बात  होलि

 हुयाँ छीं  अपडा ही दुश्मन ,सज्जीं  च गढ़ भूमि कुरुक्षेत्र
लग्गीं  च लडै महाभारत  आखिर कुछ त बात होलि

गर्जणा  घनघोर बादल चमकणी चम-चम चाल भी होलि
किल्लेय मुख उदंकार लुकाणु  च आखिर कुछ त बात होलि


उठणा छीं  कुछ लोग अभी अभी  कै बरसू मा नीन्द  तोड़ीऽ 
मचलू घपरोल भारी भोल जब  आखिर तब कुछ त बात होलि 

यक्ख भी होलि वक्ख  भी होलि अब बस  हकैऽ   बात होलि
इंकलाबी बगत आलू बोडिक उज्यली फिर चिन्गरोंल हर रात  होलि 

सुलगणा  छीं पाहड पुटग  ही पुटग झणी कब भटेय "गीत "
पिल्चली आग जब  पिरूल मा त  फिर आग ही आग होलि

यक्ख भी होलि वक्ख  भी होलि अब बस  हकैऽ   बात होलि
पिल्चली आग जब  पिरूल मा त  फिर आग ही आग होलि
पिल्चली आग जब  पिरूल मा त  फिर आग ही आग होलि  |



स्रोत :अप्रकाशित गढ़वाली काव्य संग्रह "उदंकार " से ,गीतेश सिंह नेगी ( सर्वाधिकार सुरक्षित )

Sunday, January 6, 2013

अलविदा जिंदगी !

                 अलविदा जिंदगी !
 
गमो को सुर बना लिया यादों को तेरी साज  बना लिया
तंग थी जिंदगी सो ख्वाबौं  को तेरी पनाहगाह बना लिया

यु तो अब आलम है रोज ख़ामोशी का और नया कुछ नहीं  
लब्ज़ लगे होठों को तेरे सोच मैने अपनी  आवाज बना लिया

क़दम मेरे अक्सर ठिठक जाते  है आज भी  उस राह पर जहाँ कभी हम थे मिले 

मैं अब भी मिलूंगा बिलखता वहीँ जहाँ  खीचकर लकीर तुमने दरम्यां फासला बना लिया 

बहुत रोया लिपटकर उस रोज वो शख्स पहली बार शायद मुझसे "गीत "
जब मैने कहा अलविदा जिंदगी ! अब दिन तेरी रुक्सत का आ गया
जब मैने कहा अलविदा जिंदगी ! अब दिन तेरी रुक्सत का आ गया


 

 स्रोत :हिमालय हिमालय  की गोद से ,गीतेश सिंह नेगी,सर्वाधिकार सुरक्षित

तन्हा सफ़र



घुप्प अंधेरों  मे कटता  है तन्हा  सफ़र  
 कुछ तो बचा  के उम्मीदों  के उजाले रखो

बहुत उडेंगी सुर्ख फिजाओं में खामोश बातें
जितना हो सके कम हमसे अब फासला रखो

यू  आसां नहीं  मुस्कुराना इस जमाने में प्यार बिन
अक्सर अकेले में भी रोने का  कभी   हौसला रखो

बहुत आयेंगी कयामतें राह एय  मोहबत्त  में  अभी
हो सके तो हुनर आँधियों  में चिराग जगमगाने का रखो

 इश्क से रुस्वाईयां  तुझको ही नहीं दुनिया को भी हैं "गीत "
 मुमकीन है तकरार हो  खुदा  से भी कभी इतना तो कलेजा रखो 
 


स्रोत :   हिमालय की गोद से ,गीतेश सिंह नेगी (सर्वाधिकार सुरक्षित )

Saturday, January 5, 2013

फर्क


       " फर्क "

मेरी तन्हाईयाँ  अब दिल उदास  नहीं करती
खामोश आती हैं तेरी यादें चुपचाप लौट जाती हैं 
अश्कों  की वो अब वो हरपाल बरसात नहीं करती
मेरी तन्हाईयाँ  अब दिल उदास  नहीं करती

मेरे घर अब  भी आते हैं परिंदे प्यार के मानिद
बस खतों  की उनसे हम तुम्हारे अब फ़रियाद नहीं होती

तुम्हारी याद अक्सर आती हैं  बेशक हम तुम्हे याद नहीं करते
हर ख्वाईश हो जाती है मुकम्मल जब से हम ख्वाइशैं नहीं रखते  

इश्क तुमने भी किया हमने भी किया हम  इससे कभी  इनकार नहीं करते
फर्क  इतना  ही रहा  की तुम  इसका कभी जिक्र सरे बाज़ार नहीं   करते

स्रोत : हिमालय की गोद से ,गीतेश सिंह नेगी (सर्वाधिकार सुरक्षित )


ग़ज़ल : खुदा

              " खुदा "

वक्त गुजरता रहा क्या से क्या हो गया
हमने जब भी जिसे चाहा वही  खुदा हो गया

चाहत एय इश्क में  क़त्ल हो गयीं आँखें
फिर कुछ नहीं देखा
जब भी जिसको देखा वही बस फरिश्ता हो गया

गम की स्याह रातौं में रोने से अब क्या फ़ायदा
वक्त की करवटों के रुख से मैं  खुद ही बे-जिया हो गया

वक्त गुजरता रहा क्या से क्या हो गया
हमने जब भी जिसे चाहा वही  खुदा हो गया

मेरे खुदा ने लिख दी तहरीर मेरी अश्कों से उस रोज
 चाहा लिपटकर जब रोना मैने
 और उसने सिर्फ चुप होने का इशारा कर दिया

उसकी यादें  जीनत है  मेरी जिंदगी भर की 
और अब मुझे  तडफ कर नहीं  जीना
मांगता रहा मौत खुदा से यही सोचकर
पर उसने जीना सजा मुकरर्र कर दिया

वक्त गुजरता रहा क्या से क्या हो गया
हमने जब भी जिसे चाहा वही  खुदा हो गया




स्रोत : हिमालय की गोद से ,गीतेश सिंह नेगी  (सर्वाधिकार सुरक्षित)

हिसाब


          " हिसाब "


उम्र कट्टी ग्याई जग्वाल मा ,
जोडिक खैरि कु मेरी हिसाब रख्याँ
तुमल कब्भी कुछ ब्वालू निच ,
ना कुछ मी ही  बोल साकू
बगत आलू  बौडिक फिर ,
सोचिक इत्गा ही तुम ऐथिर
अफ्फु फर   हौसला बाच रख्याँ

जौं बाटों मा छुट दगडू तुम्हरू ,
आज तलक  भी वू सुनसान ही छीं 
कभी ता व्होली मुलाक़ात फिर ,
संभाली कि  कुछ अपडा
पुरणा जज्बात रख्याँ

नी स्याई बरसूं भट्टी ई आँखी ,
रुझी रुझिक  खुदैक बस्गाल व्हेय गईँ
मी सायेद आ भी 
जौलू बौडिक  स्वीणौ मा ,
तुम एक बार कैरिक म्यारु ख्याल त देख्याँ


अस्धारियुं का समोदर मा ,
पीड़ा मेरी अब जब एक बूंदा पाणि सी व्हेय ग्याई
खैर  लगौलू तुम मा फिर भी  अप्डी  ,
कब्भी निकालिक बगत तयार  रख्याँ



ब्याली  तक छाई अणबुझा सवाल जू ,
आज वीह  मि खुण  कन्न जवाब व्हेय गईँ 
 क्या ही  मौलला घौव मेरी जिकड़ी का उन्न त अब
 पर  फिर भी तुम कैरिक  मलहम अप्डी प्रीत कु तयार त  रख्याँ 

 


स्रोत : हिमालय की गोद से ,गीतेश सिंह नेगी (सर्वाधिकार सुरक्षित )

Friday, January 4, 2013

विश्व प्रसिद्ध कविताओं / रचनाओं का गढ़वाली भाषा अनुवाद श्रृंखला :7 (नवाज़ देवबंदी , सहारनपुर )

            

            विश्व प्रसिद्ध  कविताओं / रचनाओं  का गढ़वाली  भाषा  अनुवाद श्रृंखला :7  

                      वो रुलाकर हँस न पाया देर तक (नवाज़ देवबंदी , सहारनपुर )


विश्व प्रसिद्ध कवियौं क़ि  कविताएँ; विश्व प्रसिद्ध कवियौं क़ि कविताओं का एशियाई अनुवादक का अनुवाद ; विश्व प्रसिद्ध कवियौं क़ि कविताओं का दक्षिण  एशियाई अनुवादक का अनुवाद ; विश्व प्रसिद्ध कवियौं क़ि कविताओं का भारतीय  अनुवादक का अनुवाद ; विश्व प्रसिद्ध कवियौं क़ि कविताओं का उत्तर भारतीय  अनुवादक का अनुवाद ; विश्व प्रसिद्ध कवियौं क़ि कविताओं का हिमालयी  अनुवादक का अनुवाद ; विश्व प्रसिद्ध कवियौं क़ि कविताओं का मध्य हिमालयी  अनुवादक का अनुवाद ; विश्व प्रसिद्ध कवियौं क़ि कविताओं का गढ़वाली  अनुवादक का अनुवाद;


रचनाकार परिचय 
उपनाममुहम्मद नवाज़ खान (मूल नाम)
जन्म स्थानदेवबन्द, सहारनपुर, उत्तरप्रदेश
कुछ प्रमुख
कृतियाँ
पहली बारिश, पहला आसमान (दोनों ग़ज़ल-संग्रह)

वो रुलाकर हँस न पाया देर तक  ,  वू  रुवा की हैंसी नि साकू भण्डया देर तक
जब मैं रोकर मुस्कुराया देर तक     जब मी हैन्सू   रौ  भण्डया देर तक
भूलना चाहा अगर उस को कभी      चाही बिसराणु वे थेय जब भी कब्भी
और भी वो याद आया देर तक       याद वू खूब आयी  भण्डया देर
भूखे बच्चों की तसल्ली के लिये        भूखा नौना की तसल्ली खुणि
माँ ने फिर पानी पकाया देर तक       ब्वेऽल फिर पाणी तचाई अबेर तक
गुनगुनाता जा रहा था इक फ़क़ीर      गीत गान्दा जाणु छाई एक फ़कीर
धूप रहती है ना साया देर तक           घाम रैंन्द ना छैल भण्डया देर तक .......


(मूल रचना : भाई  नवाज देबबंदी ,सहारनपुर ,गढ़वाली अनुवादक ,गीतेश सिंह नेगी )









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स्रोत : हिमालय कि गोद से ,गढ़वाली भाषा अनुवादक : गीतेश सिंह नेगी