हिमालय की गोद से

हिमालय  की  गोद  से
बहुत खुबसूरत है आशियाना मेरा ,है यही स्वर्ग मेरा,मेरु मुलुक मेरु देश

Saturday, May 24, 2014

" दुष्यंत कुमार" की कविताओं का गढ़वाली भाषा अनुवाद श्रृंखला

     विश्व प्रसिद्ध कवियों की कविताओं का गढ़वाली भाषा अनुवाद श्रृंखला
  " दुष्यंत कुमार " को सादर समर्पित उनकी एक कविता का गढ़वाली भाषा अनुवाद
                    अनुवादक : गीतेश सिंह नेगी ,मुम्बई



धर्म / दुष्यंत कुमार



तेज़ी से एक दर्द
मन में जागा
मैंने पी लिया,
छोटी सी एक ख़ुशी
अधरों में आई
मैंने उसको फैला दिया,
मुझको सन्तोष हुआ
और लगा –-
हर छोटे को
बड़ा करना धर्म है ।

अचाणचक्क एक दर्द
मन मा उठ
मिल पेय द्याई ,
छ्वट्टी सी एक खुशी
उठडीयूँ फर आई
मिल वीं थेय फ़ोळ द्याई
मिथेय संतोष मिल
अर लग --
 हर छ्वट्टी धाण थेय
 बडू कन्नू ही धर्म हूँन्द


अनुवादक : गीतेश सिंह नेगी

Thursday, May 22, 2014

अटल बिहारी वाजपेयी जी की कविताओं का गढ़वाली भाषा अनुवाद

     विश्व प्रसिद्ध कवियों की कविताओं का गढ़वाली भाषा अनुवाद श्रृंखला
  " अटल बिहारी वाजपेयी  " जी को सादर समर्पित उनकी एक कविता का गढ़वाली भाषा अनुवाद 


                                अनुवादक : गीतेश सिंह नेगी ,मुम्बई

                       कौरव कौन, कौन पांडव / अटल बिहारी वाजपेयी

कौरव कौन
कौन पांडव,
टेढ़ा सवाल है|
दोनों ओर शकुनि
का फैला
कूटजाल है|
धर्मराज ने छोड़ी नहीं
जुए की लत है|
हर पंचायत में
पांचाली
अपमानित है|
बिना कृष्ण के
आज
महाभारत होना है,
कोई राजा बने,
रंक को तो रोना है|


कु कौरव ,कु पांडव
       

कु कौरव
कु पांडव
भारी सवाल च
द्वी छ्वाड शकुनी कु फैल्युं
कूट जाल  च
धर्मराजळ छ्वाडी नी
अज्जी तलक लत जुआ कि
हर पंचेत मा पंचाली
हूँणी  बेज्जत
बिगैर कृष्ण
आज व्हेली माभारत
क्वी राजा बणयाँ
रंकैऽ जोग  ता बस लिखीं रुणी च |

अनुवादक : गीतेश सिंह नेगी ,मुंबई

विश्व प्रसिद्ध कवियों की कविताओं का गढ़वाली भाषा अनुवाद श्रृंखला : कतील शफ़ाई (1)

विश्व प्रसिद्ध कवियों की कविताओं का गढ़वाली भाषा अनुवाद श्रृंखला
 " कतील शफ़ाई " को सादर समर्पित उनकी एक शायरी  का गढ़वाली भाषा अनुवाद
                    अनुवादक : गीतेश सिंह नेगी ,मुम्बई


मेहरबानी से अगर पेश बी अैंय कुछ लोग
घाम मा लिबटयूँ छैल सी  दे ग्यीं कुछ लोग

मिल अवाज उठै छाई रिवाजौंऽ खिलाफ
बरछा लैकी कूडौं भटेय भैर आ ग्यीं कुछ लोग

जब वू बच ग्यीं त पाणी मा बुगा ग्यीं मिथेय
मारिक फाल गद्नियूँ जू बचाई छाई मिल कुछ लोग

भौंणि का कम नी छाई मुल्क मा म्यारा बी लोग
फिर्बी भैर भटेय मन्गैं कुछ लोगौंल कुछ लोग


कत्गे बार दूबट्टौं मा ज्वनी का मिल "कतील "
ल्वे अप्डी ही पेकि नच्दा द्यखीं कुछ लोग

 
अनुवादक : गीतेश सिंह नेगी ,मुंबई


Wednesday, May 21, 2014

अदम गोंडवी उर्फ रामनाथ सिंह की कविताओं का गढ़वाली भाषा अनुवाद श्रृंखला

अदम गोंडवी उर्फ रामनाथ सिंह को सादर समर्पित उनकी एक कविता का गढ़वाली भाषा अनुवाद 


         अनुवादक : गीतेश सिंह नेगी ,मुम्बई
                  
                     
  (1)

काजू भुने पलेट में, विस्की गिलास में
उतरा है रामराज विधायक निवास में

पक्के समाजवादी हैं, तस्कर हों या डकैत
इतना असर है ख़ादी के उजले लिबास में

आजादी का वो जश्न मनायें तो किस तरह
जो आ गए फुटपाथ पर घर की तलाश में

पैसे से आप चाहें तो सरकार गिरा दें
संसद बदल गयी है यहाँ की नख़ास में

जनता के पास एक ही चारा है बगावत
यह बात कह रहा हूँ मैं होशो-हवास में

गढ़वाली भाषा अनुवाद


काजू भुन्या प्लेट मा ,व्हिस्की गिलास मा
उतरींयूँ च रामराज विधायक निवास मा

छीं पक्का समाजवादी ,चाहे तश्कर व्हा या डकैत
इत्गा च असर देखा ये खद्दर का लिबास  मा

कन्नू कै मनाला खुशी वू आजादी की आखिर
 फ़ुटपाथ मा जू पहुँची अपडा घर की आश मा

पैंसोंऽळ चाहे तुम फिर सरकार गिरा द्यावा
संसद ही बदली ग्याई अब यक्ख बजार मा

जनता खुण बच्युं अब आखिर बिद्रोल ही च बाकी
या बात ब्वल्णु छौं मी  अप्डा पूरा  होश हवाश मा


अनुवादक : गीतेश सिंह नेगी ,मुम्बई