हिमालय की गोद से

हिमालय  की  गोद  से
बहुत खुबसूरत है आशियाना मेरा ,है यही स्वर्ग मेरा,मेरु मुलुक मेरु देश

Sunday, May 22, 2011

गढ़वाली कविता : त्वै बिन



धार मा की जौन
ऋतू बसंती मौल्यार
बग्वाली की धूम
होली का हुल्करा
थोल-मेलौं -कौथिगौं  का ठट्ठा मज्जा
ग्वेरौं का बन्सुल्या गीत
खिल्यां फूल फ़्योंली और बुरांश का
और पन्देरा की बारामसी छुयीं-बत्ता
सबही बैठ्याँ छीं 
बौग मारिक
चुपचाप
त्वै बिन !   

रचनाकार : ( गीतेश सिंह नेगी ,सिंगापूर प्रवास से ,सर्वाधिकार सुरक्षित )          
       

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