हिमालय की गोद से

हिमालय  की  गोद  से
बहुत खुबसूरत है आशियाना मेरा ,है यही स्वर्ग मेरा,मेरु मुलुक मेरु देश

Saturday, April 24, 2010

गढ़वाली कविता : तू कु छेई




तू कु छै ?

एक दिन अच्चाणचक्क
एक ख्याल
म्यारा मन्न मा आई
सवाल यू छाई की
तू कु छै ?
तू कु छै ?
तू कु छै ?

बहुत मगजमारी कार मिल
सुलझाण मा वीं गैड थेय ,
पर मी और भी उल्झदै गौं,
उल्झदै गौं
तबरी म्यारा मोबाइल का मैलबोक्स  मा एक ई - मेल आई
एकस्लेंट जॉब डन गायस ,थैंक्स टू टीम
मी खुश हूँण ही वलू छाई
की अच्चाणचक्क मेरी जिकुड़ी
उबाण लै ग्या
मी डैर गयुं
डैर ! कन्न् डैर ?
क्यांकि डैर ? मी नि जणदू ?
अर फिर वी सवाल ,
ढाक का वी तीन पात
तू कु छै ?
तू कु छै ?
तू कु छै ?

मी बिसरी ग्युं सब कुछ
हर्ची ग्युं एक हैंकी ही दुनिया मा
जक्ख मौज मस्ती छाई ,
मेहनत और संघर्ष की धूप दौड का बाद
कुछ सुखिला स्वीणा रोज जलम लिंदा छाई  
तारीफ़ और बज़दी तालियुं की गडगडाहट थेय सम्लैकी
म्यार मन बसंत का फुलूँ सी खिल ग्या छाई
की अच्चाणचक्क से मी घबराहट हूण बैठी ग्याई
और मी अप्पड़ी जिकुड़ी फर हात धैरिक
अपणाप से ही बोलूंण बैठी ग्युं

तू कु छै ?
तू कु छै ?
तू कु छै ?

मी बुरी तरह से तीस्सै गयुं ,
मी उक्तांण लै ग्युं
और एक ही घुट मा घट्ट से
बिस्लिरी की बोतल खाली कै गयूं
और अख्यूं मा रिंगणी नींद की खुचली मा
समा ग्युं
अर एक बार फिर हर्ची ग्युं स्वीणो मा
मी इन्न लगणु छाई   
की जन्न् मी स्वर्ग मा पहुंच ग्युं
चखुलियुं का गीत म्यार स्वागत कन्ना छाई
मी लगणु छाई  की कत्गा सुंदर च या जगाह
ह्युंचली डांडी ,अर बणी बणी का  फूल
सैद खुद यक्ख विधाता कू बास होलू
मंघरौं कू ठण्डु पाणिल अप्डी तीस बुझाकी
बिरडदा बिरडदा मी
 एक मरघट सी जगाह मा पहुंची ग्युं
बाँझी पुंगडी ,बाँझा स्यार यखुली बाटा
चौक शहतीर खिल्याण,उर्खालिया और पंदेरा
णी  कत्गा  साखियुं भटी सार लग्यां छाई
अच्चाणचक्क एक चीज़ देखि की मी खौलेय ग्युं
मेरी अन्खियूं मा अपणाप ही अस्धरी आण बैठी गईं
चौका का समिणी चुलाह का ध्वार
एक पुरणु चिमटा अर एक टूटयूँ चिलम यकुलांस मा छाई
और उन्कू दगडू दीणू छाई एक पुरणू जंग लग्युं अंग्यठू
जे थेय देखिक मी किटकतली मारिक रुण बैठी ग्युं
अर सम्लौंण लग्गी ग्युं अपडा बाला दिन
मीथेय लग्ग की हो न हो पर सैद
या वी जगाह  छाई  
जक्ख मिल जलम ल्याई छाई
या वी जगाह छाई  
जक्ख मिल पैल्ली दा सांस भोरी छाई
                                      या वी जगाह छाई 
 जक्ख  मिल पैल्ली दा ग्वाई लगाई छाई
या वी जगाह छाई जक्ख कुई मीथेय
गीत और लोरी सुणैकी बुथ्यांदु छाई
या वी जगाह छाई जक्ख 
 मिल पैल्ली दा क ख ग अर
गिनती,पहाडा सिखा छाई
यू वी पुंगडा-स्यरा छाई जू 
म्यारा अपणौ का छाई
जू म्यारा अपणा छाई , 
तब भी जब मी कुछ नि छाई
और सैद अज्जी भी
जबकि मी बिसरी ग्युं की
मी कू छाई
मी कू छाई
मी कू छाई

गढ़वाली गीत : म्यारु उत्तराखंड

देखि की पहाडूं यूँ , कन मन खुदै ग्ये
देखि की पहाडूं यूँ , कन मन खुदै ग्ये
माँ थेय अपड़ी बिसरी ग्यीं , ढूध  प्येकि
अरे माँ थे अपड़ी बिसरी ग्यीं ,दूध प्येकि

बाँजी छीं सगोड़ी ,स्यार रगड़ बणी ग्यीं
परदेशूं मा बस ग्यीं, गढ़ देश छोड़ीकि
माँ थे अपड़ी बिसरी ग्यीं , ढूध प्येकि
अरे माँ थे अपड़ी बिसरी ग्यीं ,ढूध प्येकि


रूणा छीं पुन्गडा ,खिल्याण छलै ग्यीं
रोलूयूँ मा रुमुक पडीं , ग्युइर्र हर्ची ग्यीं,
माँ थे अपड़ी बिसरी ग्यीं ,ढूध प्येकि
अरे माँ थे अपड़ी बिसरी ग्यीं ,ढूध प्येकि

पंदेरा - गदेरा सुक्की ग्यीं ,अब रौई- रौईकि
अरे ढंडयालू बी बौलै ग्याई , धेई लग्गै लग्गैकि
माँ थे अपड़ी बिसरी ग्यीं ,ढूध प्येकि
अरे माँ थे अपड़ी बिसरी ग्यीं ,ढूध प्येकि


बोली भाषा फूक याळ , अंगरेजी फुकी कै
अरे गौं कु पता लापता ह्वै,कुजाणि कब भट्टे
माँ थे अपड़ी बिसरी ग्यीं ,ढूध प्येकि
अरे माँ थे अपड़ी बिसरी ग्यीं ,ढूध प्येकि
ढोल- दमोऊ फुट ग्यीं ,म्यूजिक पोप व्हेय ग्ये
गैथा रोट्टी बिसरी ग्यीं , डोसा पिज्जा
माँ थे अपड़ी बिसरी गयीं ,ढूध पयेई कै
अरे माँ थे अपड़ी बिसरी गयीं ,ढूध पयेई कै


रुणु च केदार खंड ,खंड मानस बोल्यै ग्ये
अखंड छौ रिश्ता जू , खंड खंड व्हेय ग्ये
माँ थे अपड़ी बिसरी ग्यीं ,ढूध पयेई कै
अरे माँ थे अपड़ी बिसरी गयीं ,ढूध पयेई कै

रूणा छीं शहीद ,शहीद "बाबा उत्तराखंडी " होए गेई
नाम धरयुं च उत्तराँचल ,कख म्यारु "उत्तराखंड " ख्वे गेय 
माँ थे अपड़ी बिसरी गयौं ,किल्लेय  तुम दूध पीयें कै
माँ थे अपड़ी बिसरी गयौं ,किल्लेय  तुम ढूध पीयें कै
माँ थे अपड़ी बिसरी गयौं ,किल्लेय  तुम ढूध पीयें कै