हिमालय की गोद से

हिमालय  की  गोद  से
बहुत खुबसूरत है आशियाना मेरा ,है यही स्वर्ग मेरा,मेरु मुलुक मेरु देश

Monday, September 27, 2010

गढ़वाली कविता : जग्वाल





जग्वाल
धुरपाली कु द्वार सी
बस्गल्या  नयार सी
देखणी छीं बाटू आँखी
कन्नी  उलैरया  जग्वाल सी
छौं डबराणू चकोर सी
छौं बौल्याणु सर्ग सी
त्वे देखि मनं तपणु च घाम छूछा
हिवालां का धामं सी
काजोल पाणी मा माछी सी
खुदेड चोली जण फफराणि सी
जिकुड़ी खुदैन्द लाटा
रैन्द घुर घुर घुगुती घुराणी सी

देखणी छीन बाटू  आँखी
कन्नी उलैरया   जग्वाल सी
कन्नी उलैरया   जग्वाल सी
कन्नी उलैरया   जग्वाल सी
                                                             
रचनाकार  :गीतेश सिंह नेगी (सिंगापूर प्रवास से ),दिनांक २७-०९-२०१० 

Saturday, September 25, 2010

"मैं "


                                     


ख्वाब  हूँ मैं ,
ख्यालात हूँ मैं
दिल मैं दफन हूँ सदियौं से जो 
वो छलकता जज्बात हूँ मैं 
दूर हूँ मैं , फिर भी दिलौं के आस पास हूँ 
बिता हुआ लम्हा हूँ कल का  ,
हूँ सुनहरे  भविष्य की आस  मैं 
जानते हैं दुनिया मैं सभी मुझे ,
फिर भी छुपा हुआ एक राज हूँ मैं 
अक्सर  रहता हूँ जश्न - एय- महफ़िल  में ,
पर हकीकत  एक मुर्दा कब्रगाह हूँ मैं 
है अन्धेरौं  मैं आशियाना मेरा ,और लोग कहते हैं की आफताब हूँ मैं 
ख्वाब हूँ मैं ,  ख्यालात हूँ मैं ....................
                       

द्वारा स्वरचित :गीतेश सिंह नेगी   

Wednesday, September 15, 2010

गढ़वाली कविता : त्वे आण प्वाडलू

          "त्वे आण प्वाडलू   "

                         

रंगली बसंत का  उडी  जाण से पैल्ली
फ्योंली  और  बुरांश  का  मुरझाण से पैल्ली
रुमझुम  बरखा  का रुम्झुमाण  से पैल्ली
त्वे  आण प्वाडलू

बस्गल्या गद्नियुं का रौलियाँण से पैल्ली
डालीयूँ मा चखुलियुं का च्खुलियाँण से पैल्ली
फूलों फर भौंरा - पोतल्यूं का मंडराण से पैल्ली
त्वे  आण प्वाडलू

उलैरया  होली का हुल्करा
ख्वै जाण से पैल्ली
दमकदा  भेलौं का बग्वाल  मा
बुझ जाण  से पैल्ली
हिन्सोला  -किन्गोडा अर काफल
पक जाण से पैल्ली
त्वे  आण प्वाडलू

छुंयाल  धारा- पन्देरौं का बिस्गान से पैल्ली
गीतांग ग्वेर्रऊ का गीत छलै जाण से पैल्ली
बांझी पुंगडीयों का ढीस
खुदेड घुगती का घुरांण से पैल्ली
त्वे  आण प्वाडलू


मालू , गुईराल , पयां-कुलैं
बाटू  सार लग्यां
अर धै लगाणा त्वे
खुदेड आग  मा तेरी ,
उन्का फुक्के जाण से पैल्ली
त्वे  आण प्वाडलू

आज चली जा मीसै कत्गा भी दूर
म्यार   लाटा !
पर कभी मीसै मुख ना लुकै
पर जब भी त्वे मेरी  खुद लगली ,
त्वे मेरी सौं
मुंड उठैकी ,
छाती  ठोकिक
अर हत्थ जोडिक
त्वे  आण प्वाडलू
त्वे  आण प्वाडलू
त्वे  आण प्वाडलू

    रचनाकार : "गीतेश सिंह नेगी "  (सिंघापुर प्रवास से ,दिनाक १५-०९-१०) 

Saturday, September 11, 2010

गढ़वाली कविता : आश कु पंछी

                            


आश कु पंछी
मेरु  आश कु  पंछी रीटणु  रैन्द
झणी किल्लेय बैचैन व्हेकि
 किल्लेय डब-डबाणी रैन्दी 
आँखी दिन -रात  
किल्लेय  लग्गीं रैन्द टक्क
बाटू पल्या स्यार   ?
उक्ताणु रैन्द म्यार तिसल्या प्राण
झणी कैक्का बान
सैद मी आज भी कन्नू छौं आश
कि वू कब्भी  त़ा आला  बोडीऽ अपडा घार
वू जू  मेरा छी ,अर  सिर्फ  जौंकी  छों मी
बस  यीं आश मा ही अब
मी कटणू  छों अपड़ा  दिन
कि मतलब  से  ही सैही
पर  वू आला जरूर  कब्बी त
क्या पता से व्हेय जा एकदिन
वूं थे भी मेरी पीड़ा कू ऐहसास
अर वू सैद बौडिक आला
म्यारा ध्वार
अपडा घार
अपडा पहाड़ 


रचनाकार  :गीतेश सिंह नेगी (सिंगापूर प्रवास से ), दिनाक ११-०९-2010