हिमालय की गोद से

हिमालय  की  गोद  से
बहुत खुबसूरत है आशियाना मेरा ,है यही स्वर्ग मेरा,मेरु मुलुक मेरु देश

Tuesday, May 24, 2011

गढ़वाली कविता : घन्डूड़ी

 
मिल दद्दी  मा ब्वाल - दद्दी काश  मी  घन्डूड़ी हुन्दु
उड़  जान्दु फुर्र- फुर्र दूर परदेश भटेय
अपड़ा गौं पहाड़ जनेय
फिर उडणू  रैन्दू वल्या-पल्या सारियुं मा
डालियुं - पन्देरौं मा
खान्दू  काफल -हिन्सोला
किन्गोड़ा- तिम्ला और बेडु
पिन्दू छुंयाल धारा -मगरौं - छंछडौं  कु पाणी
बैठ्युं  रैन्दू छज्जा -तिबारी- खालियाँण  
या फिर चौक - जलोठौं   मा
दद्दी ल बवाल - म्यार लाटा
तेरि भी ब्बा सदनी बकि बात की छुयीं रैंदी
 ब्वलण  से भी बल कबही कुछ हुन्दु चा ? 
दस साल भटेय वू निर्भगी सुबेर शाम 
बिगास बिगास बसण  लग्यां छीं
कक्ख  हुणु  च वू बिगास ?
और कैकु  हुणु चा ?

जरा बतै  धौं 

रचनाकार : गीतेश सिंह नेगी ,सिंगापूर प्रवास से ,सर्वाधिकार सुरक्षित
स्रोत :       म्यार ब्लॉग हिमालय की गोद से   
 
      
         

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