हिमालय की गोद से

हिमालय  की  गोद  से
बहुत खुबसूरत है आशियाना मेरा ,है यही स्वर्ग मेरा,मेरु मुलुक मेरु देश

Sunday, April 12, 2015

विश्व प्रसिद्ध कवियों की कविताओं का गढ़वाली भाषा अनुवाद श्रृंखला : गोपाल दास "नीरज "'



गोपाल दास  "नीरज "'  की ग़ज़ल  का गढ़वाली भाषा अनुवाद
 गोपाल दास  "नीरज "' को सादर समर्पित उनकी एक गजल   का गढ़वाली भाषा अनुवाद
                          अनुवादक : गीतेश सिंह नेगी 

अबा  दौ  सौण  मा शरारत या मी  दगडी व्हाई 
म्यार घार  छोड़िक बरखा सर्या मुल्क मा व्हाई 

आप ना पूछा क्या बीत हम फर सफर मा ?
आज तलक हमरी अफ्फी से भेंट  नि  व्हाई 

हर गलत मोड़ फर टोकणु  च कुई मिथेय 
एक बाच तेरी जब भटेय मी  दगडी व्हाई 

मिल स्वाच की म्यार मुल्कै हालत क्या च 
एक गुनाहगार  दगडी तब्बि मेरी भेंट व्हाई 


अनुवादक : गीतेश सिंह नेगी 

गढ़वाली कविता : वूंल बोलि

" वूंल बोलि "


वूंल बोलि 
भैज्जि जक्ख पांणि नि 
वक्ख पांणि पहुँचौला
जक्ख सड़क नि 
वक्ख गाडी  पहुँचौला 
जक्ख अस्पताल नि 
वक्ख डाक्टर  पहुँचौला
जक्ख इस्कूल  नि 
वक्ख मास्टर पहुँचौला 
जक्ख कुछ नि  च 
ब्वै का सौं वक्ख 
सब्बि  धाणी पहुँचौला
हमर  पाणि कन्नै  पैटि 
हमर सड़क कक्ख बिरड़ 
हमर डाक्टर बीमार च कि व्यबस्था 
हमर नौना फेल हूंयीं  की मास्टर 
ब्वै का सौं हम नि ज़णदा  
पर हाँ 
वू  दिल्ली -देहरादूण  तक पौंची गयीँ 
वूं  मा  सड़क ,पाणि ,गाडी ,डाक्टर ,मास्टर 
 सब्बि धाणी  छीं  आज 
इत्गा त हम बी जाणि ही ग्यो 



रचनाकार : गीतेश सिंह नेगी ,सर्वाधिकार  सुरक्षित 

विश्व प्रसिद्ध कवियों की कविताओं का गढ़वाली भाषा अनुवाद श्रृंखला : कतील शफ़ाई (3)

" कतील शफ़ाई " की शायरी का गढ़वाली भाषा अनुवाद
 " कतील शफ़ाई " को सादर समर्पित उनकी एक शायरी  का गढ़वाली भाषा अनुवाद
                    अनुवादक : गीतेश सिंह नेगी 


कक्खी  कुई औडळ  ना आ म्यारा बिद्रोल से 
डरदु  छौं  मी  त्यारा मुल्क़ै रस्मौं -रिवाज से 

लोग ब्वळदीं एक आदिमल अफ्फी  कैर यालि अप्डी  मौत 
वु बदला लिंणा जाणु  छाई बल ये समाज  से 

लिंण प्वाडलू प्रेम मा वफ़ा छोड़िक काम 

परहेज ये रोग मा  च बढ़िया ईलाज से 


ज्यू ब्वळद  वींका बाटा मा  रौं  खडू 
ये चक्कर मा हम बी गाई  काम -काज से 

क्वी नशा मा नी छुपौन्दू  सच थेय "क़तील "'
शामिल  मी बी छौं ,कछडियूं मा  झाँझीयूँ की आज  से 

अनुवादक : गीतेश सिंह नेगी

Saturday, April 11, 2015

विश्व प्रसिद्ध कवियों की कविताओं का गढ़वाली भाषा अनुवाद श्रृंखला : गोरख पाण्डेय

विश्व प्रसिद्ध कवियों की कविताओं का गढ़वाली भाषा अनुवाद श्रृंखला
 गोरख पाण्डेय की कविता का गढ़वाली भाषा अनुवाद

 
           तुम्थेय डैर च

हज़ार बरस  पुरणु  च वूंकू  गुस्सा 
हज़ार बरस पुरणी च वूंकि नफ़रात 
 मी त बस 
वूंका खत्याँ शब्दोँ थेय 
ढौल अर तुक  मा रलै की  लौटाणु छौं 
पर तुम्थेय डैर च  कि 
आग भड़काणू छौं 

अनुवादक : गीतेश सिंह नेगी   

Thursday, April 9, 2015

विश्व प्रसिद्ध कवियों की कविताओं का गढ़वाली भाषा अनुवाद श्रृंखला : कतील शफ़ाई (2)

               
विश्व प्रसिद्ध कवियों की कविताओं का गढ़वाली भाषा अनुवाद श्रृंखला

" कतील शफ़ाई " की शायरी का गढ़वाली भाषा अनुवाद
अनुवादक : गीतेश सिंह नेगी

                  हे भगवान

दर्दल भोर दे  मेरि  खुचली  हे भगवान
फिर चाहे मिथेय बौल्या बणा दे हे भगवान 

मिल कब्ब मंगिन त्वे  मा चाँद तारा
साफ़ दिल खुला आँखा दे हे भगवान 


सुर्ज सी एक चीज त देखि याल   हमुल 
अच्छेकि अब कुई  सुबेर दे  हे भगवान 

यत धरती का जख्मोँ फर धैर  दे मलहम 

या म्यारु दिल ढुंगु कै दे हे भगवान 

 अनुवादक : गीतेश सिंह नेगी      

Sunday, March 8, 2015

गढ़वाली हास्य व्यंग्य : सरकार या सर्रकार



                                       " सरकार या सर्रकार "

                    हंसोड्या , चुनगेर ,चबोड़्या -चखन्यौर्या - गीतेश सिंह नेगी




अब्बा दा चुनौ कुछ अजीब ही ढंग से हूँणा छीं ,अब जब्कि चुनौ अपडा आखिर चरण मा पहुँची ग्यईं अखबार से लेकि समाचार ,इस्कूल ,दफ्तर,गौं ,बजार,खाल ,धार अर घार घार एक ही चर्चा च ,एक ही सवाल च -
अबकी बार ....... सरकार
प्रधान से लेकि प्रधानमंत्री सब्बि आज चुनौ प्रचार मा लग्यां छीं .लग्यां वी बी छीं जू ना प्रधान छीं अर ना प्रधानमंत्री पर फुका -अफ्फु अफ्फु खुण लग्यां त छीं सब ,हमल पूछ भैज्जी इत्गा रगरयाट क्यांकू ?
बल भुल्ला अब्बा दा सरकार बणाण
हमुल ब्वाल -कै खूण बणाण सरकार ,सरकार त हर पांच साल मा बणदी चा ,अर भैज्जी कब्बि कब्बि त कुबगतळ बी बणि जान्द फिर इत्गा पट्गा पटग किल्लैय ?
बल भुल्ला चाहे कुछ बी बोल अब्बा दा सरकार बणाण ,
मिल ब्वाल ता पिछिल दा हमुल क्या बणाई छाई ? अपडू कपाल ?

अज्जकाल झण्डा से लेकि डंडा अर टुप्ली से लेकि कुर्ता-सुलार सब्बि फुल्ल डिमांड मा चलणा छीं ,कुछ दिनों खूण देश मा रुजगार ही रुजगार च ,च्या से लेकि नोट,बोतल से लेकि मुर्गा बोख्ट्या सब प्रबंध
हुयां छीं बस आपम वोट हूँण चैणु च ,वा बात हैंकि च की भारत जन्न् लोकतांत्रिक देश मा लोकतंत्र आज बी अपडा हक अपडा अध्य्कार खुण बगत बगत थिचौरेणु च ,जुत्ता से लेकि चप्पल ,मर्च से लेकि स्याही
वेका मुख आँखों फर चुलैणी -लपौडेणी चा ,लोग बाग कुछ महीना पैल्ली तक आपदाळ छल्याँ ,डरयां ,सतायाँ ,मरयां छाई अर भ्रष्टाचार बरसूँ भटेय ये मुल्का मन्खियुं फर इन्न चिबट्यूँ च जन्न् मसाण चिबट्यूँ व्हा |
आज सब्बि पार्टी द्वी चीज ही खुज्याणा छीं -मुद्दा अर उन्ह फर चिबट्याँ वोट ,या बात बी सै च की असल मुद्दा गोल छीं ,सब्बि राजनितिक दल मोदी फर अर मोदी कांग्रेस फर पिल्चयाँ छीं |
पर भै हम क्या कन्ना छौ ?
बल भुल्ला हम सरकार बणाण मा लग्यां छौ ,
मिल ब्वाल -किल्लैय ?
बल भुल्ला हम्थेय विकास चैंन्द विकास ,
मिल ब्वाल -कैकु ,
बल द ब्वाला बल ,कन्न् कपाल लग्ग ,बेट्टा इत्गा बी नी पता त्वे थेय ,त्यारू कुछ नी व्हेय सकदु ,त्यारू विकास ता कत्तैय नी व्हेय सकदु
मिल ब्वाल भैज्जी सरकार त बरसूँ भट्टी चलणी च ,अर विकास बी हूँण ही लग्युं च ,वा बात हैंकि च की विकास नेतौं ,मंत्रियों ,प्रमुखों ,प्रधनों ,अफसरों,ठेक्कदरौं अर पटवरियों कु हूँणु च ,
अच्छा त भुल्ला मतलब तुम्हरू कुछ विकास नी व्हाई इत्गा बरसूँ मा ?
ना भैज्जी सिन्न बात नी च ,हमर बुबा विकास खुज्यांद खुज्यांद परदेश तक पहुंची ग्यीन ,हम बी वे थेय वक्ख भटेय खुज्यांद खुज्यांद देश विदेश घूमिक यक्ख बम्बे मा चिबट्याँ छौ पर भै बुरु नी मन्या कक्ख च वू निर्भगी विकास बैठ्यूं मुख लुकैकी ? अर भैज्जी सुणा पिछिला २० बरसूँ मा म्यार -तुम्हर गौं मा क्या क्या विकास व्हेय ? जरा ब्वाला धौं ?
सड़क ,पाणी,अस्पताल -डाक्टर ,मास्टर ता नी पहुंचा पर हाँ पाणी से लेकि डांडी कांठीयूँ -अर जाडा जलडीयूँ ठेक्कदार जरूर पहुँची ग्यीं,

परसी कोटद्वार भटेय अग्रवाल लाला कु फोन अयूँ छाई,बल ठाकुर साब गौंमा पुंगडा बाँझा छीं की चल्दा ?
मिल ब्वाल साब ना वू बाँझा छीं अर ना वू चल्दा छीं ,कुछ चल्दा छीं पर चलणा बिलकुल नी छीं ,जक्खा तक्खी छीं ,ज्यदातर बाँझा ही छीं पर कुल मिलाकी वू कै कामा नी छीं
बल भै तब त एक काम कारा , जू बाँझा छीं वू मी मा बिके दयावा ,
मिल ब्वाल किल्लैय ,क्या कन्न् आपल ?
बल विकास कन्न्
मिल ब्वाल कांडा लग्यां इन्न विकास फर ,ले देकी अब एक ही त सारु बच्युं च हम खुण सुख -दुःखौ बग्त मा अर वे थेय बी तुम विकास क नौ फर ....ना भै ना बिलकुल ना

अज्काल जक्खी देखा तक्खी नेता ,ठेकदार ,अफसर सब्बि विकास फर इन्ना चिबट्याँ छीं की जनता बरसूँ भटेय विकासै मुख दिखेय खुण तरसणी चा ,नेता अज्काल "रोड शो " करण मा लग्यां छीं ,वा बात हैंकि च
कत्गे जग्गाह मा रोड खोजिक बी नी दिखेंदी
ब्याली मी नेता ब्वाडा खुण फोन कैरिक ब्वाल -ब्वाडा तुम बी कुछ " रोड शो " कारा ,
ब्वाडाळ कडकुडू सी व्हेयक ब्वाल - बेट्टा यक्ख बरसूँ भट्टी रोड नी बण साक अर तू " रोड शो " कि उलटी बात कन्नू छे ,तू बी लाटू ही रै ग्ये रे
मिल ब्वाल ब्वाडा -राजनीति मा कत्गे धाणी कब्बि नी हुन्दी पर दिखाण सदनी प्वडदीं
नेता ब्वाडा -जन्कि
मिल ब्वाल -जन्कि विकास ,गरीबी हटावो अर भ्रष्टाचार मिटावो
नेता ब्वाडा -त फिर
ब्वाडा तुम भी कुछ अलग और नै कारा
नेता ब्वाडा -जन्कि
मिल ब्वाल - तुम बी सरया मुल्क मा "रगड शो " "रौल शो " "डांडी-कांठी शो " "खाल-धार शो " कैरा अर धै लगैकि ,धाद मारिक बोल की मी रगड से लेकि रौल्युं ,डांडी-कांठीयूँ अर धार धार मा विकासै इन्ना
थूपड़ा लगोलू की हॉवर्ड अर ऑक्सफोर्ड वला पंगत लगैकि यक्ख विकास ध्यखणाकु आला ,तू बी मोदी थेय सब्बि पार्टियूँ जन्न् चुनौती दे कि अगर छे अप्डी ब्वे कु ता लैड चुनौ म्यार यक्ख भटेय वू बी प्रधनी
कु ,तू बी बोल कि मी रौल्युं रौल्युं ,गाड गदिन्युं विकास कु नै माडल ल्योलूं जू मोदी का गुजरात माडल से बी जबरदस्त व्हालू ,तू बी बोल कि मैम गढ़वालै विकासै इन्न इन्न योजना छीं कि सुणिक सिर्फ
प्रवासी गढ़वली ही दिल्ली ,बम्बे से बौडिक नी आला बल्कि भैरा मुल्का लोग बी रुजगार खुण गढ़वाल-कुमौं मा आला ,कांग्रेस पार्टी नेतौं जन्न् तू भी बोल कि मी म्यार आन्द ही गरीबी गढ़वाल से सदानी खुण
निबट जाली ,बिना सोच्याँ समझ्याँ तू बी बोल दे कि मी ५ रुपया मा पेट भोरिक खाणा प्रबंध करलू ,
चुनौ आयोग से बिना डरयाँ तू बी बोल दे " हर हत्थ बोतल ,हर मुख कच्ची " ,जनता थेय दिखाणा बान तू बी पैल्ली अपडा बखरा हर्चणा कु नाटक कैर अर फिर अपडा पटवारी मा उन्थेय ढून्डवैकि-खुजीवैकि साबित कैर कि हमर यक्ख क़ानून व्यवस्था चौक चौबंद च ,
तू बी मुलायम सिंह ,मायवती ,ममता दीदी , जयललिता अर नितीश कुमार जन्न् बोल कि देश कु अगिल प्रधानमंत्री नरेंदर मोदी ना तू ही बणण वल्लु छे ,
तू बी अरविन्द भाई जन्न् बोडी का खिलाफ अपडा ही घार मा धरना -हड़ताल फर बैठ अर वीं फर भकार लग्गा कि स्या मीथेय विकास करण से रोकण चाणी च ,हरिया दिदा जन्न् तू बी छाती ठोकिक बोल कि मी
यूँ गाड-गदेरौं ,डांडी -काँठीयूँ कु नौनु छौं ,अफ्फु थेय अफ्फी इन्नु पर्वत पुत्र बता कि हेमवतीनंदन बहुगुणा कि आत्मा बी शर्माण लग्गी जाव ,
अफ्फु थेय विकास पुरुष ,रेल पुरुष ,अर क्याफणी क्याफणी जत्गा किस्मौ पुरुष हुन्दी अर जू नी बी हुंदा वू सब्बि बी बता ,
तू बी सुद्दी मुद्दी बोल दे कि मी हर घार अर हर धार अर रौल्युं -रौल्युं तक सड़क अर गाडी ही ना बल्कि ट्रेन लैकी औलू ,बोल दे कि लोग अब घास -पात ,पाणी अर लख्डू खुण बी ट्रेन मा बैठिक ही जाला -ल्याला ,
बोल दे कि मी स्पेशल इकोनोमिक जोन तर्ज फर "लिग्वडा उत्पाद जोन " , " च्यूं उत्पाद ज़ोन " बणोलू ,बोल दे कि मी "काफल पाको योजना " ,बेडू पाको बारामासा योजना " ल्योलू अर ग्रामीण क्षेत्र मा कुटीर उद्योग विकास खुण " छानियुं -छानियुं कच्ची निर्माण योजना " थेय वैध घोषित करलू यांक वास्ता लाइसंस व्यवस्था करलू ,
अब्बी बी बगत च राहुल गांधी से पैल्ली बोल दे कि मी पुंगड मा मोल सरै ,हैल-दंदालू लगै,गोर चरै ,लखुड फडै ,घास कटै ,पूजा पाठ ,औज्जीगिरी थेय मनरेगा मा शामिल कैरिक गढ़वाल मा बेरुज्गरी खत्म करलू अर सर्वश्रेष्ठ गुयेर, घस्येर अर कच्ची निर्माता थेय "राष्ट्रीय गुयेर श्री सम्मान " ,"राष्ट्रीय घस्यारी सम्मान " अर " कंटर श्री सम्मान " से सम्मानित करलू ,
फिर देख मीडिया मा सरया दिन अर सरया रात त्वे फर्र ही चर्चा -खर्चा हूँण ,मोदी से ज्यादा तेरी अर त्यारा "गढ़वाल विकास माडल " कि चर्चा हूँण ,त्वे थेय हराणा कु मोदी ,राहुल गाँधी ,अरविन्द अर सब्बि दल
एकजुट व्हेय जाला अर फिर तू बी छाती ठोकिक नारा दे देई ...अब्बा दा
नेता ब्वाडा : यार बेट्टा यू कुछ जादा ही विकास नी हूँणु चा ,या सरकार च कि सर्रकार

इत्गा सुणिक म्यार बर्मुंड तच्ची ग्याई ,मिल ब्वाल ब्वाडा तू रैण दे फिर ,त्वे से नी बणणी सरकार ,तू प्रधनी कैर बस

Copyright@ Geetesh Singh Negi ,Mumbai 11/05/2014

*कथा , स्थान व नाम काल्पनिक हैं।

[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- महर गाँव निवासी द्वारा जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; कोलागाड वाले द्वारा पृथक वादी मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मल्ला सलाण वाले द्वारा भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; पोखड़ा -थैलीसैण वाले द्वारा धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले द्वारा वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी द्वारा पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक द्वारा विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक द्वारा पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक द्वारा सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक द्वारा सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक द्वारा राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; सांस्कृतिक मुल्य ह्रास पर व्यंग्य , गरीबी समस्या पर व्यंग्य, आम आदमी की परेशानी विषय के व्यंग्य, जातीय भेदभाव विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक बिडम्बनाओं, पर्यावरण विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य, राजनीति में परिवार वाद -वंशवाद पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ग्रामीण सिंचाई विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य, विज्ञान की अवहेलना संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य ; ढोंगी धर्म निरपरेक्ष राजनेताओं पर आक्षेप , व्यंग्य ,अन्धविश्वास पर चोट करते गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला जारी ]

गढ़वाली हास्य -व्यंग्य : जबान



                                           जबान
        (हंसोड्या , चुनगेर ,चबोड़्या -चखन्यौर्या - गीतेश सिंह नेगी ,मुंबई )

ना स्वाणु सरैल ना लारा लत्ता द्यखण मा मासै एक छ्वट्टि सी लुथगी , बिना हड्गी एक लुतपुति सी जान अर नौ देखा धौं बल जबान ,स्वादै चटोर्या अर छ्वीं-बत्थौं खदान ,जब चलद त फिर रुक्दी नि अच्छा -अच्छौं छक्का छुडान्द या जबान ,सरैल चाहे कत्गे कटगुडू किल्लै ना व्हा दिल चाहे कत्गा ही मजबूत किल्लै ना व्हा पर अगर वेमा जबान ना व्हा त सब बेकार ,सैद यी बजह से जबानौ बखानळ वेद ,पुराण ,शास्त्र अर यक्ख तक की अज्कालै व्योपार -व्यवहारै ज्ञान पोथियुं का चट्टा लग्याँ छीं ,हम अज्जी तलक सोच मा प्वडयाँ छौ कि इथ्गी सी लुथगी अर इथगा मान -सम्मान ?

लोग दाँत किटणा छीं ,आँखा दिखाणा छीं ,लड़ै -झगडा मार -पिटै कन्ना छीं ,थिंचा-थिंची हुणी च पर जबान च कि रुकणौ नौ नि लिणी , उलटा और बी चर्चरी-बर्बरी अर खीखरणयाँ हुन्दा जाणि पर एक बात हमरि समझ मा नि आणि च कि आखिर जबानौ यू भभराट -चचराट किल्लै भै ? आखिर कै खुणी कन्नी इथगा पट्गा -पट्गी या जबान ?


जब खोपड़ी घूम अर दिमागै कीड़ा-किदौला कुरंगुला कबलाण बैठीं ता हम यू सवाल लेकि अपड़ा गौंक नै -२ प्रधान झंडू दा की शरण मा चली ग्यो
भुल्ला बल जन्नि जबान तन्नि खाण
मतलब ?
भुल्ला मतलब मीठ्ठू गिच्चळ मीठ्ठू खाण,खट्टू गिच्चळ खट्टू अर कडू गिच्चळ कडू

त भैज्जी तुम्हरू ब्वनौ मतलब च की गिच्चळ जू बी खाण यीं पुट्गी मा जू कुछ बी जाण वू यीं लुथगी भ्वार की खाण ? मतलब कि लोग पुट्गी बान जबान चलाणा छीं ?


बिलकुल भुल्ला लोग बरसूँ भटेय हत्थ -खुट्टौं दगडी जबान बी चलाणा छीं तब्बि यीं दुनिया मा टिक्याँ छीं

त क्या भैज्जी जौंमा जबान नि वूंमा क्या पुट्गी नि ? ,वू क्या खाणा नी छीं ?

ना ना भै सिन्न रुमुक्ताल बी नि च परमेश्वरै यक्ख ,वू या त चुप रैकि खाणा छीं या फिर हैंन्का जबानी सारु फर भरोसू कैकी कुछ ना कुछ जरूर खाणा छीं ,भुखी कुई नि म्वन्नु यक्ख ,


कुछ लोग त इन्ना बी छीं भुल्ला यीं दुनिया मा जू चुप रै की बी खूब खाणा छीं ,समझि ल्यावा वू चुप रैणक नौ फर ही खाणा छीं


अच्छा दिदा ! मी ता सोच्दु की चुप रैण वल्ला बस दुनिया मा सिरफ़ गालि खाणा छीं ,म्यार हिसाबळ त भै जबान चलाण वल्ला आज गौं-बिलोक , सरकार अर ये देश थेय चलाणा छीं ,जौंकी जबान चलणी च वूंकी सब्बि जग्गह चलणी च ,लोग जबान चलै -२ की आज सरकार अर दुनिया तक चलाणा छीं ,बिना जबानै त ये देश मा सरकार बी ढंग मा नि चलदी फिर जिंदगी कन्नक्वे चलण,यकीन नि व्हा ता अपड़ा "मन्नू ब्वाडा " थेय पूछी लियां पर भैज्जी एक बात समाज नि आणि ?
क्या ?

जब जबान पुट्गी बान चलणी च त फिर लोग अप्डी जबान कैथै किल्लै दे दिन्दी ? किल्लै राजा दशरथळ अप्डी जबान द्याई ,किल्लै माभारत मा भीष्म पितामळ मत्स्यराज से लेकि अम्बा अर धृतराष्ट्र थेय अप्डी जबान द्याई?
त भुल्ला सुण -सच बात या च कि आज तलक जैल बी अप्डी जबान कैथै द्याई वेल अप्डी निखणी अफ्फी कार ,राजा दशरथळ अप्डी जबान दे त द्याई पर दिणा बाद वुंकि क्या कु दशा व्हेय यु ता तुम थेय पता ही च दागडा दगडी भुगतण प्वाड हमरा रामचंद्र जी अर सीता माता थेय ,जबान दिणा मा त बिचारा भीष्म पितामा कब्बि पैथर नि राई पर वीं जबान की सजा वुन्थेय अप्डी आखिर सांस तक भोरण प्वाड कि ना ?

अर आखिर मा क्या मिल , कुछ ना कत्त ,अर सुण जबान दिणा मा सदानि पैलू नम्बर यूँ देब्तौं कु रै एक तरफ़ा यी जै कै थेय पैली आँखा बुझिक जबान दिणा रैं अर बाद बाद मा जब युंका सत्ता का चूल हिलण बैठी ग्यीं त यून्ल जबान लींण वल्लै मूण गिडौंण मा बी देर नि कारी अर बदल मा क्या मिल -देबासुर संग्राम

त भैज्जी आपक मतलब जबान दिणु ठीक नी ? पर मिल त सुण या दुनिया जबान फर ही टिकीं च ?

हम त छुटम भटेय यी पढ़ना छौ -

"रघुकुल रीति सदा चली आयी ,प्राण जाई पर बचन ना जाई "

देख भुल्ला समझदार आदिम वू हुन्द जू बग्ता हिसाबळ स्वचद अर चलद ,अगर बचन देकि प्राण बी दिण प्वडदीं ता इन्नु बचन देकी कुई फैदा नि ,
भै अज्कालै हिसाब से ज़रा यीं लैन फर सोच विचार करीला ता तुमल अफ्फी ब्वलण -

"रघुकुल रीति रघुकुल ही रयाँ ,प्राण बचौण त सौं-बचन नि ख्याँ "

अर एक बात टक्क लग्गैकि सुण भै -पैली ता तू अपड़ा बेसिक "कांसेप्ट " दुरुस्त कैर , या दुनिया जबान फर नी चलणी ,सच्ची बतौँ ता इथगा बड़ी भारी दुनिया मासै एक छवट्टि सी लुथगी सार टिक बी नि सकदी चलणा बात त रै दूर

अच्छा ता भैज्जी फिर या दुनिया कन्नक्वे चलणी चा ?

भुल्ला दुनिया जबान से नि बल्कि जबानौ बग्त-बग्त पलटैंण फरकैंण से चलणी च ,संसार मा जत्गा दा जबान दीये ग्याई वे से कै हजार लाख करोड़ दा या जबान रिबिड -रैडी -चिफलिक पलटे ग्याई ,जबान पैल्ली बी पलटैणी छाई ,आज बी पलटैणी च अर ऐथर बी बग्त- बग्त इन्नी पलटैणी रैली ,जबान से पलटण मा जबान थेय भन्डिया कष्ट ना व्ह़ा सैद इल्लै ही परमेश्वरळ जबान लुतलुती अर बिना हड्गै बणे ताकि मौका आण फर जबान झट से पलट साक ,वा जबान ही क्या जू पलटै नि सकदी ,जबानै असल शान पलटैण मा ही च ,अगर आज जबान कुछ जादा ही पलटैणी च ता या मा जबानौ दोष कम अर भगवानै दोष जादा च ,जबान कु फैदा सिरफ़ अर सिरफ़ पलटैंण मा ही च , इल्लै मी बोल्दु की जत्गा व्हेय साक अप्डी जबान द्यावा अर मौक़ा आण फर जबान थेय पलटैंण द्यावा पर गलती से बी जबान फर टिक्याँ नि रावा ,यु ही अज्कालै जबानौ कर्म अर यु ही वीन्कू कलजुगी धर्म च

पर भैज्जी सवाल यो च की अगर आज एक दौ फिर जबान पलटैंण से मुकर जा या फिर वीं फर हड्गी अै जाव त क्या हुंदू ?

हूँण क्या च भुल्ला -पैली त वींकि हडगी तोडे जान्दी फिर या त जबान काटिक हत्थ मा धरै जांदी या फिर क्या पता से जबान भैर खैंचे जान्दी

पर भैज्जी लोग त बुल्दिन कि जबान सम्भालिक रखण चैन्द नथिर...

भुल्ला दुनियक गिच्चौ फिकर नि कैरा कैर उन बी भगवानै जबान दीं ही चलाणा खुणि च अर फिर जबान चलाण मा गिच्चा बुबौ क्या जान्द ?



Copyright@ Geetesh Singh Negi ,Mumbai 04/06/2014

*कथा , स्थान व नाम काल्पनिक हैं।

[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- महर गाँव निवासी द्वारा जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; कोलागाड वाले द्वारा पृथक वादी मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मल्ला सलाण वाले द्वारा भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; पोखड़ा -थैलीसैण वाले द्वारा धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले द्वारा वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी द्वारा पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक द्वारा विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक द्वारा पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक द्वारा सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक द्वारा सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक द्वारा राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; सांस्कृतिक मुल्य ह्रास पर व्यंग्य , गरीबी समस्या पर व्यंग्य, आम आदमी की परेशानी विषय के व्यंग्य, जातीय भेदभाव विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक बिडम्बनाओं, पर्यावरण विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य, राजनीति में परिवार वाद -वंशवाद पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ग्रामीण सिंचाई विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य, विज्ञान की अवहेलना संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य ; ढोंगी धर्म निरपरेक्ष राजनेताओं पर आक्षेप , व्यंग्य ,अन्धविश्वास पर चोट करते गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला जारी ]

गढ़वाली हास्य -व्यंग्य : कुकुर अर समाजवाद

                                                 कुकुर अर समाजवाद

                (हंसोड्या , चुनगेर ,चबोड़्या -चखन्यौर्या - गीतेश सिंह नेगी )


कुकुर अर आदिमौ दगडू कुई आजै बात नि च यू साब बल लगभग तैतीस हजार साल पुरणु रिश्ता च ,तब भटेय कुकुर बिन आदिमौ अर आदिम बिन कुकुरौ काम नि चलदु,कब्बि आदिम ऐथर -ऐथर त कुकुर पैथर -पैथर त कब्बि कुकुर ऐथर -ऐथर त आदिम वेका पैथर -पैथर ,असल मा अगर दिखै जाव ता कुकुर अर आदिमौ प्रेम फर ही समाजवाद टिक्यूँ च, मी त यक्ख तक बोल्दु की समाजवाद सिद्धांत कु जलम सैद कुकुर अर आदिमौ ये प्रेम से ही व्हेय व्हालू |

शुरवात मा कुकुर अर आदिमौ प्रेम सम्बन्ध द्वी तरफ़ा बढिया रैं ,आदिम कुकुरौ ख्याल रखदू छाई द्वी रूट्टी अफ्फु खान्दू छाई त एक कत्तर कुकुर थेय बी दिन्दु छाई ,बदल मा कुकुर बी आदिमौ चौकदरी करदू छाई वेकि देलिम मुंड धैरिक आण जाण अर उटकाम करण वलूँ फर नजर रखदु छाई ,त आदिम निरफन्ग अर निछन्त वेकि प्वडयुं रैंदु छाई | बल साब कुकुर त सदनी आदिमौ दगडिया बणिक दगड मा घूमणू रैंदु छाई ,आदिम गोरू मा ता कुकुर बी गोरू मा ,आदिम गोठ मा ता कुकुर बी गोठ मा ,आदिम छन्न मा ता कुकुर बी छन्न मा ,आदिम घार मा ता कुकुर चौक मा ,प्रेम भाव इथगा गैरू व्हेय ग्याई छाई कि आदिमौ बान वू बिरल,स्याल ,गुणी-बान्दर यक्ख तक कि रिक्ख बाघ फर बिल्कण मा नी घबरान्दू छाई,यक्ख तक कि माभारत मा अपडा स्यें-गुसैं पन्डो का बान कुकुरळ एकलव्यै बाणाौळ अपड गिच्चु तक बुजवाण मा देर नी कैरी बदल मा धर्मराजळ बी स्वर्ग जान्द जान्द तक वेकु दगडू नी त्वाडू |

अब भै य त व्हाई कुकुर अर आदिमौ असल समाजवादी दगडै बात यक्ख तक त सब ठीक ठाक ही छाई पर वेका बाद क्या व्हाई ? वेका बाद समाजवाद खतरा मा किलै पोड ग्याई ,किलै समाजवाद फर अवसरवाद गर्रू पोडी ग्याई ?

म्यार हिसाबळ कुकुरक स्वर्ग जाणा बाद संसार मा वेकु ईमान बखान सैद आदिम थेय हजम नी व्हेय अर बस यक्खम भटेय ही आदिम अर कुकुर मा कम्पीटीशन शुरू व्हेय ग्ये ,आदिमळ सुरुक सुरुक कैरिक कुकुरक हक दबाण शुरू कैर दयाई , बग्त कक्खै कक्ख चली ग्याई पर कुकुर च कि आज बी आदिमौ बफादार बणीयूँ च ,हाँ आदिम जरूर वेकि गौलीन्द छजिला पट्टा डालिक संगुलौं मा बाँधिक वे थेय चौ-छ्वडी रिंगाणु च | शुरू शुरू मा कुकुर थेय आदिमै या चाल समझ नी आई ,वू भोत खुश व्हेय कि अब सैद आदिम अर कुकुर बराबर कु हक पाला ,आदिम थेय कुकर बोलणु पैल्ली कुकुरल अप्डी सरया कुकुर जातिक बडू मान -सम्मान समझी पर बाद बाद मा वेल द्याख कि आदिम त समाज का हर ज्याँ-बित्याँ-खतम किस्मौ आदिम खुण बी कुकुर बोलिक वेकु नौ बिगाणु च ,इथगा हूँणा बाद बी कुकुरक सुभाव मा कुई फरक नी आई पर हाँ आदिमै यीं आदत से समाज मा कुकुर ज्यादा अर आदिम कम जरूर हूँण बैठी ग्यीं अर आज हालत यी छीं कि आज यू पता कन्नु भोत भारी व्हेय ग्ये कि समणी वल्लु आदिम ही च कि सच्ची मा कुकुर च |

फरक यू बी प्वाड कि पैल्ली आदिमौ घारै द्वार फर लिख्युं रैंदु छाई "स्वागतम " अब् रिवाज बदली ग्यीं अब वेका द्वार फर लिख्युं रैन्द " कुकुरौं से सावधान " ,अब् समस्या या च कि यीं बात से असल कुकुर अर असल आदिम दुया घंग्तोल मा प्वडयाँ रैंन्दी कि आखिर खतरा असल मा कै थेय च और कै से च ? इन्न मा कु आदिम च अर कु कुकुर कुछ पता नी चल्णु |

खैर कुकुर इथगा हूँणा बाद बी कुकुर ही च वू आज तलक बी आदिम नी बण साकू अर ना वेल यांकी कब्बि कोशिश ही कैरी हाँ कुकरौ नौ बिगाणा चक्कर मा आदिम जरूर कुकुर बणि ग्याई |

याँ से फरक यी व्हेय कि अज्काल बस अड्डा -हवै-अड्डा -सड़क -बजार -गौं -दफ्तर -इस्कोल जक्ख द्याखा तक्ख कुकुर ही कुकुर हूयाँ छीं पर यी नै कुकुर असल कुकुर जन्न बफादार नी ,इलै आज हालत यी वे ग्यीं कि समाज खासकर ब्यठुला कुकुर फर ता आज बी भरोसू कन्ना छीं पर आदिम फर भरोसू कन्न् मा डरणा छीं ,लोग अज्काल कुकुर थेय मलसणा अर आदिम थेय ढुंगयाँणा छीं , फिर्बी आदिमै चाल ता कामयाब व्हेय ही ग्ये ,आज " कुकुर " अर " कुत्ता " एक स्थापित गालि ता व्हेय ही ग्यीं | आज अगर आप कै आदिम खूण त छ्वाडा अगर कै असल कुकुर खुण बी "कुत्ता " शब्द इस्तमाल करदो ता सब्बि कुकुर कट्ठा व्हेकि गुर्र -गुर्र कैरिक बिल्कण मा बी टैम नी लगान्दा |
आज कुकुर अर आदिम मा या बिल्का-बिल्की किलै भै ,कक्ख गै वून्कू वू समाजवाद अर कक्ख गै वू प्रेम ?

ब्याली आदिमै रंग -ढंग अर कला -करतूत देखिक कुकुरौंळ अपडू "अंतराष्ट्रीय कुकुर सम्मेलन " बिरयुं छाई ,कुकुर यीं बात से भारी नाराज छाई कि या त आदिम आदिम बणिक रौ या फिर कुकुर समाज मा बिगैर बातै घुसपैठ नी कारू ,कुकुरौंक प्रवक्ता का हिसाब से आदिमै इन्न करतूतौं से कुकुर समाजै मान -सम्मान अर स्वाभिमान फर भारी हाल आणि च ,कुकुरौंळ यीं माँग का दगडी ब्याली समाज कल्याण मंत्री थेय अपडू ज्ञापन द्याई कि समाज कल्याण बिभाग थेय आदिमौ नस्ल सुधरण वास्ता ठोस योजना बणाकि काम करण चैन्द ताकि आदिम आदिम बणिक खुश रे साक वू कुकुर बणणै कोशिश बी नी कार ,वूंन्ल माँग कार कि समाज कल्याण अर बाकी सब्बि बिभागौं मा केवल आदिमौं थेय मौका दिए जाव अर यूँ नै कुकुरौं थेय कै बी बिभाग मा सेवा कु मौका ना दिए जाव याँ से पैल्ली त आदिम मा कुकुर बणणै इच्छा कम होलि और फिर सबसे बड़ी बात आदिम अर कुकुर मा फरक कन्नू बी आसान व्हेय जालू अर हमर बी जग्गाह -२ मा नाक नी कटैली | सुणण मा आणु च कि कुकुरौं कि माँग अर हड़ताल कि धमकी से डैरिक समाज कल्याण बिभागळ फिलहाल आदिमौ कि कुकुर समाज मा घुसपैठ अवैध घोषित कैर याळ अर अब सी .बी . आई . सब्बि फर्जी कुकुरौं फर अर आदिमौं फर भारी नज़र रखणी च पर फिर्बी समाजवादै सारु फर आदिम आज बी बिगैर कैकी डैर खयाँ बग्त बग्त य त कुकुर बणणु च या फिर डाली फर फाँस खाणा कु मजबूर हूयूँ च खैर नतीजा चाहे जू बी हो पर हर हालत मा बदनाम त अज्जी बी बिचरु कुकुर ही हूँणु च ,
हालत चाहे कन्ना बी हो समाजवादै असल फर्ज त आज बी कुकर ही निभाणु च ,समाजवादी ठेकादार अज्काल क्या कन्ना छीं या बात त भै हम नी जणदा







Copyright@ Geetesh Singh Negi ,Mumbai 23/08/2014

*कथा , स्थान व नाम काल्पनिक हैं।

[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- महर गाँव निवासी द्वारा जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; कोलागाड वाले द्वारा पृथक वादी मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मल्ला सलाण वाले द्वारा भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; पोखड़ा -थैलीसैण वाले द्वारा धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले द्वारा वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी द्वारा पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक द्वारा विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक द्वारा पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक द्वारा सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक द्वारा सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक द्वारा राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; सांस्कृतिक मुल्य ह्रास पर व्यंग्य , गरीबी समस्या पर व्यंग्य, आम आदमी की परेशानी विषय के व्यंग्य, जातीय भेदभाव विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक बिडम्बनाओं, पर्यावरण विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य, राजनीति में परिवार वाद -वंशवाद पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ग्रामीण सिंचाई विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य, विज्ञान की अवहेलना संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य ; ढोंगी धर्म निरपरेक्ष राजनेताओं पर आक्षेप , व्यंग्य ,अन्धविश्वास पर चोट करते गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला जारी ]

गढ़वाली हास्य -व्यंग्य : महंगै अर माभारत



महंगै अर माभारत



(हंसोड्या , चुनगेर ,चबोड़्या -चखन्यौर्या - गीतेश सिंह नेगी )




महंगै एक इन्नु शब्द च जैकू असर शब्दभेदी बाण से बी जादा च ,म्यार ख्याल से त महंगै अर गरीबी कू साख्युं कु बैर च ,क्या पता महंगै अर गरीबी कू जलम जलामांतर कू प्रेम व्हा या व्हेय सकद वूंन्कि सौं करार करीं हो ,खैर जू बी व्हा यक्खम म्यारु मकसद आज अचाणचक्क से महंगै अर गरीब गुर्बौं रिश्ता नातौं कि ऐसी तैसी कन्ना कतै नी च उन्न बी महंगै अर हमरू रिश्ता कुई द्वी चार दिनौ रिश्ता नि च ,सच बात या च कि हमर बुबा अर दद्दा बी महंगै से इन्नी डरदा -घबरान्दा छाई जत्गा आज हम घबराणा छौ ,हमर मुल्क मा महंगै थेय कू ल्याई ? जब हम ईं बातै छांल छांट करण बैठो त पता चली कि भारतम गरीबी अर महंगै प्रेम कि या कथा पटकथा कुई नै नि च ,पिक्चर वी च बस पिक्चर का कलाकार किरदार नै- नै छीं | महंगैळ जनता सदनी त्राहि त्राहि करद वा बात हैंकि च कि सरकार थेय खाली चुनौ टैम फर महंगै से मुण्डरु हूँन्द ,महंगै कि मार से कत्गै सरकारौं कि मौ धार लग्गीं जान्द त कत्गै दा या विरोधी पार्टी थेय सत्ता सुख चखणा कु मौक़ा बी दिन्द ,वेका बाद सैद फिर नै सरकार अर महंगै मा घुंच-पींच व्हेय जान्द ,सरकार फिर अपडा राज काज मा मस्त व्हेय जान्द अर महंगै अपडा काम मा |

महंगै फर दिमाग तचाणा बाद जब म्यारू द्वी घूट च्या पीणा कु ज्यू ब्वाल त साब मी भितर तक कौंपी ग्यौं अर सोच मा पोड़ी ग्यौं कि जे मुल्क मा चिन्नी कु जबरदस्त उत्पादन हूँणु च वक्ख च्या अज्काल इत्गा कढ़ी किलै हूँणी च ,आखिर क्या बात च कि अज्काल च्या कु नौ सुणिक ही बस लोगौं गिच्ची टटमिरी अर मिजाज खराब व्हेय जान्द ? खैर उन्न बी हम्थेय आज तक च्या पेकि क्या मिल ? अरे भै मी त ब्वल्दु कि आखिर हम ईं च्या थेय पीणा किलै छौ ? सवाल त यू बी च कि हम प्याज अर टिमाटर किलै खन्दौ ? खैर सवाल ता और बी भोत छीं पर फिलहाल म्यार ज्यू च्या पीणा कु कन्नू च | च्या से एक बात दिमाग मा कबलान्द कि जे देश मा च्या फर चर्चा कैर कैरिक एक मजबूत सरकार खड़ी व्हेय जान्द वे देश मा महंगै कि मार से टटमिरी हुयीं बिचरि चिन्नी कि ईं हालत फर शोक मनाणु क्या असल राष्ट्र -प्रेम अर लोकतांत्रिक परम्परा वल्ली बात नि च ? खैर परम्परा कु क्या च ? वू या त निभाणा खुण हुन्दी या फिर त्वडणा खुण ? सैद नै सरकार बी महंगै फर पिछिल सरकार जन्न परम्परा निभाणी च !

च्या पिन्द पिंन्द परम्परा से मेरी खोपड़ी मा एक ख्याल आई कि अगर पुरण जमाना मा बी अगर इन्नी महंगै हूँन्दी त क्या हाल हुन्दा ? जरा स्वाचा धौं कि अगर द्वापर युग मा बी इन्नी महंगै हूँन्दी त तब क्या हालत हुन्दी ? क्या पता से कुरुक्षेत्र मा श्रीकृष्ण कु गीता उपदेश "महंगै " फर फोकस हूँन्दू ?
तब क्या पता से श्रीकृष्ण ब्वल्दा : हे पार्थ " ना शस्त्र ईं थेय भेद सक्दु ना आग ईं थेय फूक सकद ,न औडल ईं थेय उड़ा सक्दु ना पाणि ईं थेय बुगा सक्दु ,
हे कौन्तेय ! या महंगै अजर-अमर च "

सैद अर्जुन सवाल करदू

आखिर ईं महंगै कु कारण क्या च माधव ?
त क्या माधव ईं महंगै से बचणा कु कुई उपाय नि च ?
क्या ईं महंगै से एक आम आदिम थेय कब्बि मुक्ति नि मिल सकदी माधव ?
महंगै अर गरीबी मा क्या रिश्ता च माधव ?

येक बाद सैद अर्जुन ब्वल्दु :
हे कृष्ण मिथै महंगै से भारी डैर लगद ,ईं महंगै दगड मी लडै नि कैर सक्दु !

फिर सैद श्रीकृष्ण ब्वल्दा :
हे पार्थ तुम समझदार आदिम व्हेय कि बी वीं धाणी खुण शोक कन्ना छौ ज्वा शोक करण लैक नि च ,जू विद्वान आदिम हूँन्दी वू बचीं या फिर म्वरीं खुण शोक नि करदा ,इन्नु कब्बि नि व्हेय कि महंगै नि रै व्होलि ,मी नि रै व्होलू अर तुम नि रै व्होला , अर ना भविष्य मा इन्नु व्हालू कि हम सब्बि नि रौला ,

हे अर्जुन महगैं सुख -दुःख गरीबी सब ह्युंद अर रूडयूँ जन्न हूँन्दी ,जू आदिम महंगै से नी घबरान्दू वे थेय साक्षात मोक्ष प्राप्त हूँन्द ,तत्वदर्शियों मतलब कि आधुनिक अर्थशास्त्रीयूँक हिसाबळ असत (भौतिक शरीर) चिरस्थाई मतलब कि सदनी रैण वल्लु नि च पर सत (महंगै ) चिरस्थाई मतलब कि सदनी रैण वल्ली च | वूंन्ल अर्थशास्त्र का घोर गैरा सिद्धांतौ आधार फर या बात ब्वलीं च ,इल्लै हे पार्थ ज्वा सरया दुनिया मा फैलीं च तुम वीं महंगै थेय अविनाशी जाणा ,वीं कु नाश कन्नै सक्या कै फर बी नि च |
जू ईं महंगै थेय मरण वल्ली समझद वू परम ज्ञानी च अर जू इन्न समझद कि ईं महंगै थेय मरै जा सकद वू परम अज्ञानी च किलैकि महंगै मार सकद पर महंगै थेय मरै नि जा सक्दु |

हे पार्थ जन्न मनखि पुराणा लारा लत्ता छोडिक नै लारा पैरद उन्नी महंगै बी पुरणी सरकार थेय छोडिक नै सरकार फर चिबट जान्द
ना महंगै थेय अर्थशास्त्री रोक सक्दा ना शिक्षा-स्वास्थ्य -रेल या वितमंत्री अर और त और ना ही देशक प्रधानमंत्री |

या महंगै ना टूटण वल्ली च अर ना माटम मिलण वल्ली ,ईं थेय ना त फुंड धौलै जा सक्दु अर ना ही ईं कु बाढ़ण रोकै जा सक्दु ,या शाश्वत,सब्बि जग्गाह एक जन्न अर सदनी इन्नी रैण वल्ली चीज च |

जातस्य हि ध्रुवो कि व्याख्या सैद तब्ब इन्न हूँन्दि - "जैल जलम धार वे थेय म्वरद -म्वरद या महंगै त भुगतण हि प्वाडलि ,यक्ख तक कि म्वन्ना बाद फिर दुबारा जलम व्हालू अर फिर या महंगै दुबर भुगतण प्वाडलि ,इल्लै हे पार्थ! ईं महंगै से ना डैर वीं खुण शोक नि कैर |

" आश्चर्यवत्पश्यति कश्चिदेन .." कि व्याख्या सैद तब्ब इन्न हूँन्दि -हे पार्थ ! कुई महंगै थेय अचरज कैरिक दयख्द ,कुई ईं थेय अचरज कैरिक बतान्द अर कुई ईं थेय अचरज कैरिक सुणद पर कुई -कुई महगैं बारम सुणिक बी ईंका बारम कुछ नि समझ सक्दा ,क्षत्रिय हूँणा नाता से अपणा धर्मक हिसाबळ महंगै से लडै करण से बडू कुई और कर्म तुम खुणि नि च ,इल्लै संकोच नि कैर |
" कर्मण्येवाधिकरास्तेय मा फलेषु कदाचन: " मा श्रीकृष्ण कु पैली ब्वल्यूं च कि भै अर्जुन तू बस कर्म कैर फल कि इच्छा बिलकुल नि कैर !

फिर सैद अर्जुन सवाल करदू : केशव महंगै का क्या -क्या लक्षण हूँन्दि ? महंगै कु मरियूँ आदिम कन्न बच्यांद ,कन्न बैठद अर कन्न कैरिक चलद ?

खैर या त व्हाई महंगै का नौ फर मनोरंजन या टैम पास कन्ना बात पर असल बात क्या च ?

सच अर उल्टी बात या च अज्काल अर्थशास्त्री मतलब बोलण्या अर्थशास्त्री सरया दिन सूचकांक फर आँखा लग्गैकि महंगै खुण रुणा रैन्दीन ,अखबार ,टी.वी . फर जणगुरु लोग अर विपक्षी नेता महंगै कु महामात्य सुणाकि सुबेर भटेय राति तक रुदन कैरिक हम थेय इन्न समझाणा रैंदीन कि भै सरकारळ महगैं बढ़ा याळ ,निर्भगी इन्न बी नि स्वचदा कि जे फर बितणी होलि वू कन्न नि जाणलू या बात ?
या बात ता हम बी जणदौ कि हम फर महंगै कु रोग लग्युं च ,हल्ला क्यों कन्ना छौ भई सुद्दी मुद्दी ,कुछ दवै-दारु च ता ब्वाला नथिर सुद्दी ...

भै म्यार विचार से त महंगै एक गल्या बल्द सी च ,वे थेय कत्गा हि सोट्गी मारा वेल अपड गल्यापन्न नि छ्व्डणु ,पर किलैकि सरकार ब्वलद कि हमल महंगै फर लगाम लगाण ता यान्कू मतलब क्या व्हाई ?

मतलब यू व्हाई कि महंगै गल्या बल्द नि च घ्वाडा च ,अरे भै लगाम त आखिर घ्वाडा फर हि लगद ना बल्द फर थोड़ी लगद ,वे फर त म्वाला लग्दीं,पर यक्ख ता उलटा काम हूँणा छीं सरकार महंगै फर त लगाम लगा नि सकणी च उल्टू जनताौ गिच्चौं फर म्वाला लगाणी च |
महंगै से सरकार अर जनता जथ्गा परेशान छीं विपक्षी दल उत्गा हि खुश कि बेट्टौं अब् ब्वाला ? भोत हल्ला मचाणा छाई ना तुम हमर टैम मा ? इतिहास बी गवाह च कि महंगै सदनी सरकार कि सौत अर विपक्ष कि प्रेमिका बणिक रैंन्द ,महंगै विपक्ष खुणि खाली एक मुद्दा नि च यू सरकार फर चलाणा कु एक अचूक ब्रह्मास्त्र च ,या रियलीटी शो मा विपक्ष कि बौडई खुण एक "वाईल्ड कार्ड एंट्री " जन्न च ,हाँ महंगै का बारामा एक ख़ास बात या च कि महंगै संवैधानिक रूप से पूरी "सेकुलर" हूँन्द किलैकि या सब्बि धर्म अर जाति का लोगौं फर एक ही जन्न चिबटद ,हाँ वा बात हैंकि च की असर या आदिम देखिक करद | उन्न अगर देखेय जाव त या एकदम बेशरम अर नानसेंस टैप कि चीज हूँन्द जैं फर शरम लिहाज या मन्खियात जन्न कुई गुण नि हूँन्दू ,यत एक खबेश जन्न हूँन्द ,एक बार चिबटी ग्याई त समझा चिबटी ग्याई सदनी खूण | महंगै कि एक और खासियत या बी च कि या भेष बदलण मा नंबर एक हूँन्द ,कब्बि चिन्नी कब्बि तेल ,कब्बि पिट्रोल कब्बि प्याज कब्बि टिमाटर त कब्बि दाल जक्ख मौका मिलद वक्खी चिबट जान्द | या महंगै कुण्डली मा लग्युं कालसर्प दोष से बी खतरनाक च ,महंगै कि दशा शनि -राहू या केतु दशा से बी भारी हूँन्द ,वू दिन बी दूर नी छीं जब लोग ज्योतिष -बामणु -या पुछयर मा शनि -राहू या कालसर्प दोष निमारणौ जग्गाह "महंगै " रोग से मुक्ति कु बाटू खुज्याणा कु जाला |

मी स्वच्णु छौं की महगैं फर एक "महंगै पुराण " या फिर " महंगै कि विकास जात्रा ,एक शोधपरक अध्ययन " नौ से किताब ल्यखुं ,पैली मी स्वच्णु छाई कि याँ से पैली कै "अर्थशास्त्री" से सौ सलाह कैर ल्यूं पर जब भटेय कुछ अर्थशास्त्री महंगै थेय कंट्रोल कन्न मा फ्लाप हुईं मिथेय सब्बि अर्थशास्त्री अब सिरफ गिच्चा लाल शास्त्री जन्न लग्दीं अर मी वूं से दूर रैणु ही पसंद करदू वुन्थेय बिलकुल बी मुख नि लगांदु ,फिर मी स्वचदू कि " महंगै से बचणक १००१ उपाय " किताब ल्यखणु आर्थिक हिसाब से जादा बढिया रालु |

पर एक बात च या महंगै बी क्या बक्की बातै चीज च तब्बा ? अब द्याखौ जू नेता -मंत्री कुछ बग्त पैली ईं महंगै फर खामोश बैठयाँ छाई ,जौंका गिच्चौं फर म्वाला लग्यां छाई वू आज सुबेर शाम महंगै नौ फर गिच्चा चिरफाडिक रुणा छीं ,सरकार थेय गालि दिण फर लग्यां छीं अर जनता फर बी चुगनी दिणा छीं कि अब खावा माछा बेट्टौं,
कन्न अन्दीन बेट्टों अब तुम्हरा अच्छा दिन ?

अर जू विपक्षी नेता ब्याली तक पिछली सरकार थेय महंगै का नौ फर बदनाम कन्ना छाई वूंन्का पितृ पूजणा छाई ,आज वूंन्का सरकरी गिच्चौं फर म्वाला लग्यां छीं |
इन्नमा सवाल यु खडू हूँन्द कि आखिर सरकार अर ईं महंगै कु रिश्ता क्या च ? अगर महंगै आज तलक सरकारौ थेय डूबाणि च त भै सरकार ईं महगैं कु क्या कन्नी च ?
भैज्जी बल सुणणा मा आणु च कि सरकार जनता थेय कड़ी दवै पिलाणै त्यरी कन्नी च ,

त फिर भारै अब च्या छ्वाडा अर कड़ी दवै पिणा खूण व्हेय जाव सब तयार !



Copyright@ Geetesh Singh Negi ,Mumbai 23/08/2014

*कथा , स्थान व नाम काल्पनिक हैं।

[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- महर गाँव निवासी द्वारा जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; कोलागाड वाले द्वारा पृथक वादी मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मल्ला सलाण वाले द्वारा भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; पोखड़ा -थैलीसैण वाले द्वारा धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले द्वारा वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी द्वारा पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक द्वारा विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक द्वारा पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक द्वारा सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक द्वारा सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक द्वारा राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; सांस्कृतिक मुल्य ह्रास पर व्यंग्य , गरीबी समस्या पर व्यंग्य, आम आदमी की परेशानी विषय के व्यंग्य, जातीय भेदभाव विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक बिडम्बनाओं, पर्यावरण विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य, राजनीति में परिवार वाद -वंशवाद पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ग्रामीण सिंचाई विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य, विज्ञान की अवहेलना संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य ; ढोंगी धर्म निरपरेक्ष राजनेताओं पर आक्षेप , व्यंग्य ,अन्धविश्वास पर चोट करते गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला जारी ]

Sunday, January 18, 2015

विश्व प्रसिद्ध कवियों की कविताओं का गढ़वाली भाषा अनुवाद श्रृंखला : श्री नरेन्द्र सिंह नेगी (2 )


                   विश्व प्रसिद्ध कवियौं की कवितायें उत्तराखण्ड के ख्यात कवि-गीतकार और लोक गायक आदरणीय श्री नरेन्द्र सिंह नेगी जी की गढ़वाली ग़ज़ल "लटुलि फुलिं ग्येनी" का अनुवाद , ( अनुवादक : गीतेश सिंह नेगी )
       
            "लटुलि फुलिं ग्येनी"
त्यारा ख्यालों की दुनियाँ मा डुब्यूं रौं मी 
त्वे थेय ख्याल आई त लटुलि फुलिं ग्येनी 
लटुलि फुलिं ग्येनी
रुज्दा बिज्दा तरपर ऐन सौण भादो -२ 
मीन बोली लठियालो वीं खोजी ल्यादो 
दणमण अस्धरियोंळ मुखडी छल्याणो रौं मी 
आशूँ उबैनी त लटुलि फुलिं ग्येनी 
लटुलि फुलिं ग्येनी 
त्यारा ख्यालों की दुनियाँ मा डुब्यूं रौं मी 
त्वे थेय ख्याल आई त लटुलि फुलिं ग्येनी 
लटुलि फुलिं ग्येनी
कौंपदू - २ थर थर फिर ह्यूंद आई -२ 
त्यारा बाँठोँ ह्यूं बी मैमा धोली ग्याई 
टप -टप पठाल्यूँ कु ह्युं सी गळणु रौं मी 
मौल्यार आई त लटुलि फुलिं ग्येनी 
लटुलि फुलिं ग्येनी
हैसदु खेल्दु खिलखिल बसन्त आई -२ 
मेरी सुनि देलीयूँ मा फूल धोली ग्याई 
मुलमुल हैसदा फूलों मा त्वे खोज्याणू रौं मी 
खोजी खाजि याली त लटुलि फुलिं ग्येनी 
लटुलि फुलिं ग्येनी
त्यारा ख्यालों की दुनियाँ मा डुब्यूं रौं मी 
त्वे थेय ख्याल आई त लटुलि फुलिं ग्येनी 
लटुलि फुलिं ग्येनी
अंगार सी बरखींनि घाम रूडी बूढ़ी 
छमोटोंळ पाणि पेकि बी स्यैल नी पोड़ि 
झपन्याली लटुलियुं कु छैल लोप्याणु रौं मई 
हाथ पौछिनी त लटुलि फुलिं ग्येनी 
लटुलि फुलिं ग्येनी
त्यारा ख्यालों की दुनियाँ मा डुब्यूं रौं मी 
त्वे थेय ख्याल आई त लटुलि फुलिं ग्येनी 
लटुलि फुलिं ग्येनी
लटुलि फुलिं ग्येनी

                 
             " उम्र ढल गई "
तेरे ख्यालों की दुनिया में डूबा रहा मैं 
तुझे ख्याल आया तब तलक उम्र ढल गई
तेरे ख्यालों की दुनिया में डूबा रहा मैं 
तुझे ख्याल आया तब तलक उम्र ढल गई
भीगता भीगता तरबदर जब आया सावन भादौं 
मैंने कहा यार ज़रा उसे खोज ला दो 
बहते अश्कोँ से धोता रहा चेहरा अपना 
अश्क़ थमे तब तलक उम्र ढल गई
तेरे ख्यालों की दुनिया में डूबा रहा मैं 
तुझे ख्याल आया तब तलक उम्र ढल गई
काँपता -२ आया शर्द मौसम फिर जब 
बर्फ तेरे हिस्से की बरबस मुझ पर ही गिराता हुआ 
पत्थरोँ पर जमीं बर्फ सा गलता रहा टप टप अक्सर मैं 
बहार आयी तब तलक उम्र ढल गई
तेरे ख्यालों की दुनिया में डूबा रहा मैं 
तुझे ख्याल आया तब तलक उम्र ढल गई
मुस्कुराता हुआ खिलखिलाता हुआ फिर आया बसंत 
मेरी वीरान दहलीज पर फूल बरसाता हुआ 
मुस्कुराते फूलों में तुझे खोजता रहा अक्सर मैं 
तुझे पाया जब तब तलक उम्र ढल गई 
तेरे ख्यालों की दुनिया में डूबा रहा मैं 
तुझे ख्याल आया तब तलक उम्र ढल गई
अंगारे से बरखी बूढ़ी धूप गर्मियों की 
पीकर हथेलियों से भी फिर प्यास ना बुझी 
तुम्हारी जुल्फों के साये को छूने को तरसता रहा बरसों तलक मैं 
जब हाथ आयी तब तलक उम्र ढल गई
तेरे ख्यालों की दुनिया में डूबा रहा मैं 
तुझे ख्याल आया तब तलक उम्र ढल गई
तुझे ख्याल आया तब तलक उम्र ढल गई

अनुवादक : गीतेश सिंह नेगी