हिमालय की गोद से

हिमालय  की  गोद  से
बहुत खुबसूरत है आशियाना मेरा ,है यही स्वर्ग मेरा,मेरु मुलुक मेरु देश

Friday, March 2, 2012

गढ़वाली कबिता : चुनौ



चुनौ

कक्खी बटैणी सिर्री फट्टी
कक्खी साडी कु बज़ार चा
कैर ले मज्जा म्यारा दिद्दा
चुनौ की बहार चा

कक्खी चल्णु पव्वा अदधा
कक्खी खतेणी बोतलों की धार चा
कैर ले मज्जा म्यारा दिद्दा
चुनौ की बहार चा

कुई बोल्णु हत लगवा
कुई रसिया रस फूल क सहार चा
चार दिन की चक्काचौंद
फिर झम्कीं झम्म रुमुक्ताल चा

कुई बुन्नु अलण बचावा
कुई फलण खुण मोरणा कु तयार चा
आज दैणा दारु का देबता नगद
भोल साख्युं पैन्छु -बजार चा
कैर ले मज्जा म्यारा दिद्दा
चुनौ की बहार चा

कुई बोल्णु क्रांति ल्यावा
कैकु करयुं मोर्चा तयार चा
अपड़ा ही घपरौल्या व्हेय गीं
भैज्जी बडू बुरु हाल चा

इमनदरी क सुखदी गंगा
मौल्यार खूब स्यार भ्रष्टाचार चा
उड़ ले बेट्टा अब्बी बथौं मा
बसंती चुनौ की बयार चा



पंचबरसी सुखु सदनी म्यार मुल्क
आज घोषणाऔं अ अईं
बस्गल्या नयार चा
कैर ले मज्जा म्यारा दिद्दा
चुनौ की बहार चा

कुई थच्चियाल अपड़ो ल
त कुई आपदा कुम्भ कु शिकार चा
कैकी चलणी रेल हत्गुली मा
त कैकी करीं लाल बत्ती तयार चा
कैर ले मज्जा म्यारा छुचा
चुनौ की बहार चा

सैणा बाटा जोग देहरादूणी
भाग कैका तडतडी उक्काल चा
उन्दू रडदा ढुंगु छौं मी छुचौ
मी खुणी चौ -छ्वडि भ्याल चा
कैर ले मज्जा म्यारा छुचा
चुनौ की बहार चा

कुई तडकयुं बेरोजगरी ल
कुई मैंहगई शिकार चा
कुई दबियुं रेख्डौं म़ा गरीबी का
त कैक्कू रोज घ्यू त्युहार चा
कैर ले मज्जा म्यारा दिद्दा
चुनौ की बहार च

धैई लगाणी गढ़वली यक्ख
मरणी कुमौनी किटकताल चा
घर मा ही परदेशी व्हेग्यीं
भैज्जी बडू बुरु हाल चा
घर मा ही परदेशी व्हेग्यीं
भैज्जी बडू बुरु हाल चा ...........


रचनाकार :गीतेश सिंह नेगी , सर्वाधिकार सुरक्षित