हिमालय की गोद से

हिमालय  की  गोद  से
बहुत खुबसूरत है आशियाना मेरा ,है यही स्वर्ग मेरा,मेरु मुलुक मेरु देश

Saturday, May 21, 2011

गढ़वाली कविता : सम्लौंण



कुछ सुल्झयाँ 
कुछ अल्झयाँ
कुछ उक्करयाँ
कुछ खत्याँ
कुछ हरच्यां
कुछ बिसरयाँ
कुछ बिस्ग्याँ
त कुछ उन्दू बौग्याँ
कुछ हल्याँ
कुछ फुक्याँ
कुछ 
कत्तर - कत्तर हुयाँ
मेरी इन्ह  जिंदगी का पन्ना
बन बनिका  हिवांला रंगों मा रुझयाँ
चौदिश बथौं मा  उड़णा 
हैरी डांडीयूँ - कांठी
यूँ  मा
चिफ्फली रौल्यूं की ढून्ग्युं मा
पुंगडौं-स्यारौं -
गौडियों मा
फूल -पातियुं मा
भौरां - प्वत्लौं मा
डाली- बोटीयूँ मा
चौक - शतीरौं    मा 
दगड़ ग्वैर-बखरौं मा
हैल - दथडियूँ  मा
भ्याल - घस्यरियौं मा
पाणि -पंदेरौं मा
गुठ्यार- छानियौं  मा
चखुला बणिक
डंडली - डंडली  मा
टिपण लग्याँ
म्यरा द्वी
भुल्याँ - बिसरयाँ खत्याँ 
   बाला दिन 
                                             
   रचनाकार  :गीतेश सिंह नेगी ( सिंगापूर प्रवास से,सर्वाधिकार-सुरक्षित )

No comments:

Post a Comment