हिमालय की गोद से

हिमालय  की  गोद  से
बहुत खुबसूरत है आशियाना मेरा ,है यही स्वर्ग मेरा,मेरु मुलुक मेरु देश

Tuesday, February 28, 2012

आखिर कैसे बचेंगी भाषाएँ


धाद
( उत्तराखंड की लोकभाषाओं की चिंता पर एकाग्र )
आखिर कैसे बचेंगी भाषाएँ
अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस
गढ़वाली ,कुमाऊंनी ,जौनसारी और जौनपुरी कवितायें

अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस २१ फरवरी , २०१० के अवसर पर " धाद " द्वारा आफिसर्स ट्रांसिट हॉस्टल ,रेसकोर्स ,देहरादून में उत्तराखंड की लोकभाषाओं के पक्ष में आयोजित संगोष्ठी तथा सामुदायिक भवन ,भारतीय सर्वेक्षण विभाग ,हाथी बड़कला ,देहरादून में आयोजित " पर्वतीय कवि - सम्मेलन " में रचनाकारों द्वारा सर्जित ,पढ़ी गयी कविताओं का संकलन




संपादक : शांति प्रकाश " जिज्ञासु "
तोताराम ढौंढीयाल " जिज्ञासु "

Friday, February 24, 2012

गढ़वाली कविता : सरकार

सरकार


छचराट भी करद
फफराट भी करद
उन् त रैंद बणिक कुम्भकरण
ब्वण प्वड़ी सदनी
जब लगान्द खैड़ा अ कटांग विपक्षी

त बगत बगत धक्ध्याट भी करद
इमनदरी कु रैन्द सुखो सदनी
बैइमानौं फर बसंती बयार भी करद
कतगौं बुजै दींद
चुल्ला अ
कतगौं फर मुछ्यळि वार भी करद

लुटिक सरया मुल्क बगत बगत
अपड़ा खाली भकार भी भोरद
कतगौं थैं रखद धैरिक हतगुळि मा
त कुरची कुरची क कतगौं कुहाल भी करद
सरकार याँ खुणी ही त बोल्दीन छुचा
जू काम चाए कार नी कार
पर झपोडिक सर्या मुल्क मा प्रचार बि करद
पर झपोडिक सर्या मुल्क मा प्रचार बि करद
पर झपोडिक सर्या
मुल्क मा प्रचार बि करद




रचनाकार :गीतेश सिंह नेगी , सर्वाधिकार सुरक्षित
स्रोत : मेरे अप्रकाशित गढ़वाली काव्य संग्रह " घुर घूघुती घूर " से