हिमालय की गोद से

हिमालय  की  गोद  से
बहुत खुबसूरत है आशियाना मेरा ,है यही स्वर्ग मेरा,मेरु मुलुक मेरु देश

Saturday, May 22, 2010

" प्रश्नचिन्ह "

" प्रश्नचिन्ह "

रात क्या होती है ? और क्यूँ इसमे घना अँधेरा होता है ?
वर्षों सोचते रहे हम पर पता नहीं चलता
पता तब चलता है जब कहीं सवेरा होता है

मनुज तुम सुंदर दिखते हो मुखौटों में भी पर ?
मन के दर्पण में देखो तो खुद का पता चलता है


सच क्या होता है ? और कैसा होता है ?
झूठ के महलौं में ठहरो कभी तो पता चलेगा !
कैसा सच के झोपडों का सुहावना शहर होता है
कैसा सच के झोपडों का सुहावना शहर होता है

नदी ,झरने,सागर बहते है सभी मगर क्यूँ ?
कभी संघर्ष खुद से करो तो पता चलता है
इच्छायें क्या होती है ?और आखिर होती है क्यूँ ?
मुट्ठी भर रेत लो हाथो में और देखो फिर क्या होता है ?

जिंदगी एक सफ़र है ,एक लम्बा सफ़र ,जिसका पता नहीं चलता
पता तब चलता है जब इसमे तू अकेला हमसफ़र होता है
अकेला तू ही नहीं तन्हा इस दुनिया में " गीत "
महसूस तब होता है जब कहीं तन्हाइयों का मेला सजता है
महसूस तब होता है जब कहीं तन्हाइयों का मेला सजता है
महसूस तब होता है जब कहीं तन्हाइयों का मेला सजता है

Friday, May 21, 2010

" फ़रियाद "

उनकी चाहत में इतना मसरूफ रहता हूँ
की आह भरने की भी अब फुर्सत नहीं
और वो जालिम कहते हैं !
की हमसे अब क़द्र - ऐ - मुहबत नहीं होती

ता उम्र चले पैदल मुसाफिर बनके जिनकी खातिर
वो सरेआम कहते हैं की दिल को उनके अब
कदमो आहट हमारी नहीं आती

मंदिरों ,मस्जिदों और ना जाने कहाँ-कहाँ
जिनकी चाहत में मांगी थी हमने मन्नतें
वो रुस्वा है !
वो रुस्वा है !
सुना है खुदा पर भी वो अब यकीं नहीं करते
सुना है खुदा पर भी वो अब यकीं नहीं करते



BY : Geetesh Singh Negi "

Friday, May 14, 2010

" रुस्वाईयां "





बरसों पहले एक सुबह , वो रुस्वा होकर गया
साँझ तक लौट आता , तो उसका क्या चला जाता
नींद भी आती नहीं मुझको ,अब उसके ख्यालौं से
ख्याल इतना भी उसको आ जाता , तो उसका क्या चला जाता

वो दिल- ये -आईना हैं ,ऐसा लोग कहते हैं
मेरा चेहरा उसमे निखर आता, तो उनका क्या चला जाता
उनके इंतेजार में हमने ,यूँ तन्हा उम्र काटी है
एक लम्हा संग गुजर जाता , तो उनका क्या चला जाता

वो शख्स जो भरी महफिल में मुझको छोड़कर तन्हा
खामोश ही लौट आया था
वो हाल -ए -दिल बयाँ कर जाता ,तो उसका क्या चला जाता
वो हाल -ए -दिल बयाँ कर जाता ,तो उसका क्या चला जाता
वो हाल -ए -दिल बयाँ कर जाता ,तो उसका क्या चला जाता

Thursday, May 13, 2010

" जज्बात "

" जज्बात "

लब्ज़ झूठे और जज्बात अधूरे लगते हैं ,
तेरी चाहत बिना अब सब ख्वाब अधूरे लगते हैं
अब भी ताकता हूँ टूटे दरवाजे की चोखट को मैं ,
बेशक दिन इंतजारी के लाचार कटते हैं
वो सजते भी हैं, और सवरतें भी हैं ,
और तेरा जिक्र भी करते हैं ऐ दिल-ऐ नादान
पर अफ़सोस ,पर अफ़सोस !
हाल ऐ दिल बयाँ "आईना " से करते हैं
सुना है अब वो लोग जलते हैं ,
जो कल तक तेरे रहनुमा थे "गीत "
तेरी खामोशियौं का जिक्र वो,
अब सरे बाज़ार करते है
तेरी खामोशियौं का जिक्र वो,
अब सरे बाज़ार करते है

BY : Geetesh Singh Negi

Sunday, May 9, 2010

"मत पूछो "

स्याहः रातो में हैं , अब आशियाना मेरा

बस मुझसे मेरा पता मत पूछो,

लोग कहते हैं की हम, अक्सर दिल में बसते हैं

बस धडकने सुन लो , धडकनो की वजह मत पूछो ,

एक अजीब सा दर्द है , मेरे सीने में कईं बरसों से ,

दर्द को समझो बेशक ,पर दर्द की दवा मत पूछो,

प्यासा हूँ कईं जन्मो से एय दोस्तों मैं ,

मुझसे घनघोर घटाओं का पता मत पूछो ,



By : "Geetesh Singh Negi "