जिकुड़ी रुझ्यीं राई त्यारा ही ख्यालौं मा
अर मन राई तिसल्या बरसौं भटेय
त्वे कल्कली तक नि लग्गी
त वा बात हैंकि च
जप्णु रौं माला त्यारा ही रूपा की
आँखा बुझी की झणी कब भटेय
तिल ही नि पछ्याँण साकू मी
त वा बात हैंकि च
ब़िरडयूँ रौं बाटौं मा भी सौन्गा सरपट
त्वे खुज्याँण मा
अब तू धार मा की जौन बणी छई
त वा बात हैंकि च
बिराणु रौं कांडा बगत बगत
त्यार खुटौं का
अर तू अप्थेय देबता चिताणी रै
त वा बात हैंकि च
दिणु रौं सहारू त्वे थेय
सुख दुःख मा बोटिक अंग्वाल
कन्नू रौं जग्वाल कुक्कुर सी तेरी
अब तू मिथ्यै ह़ी ढुन्ग्याणि छई
त वा बात हैंकि च
कबहि स्वीणों मा त कबहि यकुला -यकुली
बच्याणु रौं मी बोल्या बणिक
सरया दूणिया छल्या सुणिक ऐडाट म्यारु
बस तिल ही नी सुणु
अब त्यार कंदुड ब्यलै ग्ये होला
त वा बात हैंकि च
रौं बैठ्युं छाल मा
छाला कु ढुन्गु बणिक
बाटु देख्णु त्यारू
तू छल्या-छाल पैटी ग्ये चुपचाप
त वा बात हैंकि च
रौं खत्णु मीठ- मीठा बचन
तिल मुख तक नी लगाई
जू म्यार करम ही खट्टा रै होला
त वा बात हैंकि च |
रचनाकार :गीतेश सिंह नेगी , सर्वाधिकार सुरक्षित
स्रोत : मेरे अप्रकाशित गढ़वाली काव्य संग्रह " घुर घूघुती घूर " से
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