हिमालय की गोद से

हिमालय  की  गोद  से
बहुत खुबसूरत है आशियाना मेरा ,है यही स्वर्ग मेरा,मेरु मुलुक मेरु देश

Sunday, June 12, 2011

गढ़वाली कविता : हैंकि बात



जिकुड़ी रुझ्यीं राई त्यारा ही ख्यालौं  मा
अर मन राई तिसल्या बरसौं भटेय
त्वे कल्कली तक नि लग्गी
त वा बात हैंकि च

जप्णु रौं माला त्यारा ही रूपा की
आँखा बुझी  की झणी कब भटेय  
तिल ही नि पछ्याँण साकू मी
त वा बात हैंकि च

ब़िरडयूँ  रौं बाटौं  मा भी सौन्गा सरपट
त्वे खुज्याँण मा
अब  तू धार मा की जौन बणी छई
 त वा बात हैंकि च

बिराणु रौं कांडा बगत बगत
त्यार खुटौं  का
अर तू  अप्थेय देबता चिताणी रै
 त वा बात हैंकि च

दिणु रौं सहारू त्वे थेय
सुख दुःख मा बोटिक अंग्वाल
कन्नू रौं  जग्वाल कुक्कुर सी तेरी
अब तू मिथ्यै  ह़ी ढुन्ग्याणि  छई
त वा बात हैंकि च

कबहि स्वीणों मा त कबहि यकुला -यकुली 
बच्याणु रौं मी बोल्या बणिक
सरया दूणिया  छल्या सुणिक  ऐडाट  म्यारु
बस तिल ही नी सुणु 
अब त्यार कंदुड ब्यलै ग्ये होला
त वा बात हैंकि च

रौं बैठ्युं छाल मा
छाला कु ढुन्गु बणिक
बाटु देख्णु त्यारू
तू छल्या-छाल पैटी ग्ये चुपचाप
त वा बात हैंकि च

 रौं खत्णु मीठ- मीठा बचन
तिल मुख तक नी लगाई
 जू म्यार करम ही खट्टा रै होला
त वा बात हैंकि च |


रचनाकार :गीतेश सिंह नेगी , सर्वाधिकार सुरक्षित
स्रोत : मेरे अप्रकाशित गढ़वाली काव्य संग्रह  " घुर घूघुती घूर " से

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