उक्काल काटी क सरपट
झंकरी बोडी कु नौनु बोडी थेय घार भटेय दिल्ली लिजाणु छाई , भारी उकाल काटी की जब वू धार मा पहुंची त बोडिल ब्वाल बुबा जरा बिसाई दयोला यम्मा |
नौनु किस्सा उन्द भटेय एक सिगरेट निकाली की सुलगाण बैठी ग्या और फिर दानी बुढडि ब्व़े थेय सम्झाणु छाई की ब्वे बस अब उकाल त कटेय ग्या पर बोडी कु मनं क्वान्सू छाई ,वेंकी आँखौं मा त बस घार - गौं -गुठीयार ,स्यार पुन्गडा , बल्द- बखरा ,घास -भ्याल ,पंदेरा -छन्छडा ही रिटणा छाई ,वींकू मन टपराणु छाई और आँखा उन्देय देखि की टुप टुप रूणा छाई |
सिगरेट कु धुँवा उड़ा की नौनल बोडी मा ब्वाल - ब्वे बस दिल्ली जा की ज़रा ईत्गा ध्यान रखि की जै कै दगडी गढ़वली मा ना बचेय और घार मा आण - जाण वाला नौना -नौनियों की घार-गौं जण भुक्की न प्ये और जै कै मा अपड़ी खैरी का बिठ्गा ना लग्ये क्याच की दिल्ली मा लोगों मा सब कुछ च पर टैम नि च |
बोडिल कुछ नि ब्वाल बस खंडेला ल आँखा फुन्जिक खोलैय की तडतड़ी उक्काल और उन्दू गौं जन्हेय दैख्यंण बैठी ग्या|
नौनल ब्वाल - ब्वे क्या देखणी छई ? उकाल त अब कटेय ग्या , बस अब त हम सरपट दिल्ली पहुंचला |
ब्वे ल ब्वाल - हाँ बुबा मी भी बस इही सोच्णु छोवं |
पर बगत कुछ भंडिया ही लग्गी ग्या सम्झण मा ?
म्यार लाटा ६० बरस कम नि हुन्दा ,इतरी छोटी धाण थेय बिंग्णा खुण ?
सैद बोडी भोत कुछ ब्वलूंण चाहणी छाई ,पर नौना ल बोडी की बात अणसुणी कैरी की ब्वाल
चल ब्वे अब भोत देर व्हेय ग्या , नथिर हमरी बस छुट जाण !
लेखक : गीतेश सिंह नेगी , सर्वाधिकार सुरक्षित
स्रोत : म्यार ब्लॉग हिमालय की गोद से
झंकरी बोडी कु नौनु बोडी थेय घार भटेय दिल्ली लिजाणु छाई , भारी उकाल काटी की जब वू धार मा पहुंची त बोडिल ब्वाल बुबा जरा बिसाई दयोला यम्मा |
नौनु किस्सा उन्द भटेय एक सिगरेट निकाली की सुलगाण बैठी ग्या और फिर दानी बुढडि ब्व़े थेय सम्झाणु छाई की ब्वे बस अब उकाल त कटेय ग्या पर बोडी कु मनं क्वान्सू छाई ,वेंकी आँखौं मा त बस घार - गौं -गुठीयार ,स्यार पुन्गडा , बल्द- बखरा ,घास -भ्याल ,पंदेरा -छन्छडा ही रिटणा छाई ,वींकू मन टपराणु छाई और आँखा उन्देय देखि की टुप टुप रूणा छाई |
सिगरेट कु धुँवा उड़ा की नौनल बोडी मा ब्वाल - ब्वे बस दिल्ली जा की ज़रा ईत्गा ध्यान रखि की जै कै दगडी गढ़वली मा ना बचेय और घार मा आण - जाण वाला नौना -नौनियों की घार-गौं जण भुक्की न प्ये और जै कै मा अपड़ी खैरी का बिठ्गा ना लग्ये क्याच की दिल्ली मा लोगों मा सब कुछ च पर टैम नि च |
बोडिल कुछ नि ब्वाल बस खंडेला ल आँखा फुन्जिक खोलैय की तडतड़ी उक्काल और उन्दू गौं जन्हेय दैख्यंण बैठी ग्या|
नौनल ब्वाल - ब्वे क्या देखणी छई ? उकाल त अब कटेय ग्या , बस अब त हम सरपट दिल्ली पहुंचला |
ब्वे ल ब्वाल - हाँ बुबा मी भी बस इही सोच्णु छोवं |
पर बगत कुछ भंडिया ही लग्गी ग्या सम्झण मा ?
म्यार लाटा ६० बरस कम नि हुन्दा ,इतरी छोटी धाण थेय बिंग्णा खुण ?
सैद बोडी भोत कुछ ब्वलूंण चाहणी छाई ,पर नौना ल बोडी की बात अणसुणी कैरी की ब्वाल
चल ब्वे अब भोत देर व्हेय ग्या , नथिर हमरी बस छुट जाण !
लेखक : गीतेश सिंह नेगी , सर्वाधिकार सुरक्षित
स्रोत : म्यार ब्लॉग हिमालय की गोद से
Ordinary People Called it Revolution....... but some extra ordinary people says... nothing changed.. just a little our brain has been changed....
ReplyDeleteAll the best Geetesh ji,,
I always read your blog mostly every day wenever i got time.. for myself.....
kakh bati payun bhukki... wi dadi ki,,, aur bodi ki...
अभी मैं भी गाँव से होकर आये हूँ.... शहर में रहकर उक्काल काटने के लिए बहुत मशकत करनी पड़ी.... लेकिन अब तो गाँव के लोग भी एक आध किलोमीटर के लिए गाडी की राह घंटों देखते है... है न यह उकाल कटती सरपट वाली बात....
ReplyDeletewaah
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