निर्झर
प्रखर
चंचल
योवन
खड़ा निष्णात
निहार रहा हिम शिखरों को
सरिता के तीर
संग वर्षा के खंजन नयन बाण
एक -एक कर
लेता ह्रदय में
कर रहा अनवरत
असीम अमृत रस पान
शाश्वत सौन्दर्य का
धरा के
झुक कर करता
ह्रदय कोटि कोटि
हे मात्र भूमि
तुझको प्रणाम !
रचनाकार : गीतेश सिंह नेगी ,सर्वाधिकार सुरक्षित
स्रोत : मेरे ब्लॉग हिमालय की गोद से
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