कब्भी त आल बसंत
म्यार मुल्क मा भी
बिगास बणिक
व्हाला स्वील सुपिन्या साखियौं का
बरसूँ भटेय कत्गौं की टक्क आश लगीं च
आला वू बौडिकी जब धार मा
तोडिकी जाल माया भ्रम का
व्हालू उन्दंकार
रौल्युं -पंदैरौं मा
चौदिश गौं - घार म़ा
तबहि आली मौल्यार डांडी काँठीयूँ मा
बासली घुगती फिर पुन्गडियूँ - स्यारयुं -सगोंडियूँ मा
आली ज्वनि फिर दाना भ्याल पाखौं म़ा
ब्वालाला चखुला काफुल पाको
फिर डाली डालीयूँ मा
खैलाला नौना फिर फूल पातियुं मा
चौक खिल्हाण मुळ -मुळ हैन्सला
गीत ग्वेयर्र फिर डांडीयूँ म़ा लगाला
बांसोल बजै कि रोल्युं रिझाला
बल्दौं का खांकर दयें म़ा बजला
सासू - ब्वारी गीत गंजेली लगाला
गौं -गौं म़ा व्हालू रूज्गार
नौना शिक्षित बिरुजगार नि राला
नि रालू पलायन फिर पहाड़ म़ा
विनाश कु राग़स बणिक
कब्भी त आल बसंत
म्यार मुल्क मा भी
बिगास बणिक
रचनाकार :गीतेश सिंह नेगी , सर्वाधिकार सुरक्षित
स्रोत : मेरे अप्रकाशित गढ़वाली काव्य संग्रह " घुर घूघुती घूर " से
आपकी चिंता जायज छ मी थैं त बिलकुल भी ये वसंत की उमीद न च किलैकी लोग गढ़वाल छोड़ी छोड़ी देहरादून , दिल्ली जै कै बसणा छीन तब कख बाटी आलु वसंत, कुजैणी? पलायन का बार माँ कथागा दुःख हुआ मिथें मेरा ब्लाग पर आके पढ़े word varification se tipanni lekhan ma pareshani honi ch , ye thai hate diyan
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