हिमालय की गोद से

हिमालय  की  गोद  से
बहुत खुबसूरत है आशियाना मेरा ,है यही स्वर्ग मेरा,मेरु मुलुक मेरु देश

Friday, December 5, 2014

विश्व प्रसिद्ध कवियों की कविताओं का गढ़वाली भाषा अनुवाद श्रृंखला : श्री नरेंद्र सिंह नेगी (1)

विश्व प्रसिद्ध कवियों की कविताओं का अनुवाद     
गढ़ भाषा गौरव श्री "नरेंद्र सिंह नेगी " जी " को सादर समर्पित उनकी एक रचना  का  अनुवाद  ,अनुवादक : गीतेश सिंह नेगी ,


                " खैरिका अन्धयरों मा खोजायूँ बाटु "
            नरेंद्र सिंह नेगी



खैरिका अन्धयरों मा खोजायूँ बाटु ,
सुख का उज्याला मा बिरडी ग्यूं -बिरडी ग्यूं
आँखा बुझिक सुलझिन गेड ,
आँखा खोली अल्झी ग्यूं -अल्झी ग्यूं
खैरिका अन्धयरों मा खोजायूँ बाटु ,

उमर भप्पेय की बादल बणी ग्ये ,बादल बणी ग्ये
उड़दा बादल हेरदी रयूँ ,हेरदी रयूँ
आँखा बुझिक सुलझिन गेड ,
आँखा खोली अल्झी ग्यूं -अल्झी ग्यूं
खैरिका अन्धयरों मा खोजायूँ बाटु ,
ज्वानि मा जरा सी हैंसी खते छै ,हैंसी खते छै
ज्वानि मा जरा सी हैंसी खते छै ,हैंसी खते छै
उमर भर आँशू ,उमर भर आँशू
टिप्दी ऱयूँ -टिप्दी ऱयूँ
खैरिका अन्धयरों मा खोजायूँ बाटु ,
सुख का उज्याला मा बिरडी ग्यूं -बिरडी ग्यूं
खैरिका अन्धयरों मा खोजायूँ बाटु
रूप का फेण मा सिवांलु नी देखि -सिवांलु नी देखि
खस्स रौड़ु खस्स ,खस्स रौड़ु अर रडदी ग्यूं ,रडदी ग्यूं
आँखा बुझिक सुलझिन गेड ,
आँखा खोली अल्झी ग्यूं -अल्झी ग्यूं
खैरिका अन्धयरों मा खोजायूँ बाटु ,
तुम्हरी बोलीं बत्त समझ नी साकू -समझ नी साकू
तुम्हरी बोलीं बत्त समझ नी साकू -समझ नी साकू
तुम्हारी चुप चट्ट,तुम्हारी चुप चट्ट
बिंगदी ग्यूं -बिंगदी ग्यूं
खैरिका अन्धयरों मा खोजायूँ बाटु ,
सुख का उज्याला मा बिरडी ग्यूं -बिरडी ग्यूं
खैरिका अन्धयरों मा खोजायूँ बाटु
देबतों मा कब्बि घुन्डा नी टेक्या -घुन्डा नी टेक्या
तुम खुणि मंदरु सी पसरी ग्यूं -पसरी ग्यूं
आँखा बुझिक सुलझिन गेड ,
आँखा खोली अल्झी ग्यूं -अल्झी ग्यूं
खैरिका अन्धयरों मा खोजायूँ बाटु ...........


" दुःख के अंधेरोँ में खोजा हुआ रास्ता "
अनुवादक : गीतेश सिंह नेगी

दुःख के अंधेरोँ में खोजा हुआ रास्ता 
सुख के उजाले में भटक गया 
बंद आँखोँ से सुलझाई थी कभी गाँठे मैने 
आँखे खोली तो उलझ गया -उलझ गया
उम्र तपकर बादल बन गई -२ 
मैं बस उड़ते बादल ताकता रह गया 
दुःख के अंधेरोँ में खोजा हुआ रास्ता 
सुख के उजाले में भटक गया 
बंद आँखोँ से सुलझाई थी कभी गाँठे मैने 
आँखे खोली तो उलझ गया -उलझ गया
दुःख के अंधेरोँ में खोजा हुआ रास्ता
जवानी में बिखरी थी मुस्कुराहट जरा सी -2
ताउम्र आँशु फिर चुनता रहा 
दुःख के अंधेरोँ में खोजा हुआ रास्ता 
सुख के उजाले में भटक गया
दुःख के अंधेरे में खोजा हुआ रास्ता
रूप के झाग में फिसलन नहीं देखी ,
गिरा तो बस गिरता ही चला गया 
बंद आँखोँ से सुलझाई थी कभी गाँठे मैने 
आँखे खोली तो उलझ गया -उलझ गया
दुःख के अंधेरोँ में खोजा हुआ रास्ता
अक्सर समझ नहीं सकी तुम्हारी बातें ,
पर ख़ामोशी झट्ट से समझ गई 
पर ख़ामोशी झट्ट से समझ गई
दुःख के अंधेरोँ में खोजा हुआ रास्ता
सुख के उजाले में भटक गया 
बंद आँखोँ से सुलझाई थी कभी गाँठे मैने 
आँखे खोली तो उलझ गया -उलझ गया
दुःख के अंधेरोँ में खोजा हुआ रास्ता
देबताओं के आगे भी नहीं टेके घुटने कभी 
पर तुम्हारे लिए मखमली कालीन सा पसर गया 
बंद आँखोँ से सुलझाई थी कभी गाँठे मैने 
आँखे खोली तो उलझ गया -उलझ गया
दुःख के अंधेरोँ में खोजा हुआ रास्ता
सुख के उजाले में भटक गया 
दुःख के अंधेरोँ में खोजा हुआ रास्ता ....

Saturday, June 14, 2014

गढ़वाली हास्य व्यंग लेख : भगीरथ

                               भगीरथ                      

     (हंसोड्या , चुनगेर ,चबोड़्या -चखन्यौर्या - गीतेश सिंह नेगी ,Mumbai)



धरती बल ७१ % पाणिळ ढकीं च ,समोदर बी ९६.५ % खारु पाणि लेकि उछ्ल्णु च ,जाणकार लोग बुल्दीन बल धरती प्याट कुल १.७ % पाणि सम्युं च ,अब सुणा असल बात कुल २.५ % पाणि ही साफ़ पाणि च अर ये मदेै ०.३ % से बी कम पाणि गाड -गदेरौं अर नयारौं अर नदियों कु पाणि च ? मतलब समझणा छौ की ना
मतलब हम फर पाणि कु भारी संकट च
आज सुबेर लेकि ब्वाडा पाणि का यूँ आँकड़ों लेकि गंगजाणु छाई ,वूंन्की मुखडी फर इन्न झपाक प्वडीं  छाई जन्कि अब्बि  पाणि फर विश्व युद्ध हूँण वल व्हा,सोच विचार अर चिंतन कि यीं हालत मा ब्वाडै दशा दिल्ली जल बोर्डक प्रवक्ता  या उत्तर प्रदेशक बिजली वितरण अधिकारीयूँ सी लगणी छाई ,वूंन्की मुखडी कु पाणि सुख्युं छाई अर वूंन्का विचारौं  मा " पाणि बचावा -जीबन बचावा " कु दर्शनशास्त्र छुलुक-छुलुक कैरिक छ्ल्कणु छाई |

ब्वाडै पाणि चिंतन मा तर्र-बर्र हुयीं छ्वीं सुणिक हमर बी बरमून्ड ख्ज्याँण बैठी ग्याई ,हम बी सरया दिन पाणि  कि गाणी करण मा मिस्याँ रौ ,पाणि  का पुरण खाता टटौलदा-टटौलदा हम कक्खा कक्ख पौचीं ग्यो,हर्चिं- बिस्ग्यीं सरस्वती फर वैचारिक अस्धरा बुगाणा बाद भारतै सभ्यता अर संस्कृति विकास मा गाड -गदेरौं अर नदियों कि भूमिका फर स्वच्द-स्वच्द हम गंगा फर इन्न चिबट ग्यौ जन्न कै आदिम फर भूत-मसाण चिबट जान्द ,हमल सुण भगीरथ जी गंगा थेय धरती मा अप्डा पित्र तरौणा कु लीं ,वूंन्का पित्र तैरा छीं कि ना या बात हम ता नी जण्दा पर हाँ वेक  बाद गंगा जी मा सरया दुनियाौ पित्र तरौणा रिवाजै शुरुवात जरूर व्हेय ग्याई अर लोगौं खुण अप्डा पाप धुणाकि ले देकी  गंगा ही एक जग्गाह रे ग्याई ,लोगौं पाप इत्गा बढ़ी ग्यीं कि आज पाप धुन्द धुन्द गंगा अफ्फु मैली व्हेय ग्याई ,कैका  पित्र तैरा व्होला भाँ ना पर गंगा जीक छातीम बडा बडा डाम धरण व्ला रूप्पीयौं मा जरूर तैरी ग्यीं |

आज हर कुई गंगा जीक पैथिर प्वडयूं च अगर देखे जाव ता हर कुई बुग्दी गंगा मा अप्डा मैला हत्थ धूणा कोशिश कन्नु च अब इन्मा गँगा जील गंदलू त हूँणु ही च |

उन्न ता साखियुं  भटेय गंगा जी फर भारतै सभ्यता अर संस्कृति थेय गर्व रै पर यीं बात कु अन्ताज़ हम थेय आज इत्गा देर से किल्लैय हूँणु च कि गंगा मोरणी च सुखणी च जब्कि गंगा जीक छातीम डाम धरण व्ला बी हम ही छौ ,गंगा मा कीच -गिजार से लेकि अप्डू "सब्बि धाणी " बुगाण व्ला बी हम ही छौ अर गंगा थेय सुरंगों मा घालिक " गंगा बचावो अभियान "  चलाण व्ला बी हम ही छौ ,येका बाद बी हम आज बी गंगा थेय एक व्यौपारी  नज़र से ही द्याखणा छौ ,गंगा कु नफ्फा नुकसान हम आज बी किलोवाट अर मेगावाट से ही कन्ना छौ ,असल मा गंगा हमरि वीं संस्कृति कि जलमदात्री च जैन्की हम अजर अमर सोचिक कुई कदर नी कन्ना छौ बिलकुल उन्नी जन्न कौरवौंळ भीष्म पितामाह कि "इच्छा मृत्यु " बात सोचिक वूंन्की कब्बि कदर नी कैरी ,नतीजा क्या व्हेय बताणा जरुरत नी च |

सोच विचार का कीड़ा दिमाग मा कुलबुलाणा ही छाई कि वूंन्ल ब्वाल -अज्जी तुम थेय ले क्या फटीं च ? तुम ही ता व्हेला भारी भगीरथ जन्न भटेय ? एक गंगा सुखली ता तुम्हरू जी ले क्या जालू ? जन्न् दुनिया अप्डा पित्र तैराली तुम बी तैरा लियाँ ,तुम बी रैन्दो सदनी सुद्दी खाली बरमून्ड तचाणा ,अच्छा इन्न बतावा दी गंगा -जमना -सरस्वती सब्बि कैकी ?

मिल ब्वाल -पहाड़ै मतलब हमरी

ता बल तब्बी म्वन्ना छौ तुम बिगर पाणि का साखियुं भटेय ? तब्बी लग्णा छीं कांडा यूँ पुग्डों फर जक्ख बरसूँ भटेय पाणि ल्याण वल्लु रज्जा भगीरथ अज्जी तक पैदा नी व्हेय ,उल्टा गंगा जीक छातीम डाम खड़ा कैरिक डूबा याळ यूँन्ल अच्छी तरह से हम्थेय ,मौत कब अर कन्ना भटेय कै रूप मा आलि हम नी जणदा ,हमरी हालत ता बल इन्न हूयीं च कि " ना थूक सक्दो ना घूट सक्दो " ,सब्बि अप्डी अप्डी स्वचणा छीं,कुई धर्म कि बात कन्नु कुई विकासै बात कन्नु पर भै जरा हमरि बी ता स्वचा कि हम फर कन्न् भारी बितणी व्होलि ,सी घिर्याँ छौ हम चौ तरीफ पाणि मा फिर बी हमर जोग सुखु ही लिख्युं च ,पैली यून्ल टीरी डुबाई अब उत्तरकाशी -श्रीनगर डुबौण अर एक दिन यूँन्ल सरया मुल्क नी डूबै ता बोल्याँ ,

हे धारी देवी ,हे नरसिंह ,हे नागरज्जा कब हूँण तुमुल दैणु

वूंन्की बात हमुल इन्नी अणसुणी कार जन्न " जल जंगल अर जमीन " कि बात सरकार साखियुं भटेय अणसुणी कन्नी च ,खैर वूंन्का कलकला रस व्ला तर्कों से घैल व्हेकि ब्यखुंन्दा हम बी चौके कच्छडी मा पौन्छी ग्यो हालाँकि हमर पौन्छण से पैल्ली पाणि फर ब्वाडाळ खूब वैचारिक छांछ छोल याळ छाई ,सूणदरा ब्वाडा थेय इन्न सुणणा छाई जन्न ब्वाडा भागपत कैरिक वूंन्का पित्र अब्बी तैराण वल्लु व्हा ?
ब्वाडा फर इत्न दा रहीमदासै झसाग अयीं छाई अर ब्वाडा "रहिमन पाणि राखिये बिन पाणि सब सून " कि सन्दर्भ दगडी व्याख्या करण फर तुल्याँ छाई तबरी हमल ब्वाडा बीच मा ही घच्कै दयाई

ब्वाडा पाणि ता गौं मा आणु ही च वा बात अलग च कि ज़रा हम्थेय रौळ भटेय सैरिक ल्याण प्वडणु च ,बग्त आण फर योजना आलि ता पाणि बी आ जालू गौं मा 

हमर इत्गा ब्वल्द ही ब्वाडा उतडै ग्याई ,बल बेट्टा बग्तै बात ता ठीक च पर ज़रा कु बग्तै बी स्वाचा धौं ,अगर मैल गौं करूँळ पाणि मत्थी ही रोक याली ता तुमुल क्या कन्न ? बतावा धौं ज़रा 

मैल गौं व्ला बी डाम बणाणा छीं क्या ?
अरे डाम नी बी बणाणा छीं पर बग्त कुबग्त पाणि ता तोड़ ही दिणा छीं ना ,वूंन्का पुंगडा-स्यारौं मा बी पाणि-पाणि अर हमर यक्ख पाणि पीणा कि बी रोज रोज आफत ?
त क्या व्हालू ?
कन्न् क्या व्हालू ?तपस्या करण प्वाडली ,कैथेय ता भगीरथ बणण ही प्वाडलू ना अब
मतलब ?
देखा भै मैल गौं कि आबादी कम च अर हमरी भोत ,मतलब हमरा भोट ज्यादा मतलब अब्बा दौ चुनौ मा  प्रधान हमरू ,अर प्रधान हमरू मतलब योजना हमरि मतलब घर गौं मा पाणि ही पाणि

सब्युंळ गंगा रूपी पाणि थेय गौं मा ल्याणा वास्ता एक सुर मा ब्वाडा थेय "भगीरथ " कु अवतार सोचिक अपडा अपडा पित्र तरौण सुपिना द्यखिं ,

अब ब्वाडा से सब्युं थेय इन्नी आश जन्न् सगर का ६० हजार नौनौं थेय भगीरथ से आश छाई
गंगा ल्याण से भगीरथ का पित्र तैरद हमुल ता नी द्याखा पर पर गौं मा पाणि  बान ब्वाडा प्रधनी चुनौ जरूर तैर ग्याई ,गौं मा येक बाद योजना बी अैं ,ठेक्कदार बी अैं ,इंजिनियर बी अैं और ता और चुनौ बी कत्गे दौ आ ग्यीं पर ना गौं मा पाणि आई ना हमरा पित्र तैर साका  अर ना हमरा गौल उन्द पाणि तैर साकू  ब्वाडा जरोर प्रधनी -प्रमुखी का गदना तैरिक विधानसभा पहुँचणकि त्यरी मा लग्युं च अर हम छौ कि आज बी अप्डा भगीरथ थेय जग्वलणा छौ
स्वचणा छौ कि मिलला ता पुछला - भगीरथ जी तुम्हरा पित्र तर ग्यीं कि ना ?

Copyright@ Geetesh Singh Negi ,Mumbai  14/06/2014


*कथा , स्थान व नाम काल्पनिक हैं। 

[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक  से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- महर गाँव निवासी  द्वारा  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; कोलागाड वाले द्वारा   पृथक वादी  मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मल्ला सलाण  वाले द्वारा   भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; पोखड़ा -थैलीसैण वाले द्वारा  धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले द्वारा  वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  द्वारा  पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक द्वारा  विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक द्वारा  पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक द्वारा  सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक द्वारा  सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक द्वारा  राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; सांस्कृतिक मुल्य ह्रास पर व्यंग्य , गरीबी समस्या पर व्यंग्य, आम आदमी की परेशानी विषय के व्यंग्य, जातीय  भेदभाव विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं, पर्यावरण विषयों   पर  गढ़वाली हास्य व्यंग्य, राजनीति में परिवार वाद -वंशवाद   पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ग्रामीण सिंचाई   विषयक  गढ़वाली हास्य व्यंग्य, विज्ञान की अवहेलना संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य  ; ढोंगी धर्म निरपरेक्ष राजनेताओं पर आक्षेप , व्यंग्य ,अन्धविश्वास  पर चोट करते गढ़वाली हास्य व्यंग्य  श्रृंखला जारी ]

Sunday, June 8, 2014

गढ़वाली हास्य व्यंग लेख : जुगाड


                                


                                       जुगाड       

                             

                      (चबोड़्या -चखन्यौर्या - गीतेश सिंह नेगी ,मुम्बई )


परसी दफ्तर मा भारतै बौद्धिक सम्पदा फर बहस हूँणी छाई ,ये विषय फर सब्बि बुद्धिजीवी अप्डा -अप्डा  हिसाबळ बौद्धिक जुगाली करण फर लग्यां छाई ,बहस इत्गा जोरदार ढंग से चलणी छाई की बहुराष्ट्रीय कंपनी कु माहौल कब राष्ट्रीय विचारधारा तरफ पैट ग्याई पता नी लग्गू ,वे दिन  उन्न त ना छबीस जनवरी छाई ना पन्दरा अगस्त पर ऑफिस मा सब्बि भारतीय  विज्ञानिक राष्ट्रवाद अर राष्ट्र प्रेमौ रस मा इन्ना तरबर हूँयाँ  छाई जन्न चासणी मा जलेबी ,अर बग्त बग्त समाजवाद मा मुलायम  अर सेकुलरिज्म मा लल्लू  तर-बर् हुयां रैंदी |

"जब जीरो दिया मेरे भारत ने "से ज़ोरदार शुर्वात कन्ना बाद बुद्धिजीवीयूँळ आर्यभट्ट से लैकी ब्रह्मभट्ट तक्का छुईंयूँ का भट्ट भुज दीं ,वराहमिहिर थेय भारतीय ज्योतिष गौरव तर्पण दिणा बाद वूंल कुतुबुद्दीन अर इल्तुतमिस का पितृ पूजणा मा बी कुई कसर नी छ्वाडी ,अज्कालै प्लास्टिक सर्जरी अर शल्य चिकित्सा का जलमदाता "सुश्रुत " थेय विचारौंक  सादर सुमन चढाणा बाद वूंल चरेखा का  चरक कु इन्नु बखान करी की सुणिक चरेखा डांडा का लोग इन्ना उन्ना देखण बैठी ग्यीं ,बात तब और बढ़ी ग्याई जब माभारत-रामैण कु जिकर आई बल विश्वकर्मा , मै-दानव ,अश्विनी कुमार -नल नील से बडू कुई सल्ली क्या ही पैदा व्हालू ?
बल भैज्जी हनुमान जी मा इन्नी टेक्नोलॉजी छाई की वू हवा मा बथौं बणिक उड़ सक्दा छाई ? क्या छाई वा टेक्नोलॉजी  ?
अरे भुल्ला बल दुनिया मा विमान शास्त्र का जलम गुरु अर असल ज्ञाता हमरा ही गुरु छाई ?
बेट्टौं सूण नी तुमुल -माहर्षि भरद्वाजळ कत्गे साखियुं पैल्ली विमान सहिंता लेखि याळ छाई ? कुबेर अर रावणै पुष्पक विमान फर चर्चा कन्ना बाद सब्बियुंळ एक डौल मा राईट ब्रदर्स का पित्र पूजीं |
बल बेट्टौं  और त औरी दुनिया मा सबसे पैल्ली "बैलेस्टिक मिशेल " अर " एंटी बैलेस्टिक मिशेल "बी हमरा देश मा ही चली छाई !
 अच्छा  ?
दा बल सुण नी माभारत मा "ब्रह्मास्त्र " चला छाई ? अर अर्जुन ता वे थेय कंट्रोल बी करण जणदू छाई ?
अज्जी भैज्जी बल सूणयूँ ता इन्न बी च की शब्दभेदी बाण चल्दा छाई वे टैम फर बल ?
अरे भुल्ला बल राम-रावणा लड़ै की  जैड यू  शब्दभेदी  बाण ही ता छाई असल मा  ,येका बाद माभारत अर रामैण का एक एक नायक कु वैज्ञानिक विधि से इन्नु चरित्र चित्रण करे ग्याई की बेद्व्यास अर माऋषि बाल्मिकी की आत्मा बी सोच मा पोड ग्यै व्होलि |

खैर या ता व्हाई दफ़्तरै बात पर म्यार ख्याल से बात जक्ख तक जुगाडै च ता जुगाड ये मुल्कै हर मनखि  रग रग मा रल्यूं मिस्युं चा अर ये  जुगाड रूपी बौद्धिक खज्यनू फर हम भारतवासियुं जलम सिद्ध अध्यकार च ,अर मी ता ब्वल्दु जू  जुगाड नी जणदू वू भारतवाशी व्हेय ही नी सक्दु ,बिगैर जुगाड  भारत अर बिगर भारत जुगाडै बार मा सोच्णु बी पाप समान च ,जुगाड एक इन्नु तीर च कि अगर ठीक जग्गाह फर लग्गी जा ता समझा "प्रोब्लम खतम "

जुगाड हर समस्या कु समाधान अर हर रोग कु रामबाण ईलाज बी च ,जुगाड साखियुं पुरणी कला कौंल च ,इतिहास गवाह च कि जुगाडै  जत्गा जरुरत मन्खियुं थेय च  उत्गा ही जरूरत देब्तौं थेय बी च | दुनिया मा कुई इन्नु आदिम नी च जैथेय कुई दुःख -समस्या ना व्हा अर दुनिया मा कुई इन्नी समस्या बी नी जैकू कु उपाय समाधान ना व्हा पर फिर बी गर कै समस्या कु ईलाज खोजिक बी नी मिल्णु व्हा ता इन्मा खोज हूँन्द  "जुगाड  टेक्नोलोजी " की |

इन्न बात नी च की  " जुगाड टेक्नोलोजी " फर बस हमरू ही काम -काज चल्णु च अज्जी दुनिया ता जुगाड फर साखियुं भटेय टिक्कीं च
पर भैज्जी लोग ता बुल्दीन की दुनिया भगवानै भरोसू चलणी चा अर आप बुल्णा छौ दुनिया जुगाड फर चलणी च ?
 किल्यर कारा सच्ची बात क्या च ?
 यीं बात फर भारी तुडम तुडा व्हेय पर वूंकी समझ मा  "जुगाड टेक्नोलोजी " कु महत्व अज्जी तक नी आ साकू ,हम बी परेशान व्हेकि सोच मा पोडी ग्यो अर मुंड ख्ज्याँण बैठी ग्यो
तबरी भगवान जी प्रकट व्हेय ग्यीं बल बेट्टौं क्या बात आज भारी सोच विचार मा छौ बैठयाँ  ?

हम दुया भगवानै खुट्टौं मा मुंड धैरिक बैठ ग्यो
मिल ब्वाल प्रभु उन्न ता आप्की माया अपार च पर फिर बी एक डौट हूँणु च ,फैसला कार नथिर आज हम थेय नीन्द नी आणि
इन्नु बतावा की या दुनिया कन्नुकै चलणी चा ? तुम्हरा सारु फर या "जुगाड " फर ?

एक घडी ता भगवान जी बी खोल्यै सी ग्यीं फिर कुछ सोच विचारिक अपडा अस्त्र- शस्त्र ,शंख सब धैरिक निछ्न्त व्हेकि बैठी ग्यीं ,फिर बल एक काम करला चला रौन्ड मारिक पता करला की दुनिया भगवान भरोसा चलणी  च कि "जुगाड " फर ?
मिल ब्वाल चला इन्नी सै जन्न् आप्की इच्छा

सबसे पैल्ली हम एक गौं मा पौंछो जक्ख एक बुढयकि सांग लिजाणा तैयरी हूँणी छाई अर एक बुढडी रुण फर लग्गीं अर बुन्नी
हे विधाता कन्न् रूठी ,हे भगवान अब त्यारु ही सारु च ...
सुणिक भगवान जी खुश व्हेय ग्यीं कि चला नाक कटेंण से बच ग्याई
वेका बात हम दूसर गौं कि इस्कोल मा पौंछो
द्याख कि इस्कोल मा इस्कोल्या अप्डा-२ बस्ता इन्ना उन्ना धोलिक  बैठयाँ अर उट्टकाम करण फर मिस्याँ अर एक कुण फर भोजन माता  चुल्खंदी मा भात पकाण फर लग्गीं तबरी एक बुढया उन्दु जान्द मिली
मिल पूछ ब्वाडा क्या बात इस्कोल कन्न् चल्णु चा
बल बेट्टा क्या बताण इस्कोल ता अब भगवानै भरोसू चलणी चा
भगवान जी इत्गा सुणिक फिर खुश व्हेय ग्यीं अर हम ऐथिर सटिग ग्यौ
फिर हम  पोखड़ा अस्पताल मा गौ ,वक्ख साब मरीजौं भारी भीड़ लग्गीं ,खुट्टू धरणै बी जग्गाह नी ,कैथेय मुंडारु ,कैथेय खाँसी ,कैकु हत्थ निख्ल्युं कुई घुणदा पीडा म्वन्नु ,हमल स्वाच सैद डाग्टर भोत बढिया व्हालू ,हमल पूछ भै इत्गा भीड़ क्यांकू अर कन्न चल्णु च अस्पताल
सब्बियुं एक ही जवाब -बल भै  भगवान भरोसा चल्णु च अब वेकि सारु च

हम पुंनग्डों मा गौ अर पता कार कि भै कन्न चलणी खेती पाती
बल भै कैक्की खेती अर कैकी पाती,यक्ख ता सरया दिन गूणी- बान्दर अट्गाण मा कटेणा छीं अर राति सुंगर -बाघ अर रीक्ख अट्गाण मा ,यक्ख ता सब भगवान भरोसू चल्णु च भुल्ला

इत्गा सुणिक हम झट्ट से हैंक जग्गाह पौंछी ग्यो ,ग्राम सभाौ द्वार फर स्वजल योजना कु बोर्ड तिरछां व्हेकि हमरू स्वागत कन्नु छाई ,गौं मा पौंछिक हमल द्याख कि स्टैण्डपोस्ट इन्नु खडू व्ह्युं छाई जन्न भटेय वेकु करगंन्ड  टूटयूँ व्हा ,हम्थेय समझ नी आई कि करगंन्ड  स्टैण्डपोस्टा  टूटयाँ छाई कि स्वजल योजना का ,पर या बात साफ़ छाई कि ये गौं मा विकास योज्नौं गदना आणा बाद बी भारी सुखु प्वडयूँ छाई,हमल इन्ना उन्ना द्याख ता एक बोडी कस्यैरा उन्द पाणी सरद देखे ग्याई ,
मिल ब्वाल बोडी क्या बात स्टैण्डपोस्ट व्हेकि बी पाणी रौल्युं भटेय सरेणु च ?
बल बुब्बा क्या ब्वन्न बरसूँ ता योजना पास हूँणा मा कटै ग्यीं अर बरसूँ तलक बस पैप ही सरणा रौ ,फिर सालौं मा स्टैण्डपोस्ट बण पर पाणी अज्जी तलक नी आई,पाणी सरद सरद हमरी ज्वनी खप्पी ग्याई ,हम फर बुढापा आ ग्याई पर पाणी अज्जी तलक नी आई ,
अब ता परमेश्वर ही मालिक च ,वेकु ही सारु च

हम गौं -गुठियार धार खाल -इस्कोल -अस्पताल -बिलोक सब्बि जग्गाह घूमी ग्यो पर सब्बियूँ एक ही जवाब "बस भगवान भरोसू चल्णु च काम "

ब्यखुंन दा भगवान जी अप्डा दिव्य अस्त्र-शस्त्र शंख -सुदर्शन -मुकोट,फूल फाल सजैकी खड़ा व्हेय ग्यीं
बल बेट्टौं अब ब्वाला -दुनिया कन्नुकै चलणी च ?
मिल ब्वाल परमेश्वरा लोग बी इन्नी  बुन्ना छीं कि "दुनिया भगवान भरोसू चलणी चा " पर म्यार विचार से हम्थेय  गौं छोडिक बजार-कस्बौं-शहरुँ जन्हे जाण चैंन्द अर हाँ अब्बा दौ हम चुपचाप जौला ताकि कुई बी हम्थेय हेर नी साक पर हम सब्बियुं थेय हेर सक्कौं
ठीक च ,भगवान जील टीटमोरयाँ सी गिच्चू कैरिक ब्वाल

सबसे पैल्ली हम पौड़ी शिक्षा विभागै दफ्तर मा पौंछो ,द्याख कि इस्कोला मास्टर जी बाबू दगड घूचपींच करण फर लग्यां छाई ,मास्टर जी ट्रांसफर का अर बाबू "सुविधा शुल्क " मतलब कि च्या पाणी जुगाड मा लग्यां छाई ,
मास्टर जी बुन्ना छाई -भै तुम च्या पाणी चिंता नी कैरा ,तुम बस ट्रान्सफरै जुगाड कैरा ,
भगवान जील गुस्सा मा ऐथिर लपाग धार ता हम पाणी विभाग मा पौंछी ग्यो वक्ख ठेकादार अर इंजीनियर साब होलि मिलन समारोह कि तर्ज फर मूड अर माहौल बणाण फर मिस्याँ छाई
ठेकादर ब्वन्नू - भै या स्वजल योजना बी कत्गा बढिया योजना च ,पाणी पौन्चलू भाँ नी पौन्चलू हम खुण पैसा पहुंचा ही दिन्द
अब्बे सिन्न बात नी च -योजना सुद्दी नी बणदि ,यी देख फ़ैलौं कटगल,इत्गा मेहनत कन्ना बाद तब जाकी कुछ जुगाड हूँन्द ,अब हमर भाँ से गौं मा चाहे पाणी अयाँ चाहे नी  अयाँ,हमल ता अप्डू सरया बजट ख्पै याळ अर काग्जौं मा बी पाणी ग्राम सभा मा पैटा याळ बाकी लोग जण्याँ अर भगवान जण्याँ ,तू अब बस नेता जी से बात कैरिक अब दुस्सर ग्राम सभा मा पाणी योजना कु जुगाड कैर
 इत्गा बोलिक इंजीनियर मुर्गा टांग रमोडण फर मिस्सी ग्याई

सब्बि जग्गाह पौड़ी -कोटद्वार -सतपुली शहर कि इन्नी हालत देखि भगवान जी थेय भारी बौल उठी ग्याई अर वू सडम लपाग मारिक हम्थेय लेकि देहरादून पहुँची ग्यीं,वक्ख द्याख कि नेतौं भारी रगरयाट व्हयुं,मुख्यमंत्री जीक घार भैर मिडिया वलौं भीमणाट व्हयुं अर  भीतिर सुबेर भट्टी नेतौं कि बैठक चलणी
हमल एक पत्रकार मा पूछ -भैज्जी क्या बात आज भारी भीड़ लग्गीं च ,कुछ खास बात ?
देबा मौ खास बात ,वेक बाद वूंल फटाफट एक द्वी नेतौं का पित्र पूजीं ,
हमल ब्वाल क्या बात सरकार कन्न् चलणी चा ?
बल भुल्ला सरकार त ये प्रदेश मा बरसूँ भटेय भगवान भरोसा चलणी चा
हमल ब्वाल फिर इत्गा पट्गा पटग क्वौ हूँणी चा
बल भुल्ला सरकार बचाणौ "जुगाड " हूँणु च

वेक बाद भगवान जी थेय भारी मुंडारु शुरू व्हेय ग्ये अर हम बोडिक घार आ ग्यो ,भगवान जी अपडा असल रूप मा आ ग्यीं अर वूंल फिर से अप्डा अस्त्र-शस्त्र-शँख फूल-मकोट माला सब्बि गाढ़ी द्यीं अर भारी दुखीः वेकि ब्वाल -यार बेट्टा मी ता सोच्णु छाई कि दुनिया म्यार भरोसळ चलणी पर यक्ख त
मिल ब्वाल -देखा जी बुरु नी मन्या पर कुल मिलैकि साफ़ बात या च कि जैकी चलणी च वैकी जुगाड फर चलणी च जैकी कटैणी च वेकि तुम्हरा ही सारु-भरोसू फर कटैणी च ,बाकी तुम जाणा तुम्हरू काम जण्याँ

भगवान जी - ना भै या बात ठीक नी हूँणी ,इन्मा ता काम नी चल्णु
मिल ब्वाल ता क्या व्हालू तब्बा
बल बेट्टौं देखा धौं कुछ ता करण प्वाडलू "जुगाड "
इत्गा बोलिक भगवान जी गोल व्हेय ग्यीं

हमरा बी आँखा खुल ग्यीं हम बी नै-धोईक दुई रोट्टीयूँ "जुगाड " मा अपडा दफ्तर जन्हे पैटी ग्यो ,
जान्द -जान्द हम यीं  सोच मा प्वडयाँ रौ -क्या क्वी इन्नु जुगाड नी व्हेय सक्दु कि पाहड थेय द्वी रोट्टी पहाड मा ही मिल जाव अर हमरा गौं बाँझा हूँण से बच जाव ?

हे परमेश्वर कक्ख हर्ची तू ,कुछ ता कैर " जुगाड " अब त्यारू ही सारु च पाहड थेय


Copyright@ Geetesh Singh Negi ,Mumbai  08/06/2014

*कथा , स्थान व नाम काल्पनिक हैं।

[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक  से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- महर गाँव निवासी  द्वारा  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; कोलागाड वाले द्वारा   पृथक वादी  मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मल्ला सलाण  वाले द्वारा   भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; पोखड़ा -थैलीसैण वाले द्वारा  धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले द्वारा  वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  द्वारा  पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक द्वारा  विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक द्वारा  पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक द्वारा  सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक द्वारा  सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक द्वारा  राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; सांस्कृतिक मुल्य ह्रास पर व्यंग्य , गरीबी समस्या पर व्यंग्य, आम आदमी की परेशानी विषय के व्यंग्य, जातीय  भेदभाव विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं, पर्यावरण विषयों   पर  गढ़वाली हास्य व्यंग्य, राजनीति में परिवार वाद -वंशवाद   पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ग्रामीण सिंचाई   विषयक  गढ़वाली हास्य व्यंग्य, विज्ञान की अवहेलना संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य  ; ढोंगी धर्म निरपरेक्ष राजनेताओं पर आक्षेप , व्यंग्य ,अन्धविश्वास  पर चोट करते गढ़वाली हास्य व्यंग्य  श्रृंखला जारी ]

Saturday, May 24, 2014

" दुष्यंत कुमार" की कविताओं का गढ़वाली भाषा अनुवाद श्रृंखला

     विश्व प्रसिद्ध कवियों की कविताओं का गढ़वाली भाषा अनुवाद श्रृंखला
  " दुष्यंत कुमार " को सादर समर्पित उनकी एक कविता का गढ़वाली भाषा अनुवाद
                    अनुवादक : गीतेश सिंह नेगी ,मुम्बई



धर्म / दुष्यंत कुमार



तेज़ी से एक दर्द
मन में जागा
मैंने पी लिया,
छोटी सी एक ख़ुशी
अधरों में आई
मैंने उसको फैला दिया,
मुझको सन्तोष हुआ
और लगा –-
हर छोटे को
बड़ा करना धर्म है ।

अचाणचक्क एक दर्द
मन मा उठ
मिल पेय द्याई ,
छ्वट्टी सी एक खुशी
उठडीयूँ फर आई
मिल वीं थेय फ़ोळ द्याई
मिथेय संतोष मिल
अर लग --
 हर छ्वट्टी धाण थेय
 बडू कन्नू ही धर्म हूँन्द


अनुवादक : गीतेश सिंह नेगी

Thursday, May 22, 2014

अटल बिहारी वाजपेयी जी की कविताओं का गढ़वाली भाषा अनुवाद

     विश्व प्रसिद्ध कवियों की कविताओं का गढ़वाली भाषा अनुवाद श्रृंखला
  " अटल बिहारी वाजपेयी  " जी को सादर समर्पित उनकी एक कविता का गढ़वाली भाषा अनुवाद 


                                अनुवादक : गीतेश सिंह नेगी ,मुम्बई

                       कौरव कौन, कौन पांडव / अटल बिहारी वाजपेयी

कौरव कौन
कौन पांडव,
टेढ़ा सवाल है|
दोनों ओर शकुनि
का फैला
कूटजाल है|
धर्मराज ने छोड़ी नहीं
जुए की लत है|
हर पंचायत में
पांचाली
अपमानित है|
बिना कृष्ण के
आज
महाभारत होना है,
कोई राजा बने,
रंक को तो रोना है|


कु कौरव ,कु पांडव
       

कु कौरव
कु पांडव
भारी सवाल च
द्वी छ्वाड शकुनी कु फैल्युं
कूट जाल  च
धर्मराजळ छ्वाडी नी
अज्जी तलक लत जुआ कि
हर पंचेत मा पंचाली
हूँणी  बेज्जत
बिगैर कृष्ण
आज व्हेली माभारत
क्वी राजा बणयाँ
रंकैऽ जोग  ता बस लिखीं रुणी च |

अनुवादक : गीतेश सिंह नेगी ,मुंबई

विश्व प्रसिद्ध कवियों की कविताओं का गढ़वाली भाषा अनुवाद श्रृंखला : कतील शफ़ाई (1)

विश्व प्रसिद्ध कवियों की कविताओं का गढ़वाली भाषा अनुवाद श्रृंखला
 " कतील शफ़ाई " को सादर समर्पित उनकी एक शायरी  का गढ़वाली भाषा अनुवाद
                    अनुवादक : गीतेश सिंह नेगी ,मुम्बई


मेहरबानी से अगर पेश बी अैंय कुछ लोग
घाम मा लिबटयूँ छैल सी  दे ग्यीं कुछ लोग

मिल अवाज उठै छाई रिवाजौंऽ खिलाफ
बरछा लैकी कूडौं भटेय भैर आ ग्यीं कुछ लोग

जब वू बच ग्यीं त पाणी मा बुगा ग्यीं मिथेय
मारिक फाल गद्नियूँ जू बचाई छाई मिल कुछ लोग

भौंणि का कम नी छाई मुल्क मा म्यारा बी लोग
फिर्बी भैर भटेय मन्गैं कुछ लोगौंल कुछ लोग


कत्गे बार दूबट्टौं मा ज्वनी का मिल "कतील "
ल्वे अप्डी ही पेकि नच्दा द्यखीं कुछ लोग

 
अनुवादक : गीतेश सिंह नेगी ,मुंबई


Wednesday, May 21, 2014

अदम गोंडवी उर्फ रामनाथ सिंह की कविताओं का गढ़वाली भाषा अनुवाद श्रृंखला

अदम गोंडवी उर्फ रामनाथ सिंह को सादर समर्पित उनकी एक कविता का गढ़वाली भाषा अनुवाद 


         अनुवादक : गीतेश सिंह नेगी ,मुम्बई
                  
                     
  (1)

काजू भुने पलेट में, विस्की गिलास में
उतरा है रामराज विधायक निवास में

पक्के समाजवादी हैं, तस्कर हों या डकैत
इतना असर है ख़ादी के उजले लिबास में

आजादी का वो जश्न मनायें तो किस तरह
जो आ गए फुटपाथ पर घर की तलाश में

पैसे से आप चाहें तो सरकार गिरा दें
संसद बदल गयी है यहाँ की नख़ास में

जनता के पास एक ही चारा है बगावत
यह बात कह रहा हूँ मैं होशो-हवास में

गढ़वाली भाषा अनुवाद


काजू भुन्या प्लेट मा ,व्हिस्की गिलास मा
उतरींयूँ च रामराज विधायक निवास मा

छीं पक्का समाजवादी ,चाहे तश्कर व्हा या डकैत
इत्गा च असर देखा ये खद्दर का लिबास  मा

कन्नू कै मनाला खुशी वू आजादी की आखिर
 फ़ुटपाथ मा जू पहुँची अपडा घर की आश मा

पैंसोंऽळ चाहे तुम फिर सरकार गिरा द्यावा
संसद ही बदली ग्याई अब यक्ख बजार मा

जनता खुण बच्युं अब आखिर बिद्रोल ही च बाकी
या बात ब्वल्णु छौं मी  अप्डा पूरा  होश हवाश मा


अनुवादक : गीतेश सिंह नेगी ,मुम्बई

Tuesday, March 4, 2014

गढ़वाली हास्य -व्यंग्य : घपरोल

                                             घपरोल


                     (चबोड़्या -चखन्यौर्या -गीतेश सिंह नेगी ,मुम्बई )
देश मा जक्ख द्याखा तक्ख घपरोल मच्युं च ,संसद से लेकि सड़क तक गौं से लेकि बजार तलक घपरोल ही घपरोल ,घपरौल्यूं मा बिलकुल बी टैम नी च सब व्यस्त हूँया छीं ,सच बोले जाव ता अज्काल घपरोल्या फुल डिमांड मा चलणा छीं ,ग्राम सभा से लेकि संसद तलक हर कुई अफ्फु थेय भगवानै तीसरी टांग साबित कन्न् फर मिस्युं च ,कुल मिलैकी हर कुई अफ्फु थेय बडू घपरौल्या साबित करण फर लग्युं च और त और आम आदिम जू ब्याली तक घपरोल से परेशान रैंदु छाई आज वी सबसे बडू घपरोल्या बणणै कोशिश कन्नू च |
परसी हमर अडगै मा बी दाना स्याणा लोग घपरोल फर चर्चा कन्ना छाई ,हमर प्रमुख ब्वाडा चर्चा मा भारी सोच मा मुंड पकडिक बैठयाँ छाई |
प्रमुख ब्वाडा : भै बन्धो ,सरया मुल्क मा घपरोल मच्युं च ,सब्बि अपडा अपडा मुल्कै मुद्दौं- मस्लौं -समस्यौं फर घपरोल कन्ना छीं ,विकासै  बान एक जुट व्हेकि धै लगाणा छीं ,इन्मा हम्थेय बी एकजुट हूँण चैंन्द ,आखिर हमरा क्षेत्रा विकासै  बात च ,हम्थेय  बी घपरोल करण  प्वाडलू तब्बी हमरी माँग हमरी डिमांड पुरै साकलि |
मिल ब्वाल ब्वाडा यांमा परेशानी क्या मा च ,सब्बि कन्ना छीं ,तुम बी  कैरा ,उन्न बी घपरोल कन्नू ता हमरू जलमसिद्ध अधिकार च ,उन्न बी यै काम मा त हम्थेय  महारत हासिल च ,सोचणा क्या छौ ?
प्रमुख ब्वाडा : बेट्टा समस्या भोत भारी च ,पैल्ली समस्या त याच्कि "आखिर कन्नू कै करै जाव घपरोल " अर दूसरी घनघोर समस्या याच्कि आखिर घपरौल्या कू व्हा  ? मतलब कि बिरोला गौलिन्द घांडू कू  जी बांधलू ?
ब्वाडा यामा समस्या क्या च ? हमर क्षेत्र मा एक से एक घपरौल्या पोडयाँ छीं ,पूछा उन्थेय ,ल्यावा उन्की राय कि  "आखिर कन्नू कै करै जाव घपरोल " ,आप एक काम कैरा ,सरया मुल्कै  घपरौल्यूं  थेय न्युतां अर एक "घपरौल्या सम्मेलन " उर्यावा ,वेमा " आखिर कन्नू कै करै जाव घपरोल " फर चर्चा कारा ,ब्वाडा याँल अगर आप्की समस्यौ सेंट परसेंट समाधान नी व्हालू त बोल्याँ
पढ़याँ लिख्याँ आदिमौ बात अनपढ़ आदिम झट्ट से मनद ,ब्वाडा  झट्ट से "घपरौल्या सम्मेलन " का न्यूत -निमंत्रण सब्बि गौं -पंचेतौं मा पहुंचे दयाई कि भैरों क्षेत्रा विकासौ बान आज घपरोल कन्नू जरूरी चा ,किल्लैकि आप क्षेत्रा जण्या मण्या घपरौल्या छौ ,हम आपसे सगत घपरोलै आस करदो |
अब साब दिन बारै  हिसाबळ  सब्बि घपरौल्या " घपरौल्या सम्मेलन " मा पहुँची ग्यीं  |
प्रमुख ब्वाडा :भै बंधो आज भोत खुशी कि बात चा कि इलाका का सब्बि घपरौल्या विकासै  बान एक हूँया छीं ,मी घपरौल्या सम्मेलन कि शुरवात क्षेत्रा जणया मणया सामाजिक घपरौल्या आदरणीय चैत सिंह जीक  परिचय दगड कन्नू छौं,आप सब्बि जणदा ही छौ की आज से बीस साल पैल्ली जब यूंक इलाका मा सडक  आणि छाई ता यून्ल सड़क कू भारी  विरोध कार अर सड़क थेय अपडा बाँझा पुन्गडों थेय कुर्चिक नी जाण दयाई ,यी सड़क विरोध मा बीस साल तक घपरोल कन्ना रैं ,यून्ल कब्बि सब्ला लुछिं त कब्बि गैंती -कुटला यक्ख तक की यून्ल डूटीयलौं थेय ढुंगीयाँण मा बी कुई कसर नी छ्वाडी ,सड़क आज बी युंका बाँझा पुन्गडों  अर जंगलाता बीच ऐडाट कन्नी च ,लोग आज बी युंका भ्वार उकाल कटणा कू मजबूर छीं | हम्थेय फक्र च कि इन्ना कर्मठ घपरौल्या  हमर इलाका मा छीं |
चैत सिंह जी  :भै- बंधो जन्कि  आप जणदा ही छौ ,पलायन आज उत्तराखण्ड  मा एक सगत समस्या च ,आखिर किल्लैय हुणु च यू पलायन ? म्यार हिसाबळ यू सब सड़कौं वजह से हुणु च जब सड़क ही नी रैल्ली ता कक्ख भटेय हूँण पलायन ,आवा हम सब मिलिक सडक निर्माण योजनौं विरोध करला ,याँळ पलायन बी कम व्हालू ,भ्रष्टाचार बी कम व्हालू अर हमरी खेती-पाती बी बचीं राली |
प्रमुख ब्वाडा :भै जब बात घपरोल्यूँ हूणी च ता इन्मा हम राजनीतिक घपरौल्यूँ  थेय कन्नू कै बिसिरी सक्दो ,अब उत्तराखण्ड आंदोलन ता आप सब्युं थेय याद ही व्हालू ,जब सरया उत्तराखण्ड "गैरसैण -गैरसैण" ब्वन्नु छाई ता हमर यूँ राजनितिक घपरौल्यूँळ " देहरादूण -देहरादूण " बोलिक घपरोल शुरू कैर दयाई , पिछला तेरह बरसूँ भटेय "गैरसैण " फर देहरादूण कू ग्रहण युंका भ्वार ही लग्युं च ,यू हमर दिल्ली दरबार थेय एकदम समर्पित इन्ना कर्मठ राजनीतिक घपरौल्यूँ  कि ही मेहरबानी च कि आज पुठ्या जोर लगैकि बी कुई मर्द कू बच्चा "गैरसैण " थेय राजधानी घोषित नी करा सक्णु च , मी क्षेत्रा जणया मणया राजनीतिक घपरोलया नेता श्री  "खबेश जी " से हत्थ जोडिक बिनती करदू कि अपडा  घपरोल्या  बिचारौंळ घपरौल्या सम्मेलन थेय सुफल कन्ना कष्ट करयां
खबेश जी : भै-बंधो अब जब्कि हमर सब्बि नेता दिल्ली दरबार मा लम्सटट् हूँया रैंदी ,वक्खी घ्यू धुपणु कन्ना रैंदी ,अर जब्कि कैका पुठ्या जोर लगाण से बी "गैरसैण " २०१४ का चुनावी घोषणापत्र तक मा शामिल नी वे सक्णु च ता इन्मा म्यार ख्याल से गैरसैण-गैरसैण बोलण से कुई फैदा नी च ,म्यार हिसाबळ  राजधानी उत्तराखण्ड राज्यौ बीच मा ही हूँण चैन्द इल्लैय मी आप सब्यु थेय "उत्तराखण्ड नवनिर्माण आंदोलन " मा भागीदारी क वास्ता न्यूतणु छौं जैमा हम  दिल्ली -गाजियाबाद -मेरठ -सहारनपुर -यमुनानगर थेय उत्तराखण्ड मा मिलाणाकी माँग कन्ना छौ ताकि राजधानी उत्तराखण्डा बीचो-बीच यानी देहरादूण मा ही रौ ,ता आवा उत्तराखण्ड नवनिर्माण खुण एकजुट व्हेकि घपरोल करला
प्रमुख ब्वाडा :भै -बंधो भाषा अर साहित्य समाजौ ऐना हुंद ,या घपरौल्या सम्मेलन खुण बड़ी खुशी बात चकि भाषा साहित्या क्षेत्रा  बड़ा घपरौल्या श्री भाषू उदास जी  आज हमर बीच मा छी जू सदनी भाषा भाषा भाषा कैरिक ऐडाट कन्ना रैंदी पर अफ्फु कब्बि गढ़वली कुमौनी मा नी बच्ल्यांदा ,यी इत्गा बडा घपरौल्या छीं कि यी पिछला बीस बरसूँ भटेय सरया मुल्क मा भाषा बचावो आंदोलन चलाणा छीं वा बात हैंकि च खुद युंका घार परिवार मा कुई गढवली मा  नी बचल्यांदु ,युंका नौनी -नौना गढ़वली कुमौनी लोक साहित्य देखिक दूर भटेय ही जल्की जन्दी ,यूंकि सौं घैंटी छीं कि बल यून्ल गढ़वली-कुमौनी भाषाक नै नै लिपि तयार कन्नी,उत्तराखण्ड मा  उर्दू-पंजाबी भाषा अकादमी कि बिज्वाड युंका घपरोल्यापन्न कू ही निब्त लग्णी चा ,युंका घपरौल्या मिजाज देखिक आज  गढ़वली का आदि कव्युं ,साहित्यकारौं ,लिख्वारौं  आत्मा रुणाट -बब्लाट कन्नी चा ,त स्वागत कारा भाषा साहित्यौ बडा घपरौल्या श्री भाषू  उदास जीकू
भाषू उदास जी : भै बंधो गढ़वली भाषा आज अनाथ सी हुंई चा ,लाख कोशिस कन्ना बाद बी आज तलक गढ कुमौनी भाषा अर साहित्य थेय उत्गा सम्मान नी मिलु जत्गा अर ज्यांका वू हक्कदार छीं अर गढ़वली -कुमौनी भाषा कबियुं-साहित्यकारौं -लिख्वारौं देखिक मी आज कलकली लगद ,बिचरा  अफ्फी लेख्णा अफ्फी छ्पौणा अर  अफ्फी पढना बी छीं ,आठवी अनुसूची अर राजभाषा ता दूर हम अज्जी तलक अपडा घार मा ही गढ़वली कुमौन दगड न्यो निसाफ नी कन्ना छौ ,अपडा ही घार मा हमरी भाषा मौस्याण ब्वे कि औलाद जन्न् पीड़ा भोगणी च नथिर सरकार क्या भाषा आकादमी  नी बणा सकदी उर्दू -पंजबीक जन्न् | म्यार ख्याल से यांमा लिपि दोष च ,देवनागरी लिपि से अलग एक नै लिपि निर्माण कि सकत जरुरत चा ,आवा एकजुट व्हेकि "गढ़वली भाषा लिपि निर्माण " वास्ता घपरोल करला
येक बाद  सांस्कृतिक घपरौल्या श्री संस्कृति प्रसाद जील अपडा घपरौल्या बिचार रक्खीं
संस्कृति प्रसाद जी : भै बंधो हमरी सांस्कृतिक धरोहर हमरी विरासत खत्म हूँण वली च ,उन्न बी अज्काळ हर संस्था सांस्कृतिक विरासत थेय केवल मंच तलक ही रखण चाणी च , वीं सांस्कृतिक  विरासत फर असल जीवन मा कुई अंग्वाल नी ब्वटणु , इन्मा मी संस्कृति का कर्ता-धर्ता अर योजना बणाण वलूं से या उम्मीद करदू कि वू सिर्फ उत्तराखण्डौ तीज त्युहार ,लोकनृत्य -लोकगीत संगीत तलक अफ्फु थेय ना रख्याँ अर सांस्कृतिक कार्यकर्मो मा दुस्सरै संस्कृति कू जरूर सम्मान करयां चाहे अप्डी संस्कृति कू कत्गा बी अपमान- निरादर- बेज्जती किल्लैय ना व्हेय जाव ,यांक वास्ता एक संस्कृति सम्मान कि शुरवात हूँण चैन्द जैमा सिर्फ दुस्सर परदेशों क कलाकारौं -संस्कृतिकर्मियौं थेय सम्मानित करे जालू ,उन्का वास्ता " उत्तराखण्ड सांस्कृतिक विकास पेंशन योजना " लागू हूँण चैंन्द ,इल्लैय आपसे बिनिती च कि आवा सब मिलिक "सांस्कृतिक विकास आन्दोलन "  बान घपरोल कैरा
सुबेर से लैकी ब्याखुंनदा तलक किस्म किस्मौ घपरौल्या मंच फर अयें अर अपडा अपडा हिसाबळ घपरोल कन्ना कि सलाह दिणा रें ,फिर यीं बात फर ही घपरोल शुरू व्हेय ग्याई कि आखिर कैक मुद्दा फर घपरोल करे जाव |
आखिर मा दुस्सर मसलौं जन्न् यू मसला बी सरकार फर छोड़े ग्याई अर यू तय व्हाई कि  सब्बि घपरौल्युंक एक शिष्टमंडल उत्तराखण्ड सरकार अर मुख्यमंत्री दगडी भेंट कैरिक " उत्तराखण्ड घपरौल्या सम्मान " शुरू कराला ,अर २०१४ चुनौ मा क्षेत्रा कू पैल्लू एजेंडा " घपरोल श्री सम्मान " पाणु व्हालू, जे श्रेष्ठ घपरौल्या थेय यू सम्मान मिललू  वेका हिसाबळ  फिर बाकी सब्बि घपरौल्या एकजुट व्हेकि घपरोल कारला |

ये सौं- संकल्प दगडी घपरौल्या सम्मेलन खत्म व्हेय ग्याई |
२०१४ का चुनौ आण वला छीं ,सब्बि  घपरौल्या अपडा अपडा दल बल दगडी झण्डा -डंडा लेकि अपडा अपडा घपरोल खुण जुगाड -तज्जबीज करण फर लग्यां छीं आखिर " घपरोल श्री सम्मान " त सब्युं थेय चैंन्द ना |
मिल ब्वाल भैज्जी क्या व्हालू ? इनमा कन्नुकै आण बसन्त ?

बल भुल्ला कैकू गैरसैण कैकी भाषा कैकू विकास अर कैकू रुजगार ?
ता अब क्या कन्न् ?
जग्वाल कारा ?
क्यांकि जग्वाल  ?
नै नै घपरोलै जग्वाल

कुछ मैंना बाद मिल मुम्बे मा रंत रैबार ,उत्तराखण्ड खबर सार ,निराला उत्तराखण्ड अर शैलवाणी  सब्बि अख्बारौं मा या खबर बांच

"चैत सिंह ,भाषू-उदास अर संस्कृति प्रसाद थेय दगडी मिललू २०१४ कू पैल्लू " घपरोल श्री सम्मान "
तबरी प्रमुख ब्वाडौ फोन आ ग्याई - बल यार सरया इलाका मा  घपरोल ही घपरोल मच्युं च पर अब घपरोल यीं बात फर हूँणु चकि असल घपरौल्या कू जी च ?
मिल ब्वाल त कु च असल घपरौल्या ?

साला " खबेश कु बच्चा "  इत्गा मा फोन कटे ग्याई
सैद  ब्वाडा यक्ख नै वल्लु घपरोल शुरू व्हेय ग्याई  जणि
Copyright@ Geetesh Singh Negi ,Mumbai  2/03/2014
[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक  से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- महर गाँव निवासी  द्वारा  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; कोलागाड वाले द्वारा   पृथक वादी  मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मल्ला सलाण  वाले द्वारा   भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; पोखड़ा -थैलीसैण वाले द्वारा  धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले द्वारा  वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  द्वारा  पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक द्वारा  विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक द्वारा  पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक द्वारा  सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक द्वारा  सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक द्वारा  राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; सांस्कृतिक मुल्य ह्रास पर व्यंग्य , गरीबी समस्या पर व्यंग्य, आम आदमी की परेशानी विषय के व्यंग्य, जातीय  भेदभाव विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं, पर्यावरण विषयों   पर  गढ़वाली हास्य व्यंग्य, राजनीति में परिवार वाद -वंशवाद   पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ग्रामीण सिंचाई   विषयक  गढ़वाली हास्य व्यंग्य, विज्ञान की अवहेलना संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य  ; ढोंगी धर्म निरपरेक्ष राजनेताओं पर आक्षेप , व्यंग्य , अन्धविश्वास  पर चोट करते गढ़वाली हास्य व्यंग्य  .......  श्रृंखला जारी  ]  

Sunday, March 2, 2014

गढ़वाली हास्य व्यंग लेख : परपंच






                                                    " परपंच  "
                             
                              (चबोड़्या -चखन्यौर्या - गीतेश सिंह नेगी ,मुम्बई )


परपंचै  महिमा अपार च ,परपंच एक खास किस्मौ  भोत ही पुरणी कला कौंल च ,परपंच अप्णाप मा एक शास्त्र च जैकू ज्ञान  सरया  दुनिया मा सब्बि जग्गा एक जन्न फलीं फूलीं ,कब्बि यक्ख कब्बि  वक्ख ,कब्बि यीं कुणी मा कब्बि वीं पुंगडी मा ,कब्बि  ये छाल कब्बि वे छाल ,कब्बि   ये मुल्क ता कब्बि हैंका मुल्क ता कब्बि   म्यार दयार मा ता कब्बि आप्क चौक -सगोडी मा | कुल मिलैकी परपंच विधा आदम सभ्यतौ विकासक जलम भट्टेय आज तलक  लगातार फलणि फूलणि च अर परपंची आज बी ठाट कन्ना छिन्न | परपंच विधौ  जनक यांनी  जलम दाता कू छाई ,यीं कला कू जलम कब अर  कक्ख भट्टेय व्हाई ठीक ठीक ता नी बुल्लेय जा सकदु पर हाँ या बात सोला अन्ना सच च अर यामा कुई लुकाण छुपाण वली बात भी नी च  की बिना "परपंच महिमा " का बखान अर वर्णन यीं  दुनियक   कै बी कालखंड  मा कै बी कुणी कुम्चरि  कू  सामजिक - साहित्यिक अर राजनतिक इतिहासक जात्रा पूरी नी व्हेय सकदी | यीं कलौ वृतांत  माहभारत से लेकि रामैंण अवेस्ता -ए जेन्द अर कुरान सब्बी जग्गा मा कै ना कै रूप मा मिली ही जालू अर आज त यीं विधा का  ज्ञाता और जणगुरु लोग घर -इस्कूल -दफ्तर- अस्पताल अर   जिदगी का हर कुणा मा अप्डी यीं कला कौशल कू प्रत्यक्ष -अप्रत्यक्ष रूप मा प्रदर्शन करद दिखे जा सकदीं |

अज्कालौ जीवन मा परपंच ही "ब्रह्मास्त्र " च  पर ये ब्रह्मास्त्र थेय चलाणु हर के आदिम या मनखी बसे बात नी च , यांक वास्ता मनखी थेय झूठ अर छल  शास्त्र मा आचार्य हूँण जरूरी हुंद बिना झूठ अर छल  शास्त्र  ब्योंत मनखी परपंच शास्त्र कू  ज्ञाता कब्बी व्हेय ही नी सकदु | अगर परपंच कू ज्ञाता /जणगुरु  अक्वेकी पररपंच कु इस्तेमाल करण जणदू  व्हा त  भै  रे परपंच थेय  तुम ब्रह्मास्त्र  से कम विनाशकारी- विध्वंसकारी  अर अशागुनी  नि समझ्यां अर दुश्मंनो  जैड  टक्क  लगैक मोरयीं  समझ्यां |

परपंच थेय अलग अलग किस्मौ लोग  अलग अलग नौ  से जणदिन अर अपड़ी सुविधौ हिसाब से वेकु इस्तेमाल करदीं । कुछ लोग परपंच  थेय तेज दिमागै धाण बोल्दिन  त  कुछ लोग  खाली  शैतानी ख्यालौ उमाल । कुछ भला लोग परपंच  थेय यीं कला  कौंळ  थेय परपंच  बोलणु  अप्डू अर अपडा  परिवार कि मर्यादौ  घोर उलंघन   अर अपमान  समज्दीं उन्का हिसाब से परपंच परपंच  नि च  माया या लीला च ।
ना  भै  या बात  हजम नि हुणि  च यत  वी  बात  व्हाई  "तुम करिला  ता  रासलीला अर हम करला  ता कामक्रीड़ा " ।

अब द्वापर मा ही देखि  ल्यावा परपंच  का एक से एक ज्ञाता मिली जाला । लोग बोल्दिन  साब गन्धार नरेश शकुनि यीं विधा का असल ज्ञाता जणगुरु छाई  पर भै लोगौं क्या च अ र गिच्चा बुबा  क्या जांद  लोग ता  इन्ह बी बोल्दिन  कि यीं विधा कु असल सल्ली अर जलम दाता  एक सुदर्शन  चक्रधारी छाई ।  देखे  जाव कम ता धॄतराष्ट्र और वेका नौना  सुयोधन -दुशासन बी नि छाई । लोग ता  बोल्दिन कि साब  कौरव पैदा ही परपंच  से हुंई और आखिर समय तक छल -परपंचौ बाट फर ही हिटणा रैन ।  खैर उन्कू  क्या उन्का  ता  नाम ही दुर्योधन अर दुशासन छाई उन्कू  त परपंच  फर जलम  सिद्ध अधिकार  छाई ।
 परपंचै डिमाण्ड  महाभारत मा  बरोबर बढ़णी  राई और इत्गा बढ़ ग्याई  कि एक दा ता भगवान्  जी थेय अप्डू पांचजन्य बजाण पोड़ी ग्याई वी भी ठीक वे टैम फर जब धर्मराज "अश्वतथामा हतो  हत :  बोलिक  " नरो वा कुञ्जरो वा" बोलण  वलु छाई । अब साब आप बोलिला  कि यांम क्या परपंच  य ता प्रभु कि  माया छाई  ।अज्जी  साब कैकि  माया अर  कैकि छाया    ? बजाण  वला कु क्या गाई पर बिचारा आचार्य  द्रोण जु सब्भी  अस्त्र -शस्त्र अर  शास्त्र का ज्ञाता  छाई प्रभु कि यीं "माया " का  ऐथिर धनुष बाण  चूलैकि लम्पसार व्हेय  गईं कि ना ?

अब साब जब बात आचार्य द्रोण फर आ ही ग्याई  ता एकलव्यौ  बुरु भी किलै करण वे  बिचर थेय जी   किलै बिसराण  जैल सरया  महाभारत मा कैकु  बुरु नीं कारु  कैकु  बुरु नि स्वाचु । इतिहास मा एकलव्य आचार्य  कि विशेष कृपा/माया /लीला से   एक गुरु भगत  शिष्य त बणी  ग्याई  पर बडु धनुर्धारी नि बण साकू किल्लैकि  गुरुजीळ  गुरुदक्षिणा  मा वेकु दैण हथकु गुंठा मांगिक लच्छी /लुछी द्याई ।किलै भै ? आखिर क्या दोष  छाई  वे नौना  कु  ? क्या भील  या जंगली कु नौनु हूणु  ही वेकु अपराध  छाई ?
अज्जी  नौनु  समर्पित छाई वेमा भी लक्ष्य  थेय भेदणा कि और दुनियौ सबसे  बडू धनुर्धारी  बणणौ वू सब्बी गुण छाई जु   अर्जुन या  कर्ण मा छाई त  फिर आखिर कमी कक्ख  रै ग्ये  होलि ?
अज्जी साब एकलव्य  थेय परपंच शास्त्र कु ज्ञान नि छाई अगर हुन्दू तू उतरी दा पड़म बोल्दू   -गुरु जी आपकी सौं -करार आप जण्या ,मिल  गुरु भक्त बणणा बान धनुष बाण  नि थामू छाई बल्कि एक   श्रेष्ठ धनुर्धारी बणणा बान थाम छाई ,मिथेय माफ करयां मी कैकि सौं करार का वास्ता अप्डू "गुंठा" भी ना दयूं । पर निर्भगी एकलव्य का जोग मा सैद यी लिख्युं राई । एकबार वेकु "गुंठा" गाई  ता  सब कुछ गाई ?

आज कुई नि जणदू कि  "गुंठा" दिणा  बाद  एकलव्य  क्या दशा व्हेय होलि ,वे फर क्या बीती  होलि ?

महाभारत मा परपंची  ब्रहमास्त्र कू इस्तमाल शुरू भटेय आखिर तलक हुणु ही राई ,शकुनी का पासौं की रगड अर सुदर्शन की छत्र छाया मा सरया कुरु वंश हलैय ग्याई ,फुके ग्याई अर वेका चूल चूल तक हिली ग्याई छाई | जू परपंच  शास्त्र की जानकारी रखदा व्हाला वू कुरु वंश का नाश मा  परपंचै  मेहरबानी  थेय नी बिसिर सकदा |

अगर ठीक से देखेय जाव ता परपंच कू यू खेल कौरवौं अर पण्डों का जलम से भोत पैली महाराज शान्तनुक भ्वार ,सत्यवती का बुबल शुरू कैर याल छाई ,सत्यवती  बुबा कू ता कुछ नी  गाई पर भुगतण प्वाड गंगा पुत्र भीष्म थेय जैकू राजपाट त गाई गाई अर अणब्यो रैण प्वाड अलग से अर वेका बाद भी आखिर मा क्या हत्थ लग्ग " शर सैया " माने की बाणों कू डीशाण |बिचारा देबता समान भीष्म पितामह बी परपंची पीड़ा से नी बच साका ,सरया माभारतम या पीड़ा थेय सैद सब चुल्ले ज्यादा उन्ल ही भ्वाग |
उन्त  परपंचै पीड़ा पण्डोंल बी कम नी भोगी ,सरया महाभारतम दुर्योधन अपडा भै -बंधो -दगडियों  मदद से उन्थेय बगत बगत परपंची   भ्याल- फांगों मा मला-ढिश उन्दु -उब्बू ध्वल्णु -चुलाणु राई अर बिचारा पण्डों थेय आखिर मा क्या मिल ,परपंच पीड़ा भ्वगद - भ्वगद बिचारा आखिर मा स्वर्गवासी वे गईं |

साब मांग ता परपंचै त्रेतायुग मा भी कम नी छाई परपंची लोगौंल कैकयी जन्नी वीरांगना -पतिव्रता रानी थेय नी छ्वाडू ,वा कैकयी ज्वा देवासुर संग्राम से लैकी हर सुख -सुख मा राजा दशरथै दगड्या सौन्जड्या बणी राई मददगार बणी राई  वा बी झट्ट परपंचै चपेट मा आ ग्याई ,फिर क्या व्हाई या बात जग जाहिर च बिचरा रामचंद्र जी अर सीता माता थेय  लक्ष्मण दगडी चौदह बरस तक डांडीयूँ -कांठीयूँ मा भटकण प्वाड अर भुगतण प्वाड  वेका बाद सीता हरण की पीड़ा अर फिर धरमयुद्ध लंकापति रावण दगडी | बिचारा राम जी बी नी बच साका यीं परपंची  पीड़ा से  ,क्या दिन नी द्याखा उन्ल यूँ परपंचयूँ का भ्वार ,खैर हम कैर भी क्या सक्दो , आखिर यत प्रभु की माया च |

 स्वर्गलोक मा बी ये शास्त्र का ज्ञाता लोगौं की कुई कमी नी छाई पर अगर  देखेय जाव त ये माया शास्त्र का असल जणगुरु त देवराज इंद्र अर भगवान विष्णु ही छाई जौंकी माया का सतयां -हल्याँ -फुक्याँ -खफ्फचयाँ खबेश -राक्षस - मनुष्य और ता और देव गण भी उन्का खुटटौं मा त्राहि माम त्राहि माम करदा छाई |राक्षस तप कैरिक अपडा अपडा देब्तौं थेय खुश कैरिक पैली वरदान -शक्ति मंगदा छाई फिर विष्णु जी देवराज इन्द्र
अप्डी माया से सब बराबर कैर दिंदा छाई ,बिचारा राक्षस गण फिर तपस्या करदा छाई अर विष्णु जी अर देवराज इन्द्र फिर से अप्डी माया से  सब बराबर कैर दिंदा छाई ,इन्म कलेश तब हुणु ही छाई अर व्हाई भी च कत्गेय दा त देवासुर संग्राम तक करण प्वाड बिचरौं थेय अपडा हक्क अधिकारै बान | देब्तौं अर राक्षसौं मा यू लुका छुप्पी परपंची  खेल चल्णु राई युगौं -युगौं तक | या बात मी नी बोलणु छौं किताबौं मा लिखीं च अब आखिर समोदर मंथन कू बखान म्यारू ता नी करयुं ना |

अब साब जब सतयुग ,द्वापर ,त्रेतायुग परपंची  पीड़ा से नी बच साका ता हम तुम जन्ना कलजुगी लोगौं क्या ब्युंत च क्या औकात च | हम ता उन भी पैली परपंचो मा अल्झ्याँ छौं | रुपया -पैसा खाणु- कमाणु रैणु -सैणु वू भी इन्ह मँगैई मा क्या कम परपंच  च | ये कलजुग मा औलाद बाद मा पैदा हुंद परपंच  पैल्ली शुरू व्हेय जन्दी | व्हेय जाव ता परपंच  न व्हा त परपंच |आदिम दुनिया छोडिक चली जांद पर परपंच  च की मोरद मोरद अर वेका बाद बी वेका गाल बिल्क्युं रैन्द | कुल मिलाकी परपंच सखियुं भटी आज तलक एक कामगार शस्त्र अर शास्त्र रै जैकी महिमा बखान बिगैर  सामजिक -सांस्कृतिक अर साहित्यिक संसारै बारामा मा सोचुणु बी पाप च | राजनीति पुंगडीयूँ मा इन्न कुई हल्या नी च जैल यूँ पुंगडीयूँ मा परपंची निसुडी नी लगै होलि या फिर परपंची बीज नी बुता होला  अज्काल बिन परपंची बीजौं बुत्यां सत्ता सुखै फसल कब्बी हैरी व्हेय ही नी सकदी |

परपंच शास्त्र कू रसपान कैरिक ये रस थेय चाखिक आप कुछ भी कैर सक्दो ,आप तिल कू ताड़ और राई कू पहाड कैर सक्दो ,आप दिन दोपहरी कै थेय बी लुट सक्दो ,वेकु कुछ भी लुछिक अप्डू बतै सक्दो वू भी अप्डी मुछौ थेय पलैकी आँखा दिखैकि | परपंच की महिमा से आप कैकी भी मूण मडकै ना ना मडक्वै सक्दो आप कैक्की भी पुंगडीयूँ  मा उज्याड़ ख्वैकी ,वे थेय ही चटेलिकी गालियुं प्रसाद जी भोरिक दे सक्दो |परपंच शास्त्र का ज्ञाता कैकी सारयुं मा पैटदी कूल थेय तोडिक अपडा स्यारौं मा कब्बी बी पैटा सक्दिन वू भी छज्जा मा खुट्ट मा खुट्ट धैरिक बैठिक | परपंची  लोग दुसरौं क्याला- अखोड या ककड़ी चोरिक उन्ह थेय ही चोरी फर बडू भारिक इन्न उपदेश दे सक्दिन की जन्न की  उन्का अपडा ही घार मा चोरी हुईं होलि |
उन्न त बुलेय  जान्द की पंच परमेश्वर समान हुंद पर किल्लैकी परपंच की पीड़ा से आज तलक कुई नी बच साकू यख तक की परमेश्वर बी ना त सैद याँ वजह  से अज्काला पंच भी परपंची लोगौं की  डैर खन्दी ,उन्की आव भगत सेवा पाणी करदीं ,परपंचै महिमा सुणिक लोग इत्गा प्रभावित हुईं की कक्खी कक्खी ता पंच  ही परपंची व्हेय ग्यीन | हमर मुल्के कानून व्यवस्था भी  इन्ना परपंची लोगौं से अक्सर प्रेरणा लिणी रैन्द |

जू मनखी परपंच शास्त्र कू ज्ञाता हुंद वू धरती अगास एक कैर सकद ,वू पाणीम बी आग लग्गा सकद अर हव्वा-औडल  थेय भी सुखा सकद |
अब आप बुन्ना व्हेला की क्या मूर्ख आदिम च यार यू  ? आप बोलिला की  आत्मा एक इन्ह चीज च की ज्यां थेय ना कुई ना काट सकदु ,ना फुक सकदु ज्यां थेय पाणी बी बुगा नी सकदु अर हवा भी ज्यां थेय सुखा नी सकदी  ?आप बोलिला की यार सुणयू नी च
नैनं छिदन्ति शस्त्राणी नैनं दहति पावकः l
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः ||

अब आप बोलिला की परपंच  आत्मा कू कुछ नी बिगाड़ सकदु ? ना वीं  थेय फुक सकदु ना  वीं थेय बुगा सकदु ना वीं थेय चिर सकदु ?
अरे भै आप थेय कू समझा और कन्नू कै समझा की परपंची आत्म ज्ञान  थेय अफवाह जन्न् समझदीन,परपंची मनखी खुण छल शास्त्र अर  झूठ
शास्त्र कू ज्ञान जरूरी च वेकि आत्मा ता वे दिन ही मोर जान्द  जे दिन वू परपंचै पाठशाला मा दाखिला करांद ,वू शरीर अर आत्मा का मोह मा नी अल्झदु ,किल्लैकी शरीर से बडू त्याग आत्मा कू हुंद अर परपंची मनखी आत्मा कू त्याग कैर दिन्द इल्लेय परपंची मनखी परम योगी हुंद |
  परपंची मनखी सब्युं थेय सिर्फ एक नजर से देखद - मतलबी नज़र से ,वू कैमा कुई भेदभाव नी करदू ,सब वे खुण एक बराबर हुन्दी ,
आप बोल सक्दो की अज्काळ सै चराह से असल समाजवादी  ता परपंची लोग ही छी |
परपंचै  महिमा भ्वार जोगी चोर अर चोर जोगी व्हेय सकद ,झूठ सच अर सच सफ़ेद झूठ व्हेय सकद|
अज्काल प्रपंच का जणगुरु लोगौंकि राजनीति मा जबरदस्त डिमांड च ,अज्काल यी ज्ञाता लोग बन्नी बन्निक स्टिंग आपरेशन ,व्यक्ति विच्छेदन कैरिक जंक-जोड़ करिक अप्डी -अप्डी जुगत बिठाण मा लगयां छीं ,असल अर घाघ परपंची खादी कोट पैरिक दिल्ली ,देरादूण अर राजधानियुं मा लाल बत्ती रिन्गाण फर लग्यां छिन्न ,जनता जनार्दन थेय झूठा बचनो अर घोषणा कि  चुस्की- विस्की  पिलाणा छिन्न |
परपंचै ज्ञाता दागदार व्हेकि भी बेद्दाग ,चोर व्हेकि भी सिपहसलार -थानेदार बणिक घूमणा  छी ,जक्ख द्याखा परपंची ऐथिर हूँया छी |
सामाजिक कार्यकर्मों मा परपंची नेता -सामाजिक कार्यकर्ता अध्यक्षीय कुर्सी फर आज तलक बी उन्ही चिप्कयाँ छिन्न जन्न् धृतराष्ट्र कौरवौं का प्रेम मा अधर्म से चिप्कयाँ छाई ,वू आज भी बस फोटो  खिचाण अर रिबन कटण मा या फिर धू-धूपंण करण तक ही सीमित छिन्न ,विकाश कार्यौं का वास्ता उन्की आन्खियुं फर गांधारी जन्न् पट्टी बंधीं च |

अगर आप साहित्य मा छौ त भी परपंच थेय नमस्कार करया बिना आप ऐथिर नी बढ़ी सकदा ,परपंच आप्थेय रचना से लैकी पाठक ,लिख्वार से लैकी संपादक अर समारोह से लैकी सम्मान सब कुछ दयालू ,परपंचै कृपा से आप काणा व्हेकि बी मानसरोवरौ हंस व्हेय सक्दो आप सूरदास व्हेय कि बी नैनसुख नौ से जणे जा सक्दो ,आप बिना कुछ लेख्याँ बी सब कुछ लेखि सक्दो ,आप बिना कुछ करयाँ बी सब कुछ कैर सक्दो |

परपंचै महिमा बखान -गुणगान करणु  मी जन्न् मूर्ख आदिमौ बसै बात नी च काश आज महाकवि कालिदास ,भूषण या माघ बच्यां हुंदा त वू जरूर रस,छन्द अर अलंकारौ गैहणा-पाता पैरेक " परपंच शास्त्र " कू बखान करदा |
त फिर अब स्वचणा क्या छो  ? ब्वाला फिर -  ॐ परपंचाय  नमो : नम :


Copyright@ Geetesh Singh Negi ,Mumbai  22/2/2014



[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक  से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- महर गाँव निवासी  द्वारा  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; कोलागाड वाले द्वारा   पृथक वादी  मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मल्ला सलाण  वाले द्वारा   भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; पोखड़ा -थैलीसैण वाले द्वारा  धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले द्वारा  वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  द्वारा  पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक द्वारा  विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक द्वारा  पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक द्वारा  सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक द्वारा  सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक द्वारा  राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; सांस्कृतिक मुल्य ह्रास पर व्यंग्य , गरीबी समस्या पर व्यंग्य, आम आदमी की परेशानी विषय के व्यंग्य, जातीय  भेदभाव विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं, पर्यावरण विषयों   पर  गढ़वाली हास्य व्यंग्य, राजनीति में परिवार वाद -वंशवाद   पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ग्रामीण सिंचाई   विषयक  गढ़वाली हास्य व्यंग्य, विज्ञान की अवहेलना संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य  ; ढोंगी धर्म निरपरेक्ष राजनेताओं पर आक्षेप , व्यंग्य ,अन्धविश्वास  पर चोट करते गढ़वाली हास्य व्यंग्य  श्रृंखला जारी ]  

गढ़वाली हास्य व्यंग लेख : घंग्तोल




                              
                                       घंग्तोल
                              
                                      (चबोड़्या -चखन्यौर्या -गीतेश सिंह नेगी )

हमरू प्रमुख ब्वाडा अज्काल भारी घंग्तोलम् च | प्रमुख ब्वाडा अप्डी सरया जिंदगी विकास खूणी खैर खाणा रैं | ब्वाडा अर विकासौ दगडू बी कन्नू तब्बा जन्न किन्गोडा अर कांडा कू ,जन्न गौडी अर घासकू या फिर जन्नू बखरौं अर बाघौ |
मतलब ? नी बिंन्गा ,ढ़ंग से  बिंन्गावा ?
अरे दिदा मतलब कु ही  त सरया खेल च,सूणीयूँ  नि च

 ना कुई तेरु ना कुई मेरु ,मतलब कु खेल चा
काण्डा लग्गा ईं दुन्याँ मा सब टक्कौं कू खेल चा

अरे दिदा मतलब बिलकुल साफ़ च जक्ख किन्गोडा पकला वक्ख कांडा भी त लगला ,जै गौं गौर व्हाला वक्ख उज्याड़ बी ख्येली ना ,अरे भै जक्ख बखरा व्हाला  बाघ बी ता वक्खी लगलू ना
ब्वाडा सरया जिंदगी विकासौ नौ फर काम कन्नू राई पर विकास कन्नू अर  कैकु व्हाई या बात ता सब्बी जणदी ना |डिग्गी से लैकी इस्कूल ,चक्कडाम से लैकी सड़क , गौं से बिलोक तक ब्वाडा सब कुछ खै ग्याई पर ब्वाडा च की अज्जी बी मनणु नि च
ब्याली सुबेर लेकि बम्बे मा झबरू दा खुण ब्वाडा कू फोन आ ग्याई

झबरू दा : ब्वाडा नमस्कार ,सब राजी खुशी
ब्वाडा : नमस्कार बेट्टा ,सब राजी खुशी लक्ष्मी की कृपा से
झबरू दा : और क्या झर्र फर्र हूणी च ब्वाडा अज्काल
ब्वाडा : बस ब्बा ,कुछ खास ना पर छुच्चा या अज्काल मी भारी घंग्तोल मा पोडयूँ छौं
झबरू दा: क्या बात ब्वाडा ?
ब्वाडा : क्या बताण बेट्टा ,समस्या भारी च ,त्वी कुछ उपाय बता दी ?
झबरू दा:     पर ब्वाडा बात क्या व्हाई ,इन्न त बतादी ?
ब्वाडा : बेट्टा बिलोक से भैर मेरी कुई पूछ जाच नि च ,मिथेय दिल्ली -देरादूण मा कुई नि जणदू ,कुछ इन्न तरीका बतादी की सरया दुन्या मा मेरी हाम फ़ैल जाव ,मी फेमस व्हेय जौं
झबरू दा: ब्वाडा ईं उमर मा फेमस व्हेक्की क्या कन्ना तिल अब ?
ब्वाडा : यार बेट्टा ,ठट्टा नि कैर ,मी भोत सिरयस छौं
झबरू दा : ब्वाडा तू भल्ला भल्ला काम कैर ,लोगौं सेवा कैर , जै गौं सड़क नि वक्ख सड़क पहुंचा ,जक्ख पाणी नि वक्ख पाणी पैटादी ,जक्ख इस्कोल नि वक्ख इस्कोल खोल ,या फिर इन्न कारा की अपडा बिलोक मा एक बडू अस्पताल बणवावा ,आप्थेय त पता ही च ना की पौड़ी मा अस्पताल कत्गा खस्ता हाल मा छीं ,फिर देख सरया मुल्क मा तेरी हाम नी होलि त बोली
ब्वाडा : ना यार तू सम्झणु नि छै ,मिल काम थोड़ी माँग ,मी त बस चम्म फेमस हूँण चाणू छौं अर फेमस बी राष्ट्रीय स्तर फर ,सम्झिगे ना
झबरू दा: पर ब्वाडा तिल  फेमस व्हेय की कन्नू क्या चा ?
ब्वाडा: यार मी विकास कन्न चाणू छौं
झबरू दा: ब्वाडा यत भोत अच्छी  बात च आप यीं उमर मा बी विकासै बात कन्ना छो ,सोचणा छो ,तुम इन्नु कैराकी  अपडा क्षेत्र मा पेयजल या सिचाई योजना बणावा ,बांजी पुंगडीयूँ स्यारियुं मा पाणी पहुंचलू ता लोग तुम थेय माधो सिंह भंडारी जन्न् याद कराला
ब्वाडा : अब्बे यार तू लाटू छई क्या ? मी अपडा विकासै बात कन्नू छौं न की अपडा गौं- मुल्कै विकासै ,उन्न बी गौं- मुल्कै विकास त हम साखियुं भटेय करण ही लग्यां छौं ,हाँ वा बात हैंकि च की काम कागजौं मा हूँणु च पर छुच्चा कुछ त हूँणु च ना ,अरे यार तुम प्रवासीयूँ सोच भी हट्ट रे मक्खी जक्खा तक्खी जन्नी च ,अरे भै तुम लोग या बात आखिर कब्ब सम्झिला की पहाड़  अब वू पहाड़ नी रै ग्याई जन्नू तुम छोडिक आई छाई ,यक्ख गौं मा मनखी नी छीं अर तुम सलाह दिणा छौ सिचाई अर पेयजल योजना की
झबरू दा: ब्वाडा आप इन्न कारा की कुलदेवी कू देब्तौल कारा ,ये बाना से सब्बी भै बन्ध गौं मा आला अर आप्क नौ हाम भी व्हेय जाली दिल्ली-बम्बे मा
ब्वाडा : यार झबरू तू बी ना बस ,यक्ख लोग एक दूसरै शक्ल देखणा कू राजी नी छीं ,लोगौं मा कैका सुख दुःख का बान बगत नी च अर तू बुनू  छई की देब्तौल कारा ,यक्ख आदिम ही मढक्याँ छीं तू देब्तौं बात कन्नी छई ,बेट्टा यक्ख देब्तौं थेय पूजण से पैल्ली मन्खीयूँ थेय पूजूंण प्वाडालू ,ना भै ना मी से त नी हूँणा ईं उमर मा यी खट्टा करम
झबरू दा : ओह्ह ! ता ब्वाडा आप इन्न कारा की फेसबूक या ट्वीटर मा अैकी सुबेर शाम उत्तराखण्डौं नाम फर  टीवीटयाट् कारा या फिर अप्डी मुखडी दिखावा ,सुद्दी -मुद्दी चर्चा बहस कारा जन्की पहाड बचावा -पहाड़ बचावा ,या फिर गढ़वाली भाषा थेय मोरंण से बचावा या फिर पहाडै संस्कृति नाम फर् सुद्दी -मुद्दी कू रुणाट कारा ,अज्काल ज्यदातर संस्था या बडा बडा नेता इन्नी त करणा छीं ,काम कम कारा अर दिखावा भन्डिया कारा ,फिर देखा तुम्हरी हाम दिल्ली -बम्बे तक नी फैलली त बोल्याँ

ब्वाडा : ना यार फेसबूक -ट्वीटर अर ई तरीका मीथेय नी जमदा अर फिर जू सब कन्ना छीं वेथेय कन्ना मा मज्जा  नी आन्दु ,उन्न भी इन्ना दुत्ता काम कन्ना मा समय अर रुपया दुया बर्बाद हुन्दी ,मीथेय तू कुछ झट्ट -फट्ट वल्लू उपाय बता यार
झबरू दा: हम्म ,ब्वाडा तू इन्न कैर बिग बॉस या फिर कै राखी सावंत टैपक रियल्टी शो मा आ जा ,फिर देख तेरी धूम देश विदेश मा नी  मची ,अर दिल्ली -बम्बे का कार्यक्रम मा तेरी डिमांड नी होलि त तू  म्यारू नौ बदली दे
ब्वाडा : ना यार मैमा इत्गा बगत नी च ,छूच्चा मेरी उमर कू ता ख्याल कैर ज़रा
झबरू दा : ओह्ह ! ब्वाडा फिर त तू एक बस काम कैर ,वे थेय कैरिक तू घडिम चट्ट चट्टाक से सरया दुनिया मा मशहूर व्हेय जैली ,ना रुपया पैसा कू खर्चा ,न बगता की अबेर अर नाम हाम भी सरया दुनिया मा ,फिर देख टी .वी . से लैकी अख्बारौं -खबरों मा ,जे कैक्की गिच्ची फर सरया दुनिया मा त्यारु ही नाम व्हालू
ब्वाडा : हाँ हाँ ,शाबास बेट्टा ,जल्दी बता क्या कन्न् ?
झबरू दा: ब्वाडा अज्काल चुनौ की बहार च ,इन्न कैर कै बडा राष्ट्रीय नेता थे खुज्या जू सबसे ज्यादा भ्रष्ट व्हा पर जैकी राष्ट्रीय राजनीती मा मजबूत पकड़ व्हा
ब्वाडा : अच्छा फिर क्या कन्न् ?
झबरू दा: वेकि प्रेस कॉन्फ्रेस  मा जाकी कै बी गंभीर राष्ट्रीय मसला जन्की भ्रष्टाचार फर सवाल कैर
ब्वाडा : अच्छा -अच्छा ,फिर वेका बाद क्या कन्न्
झबरू दा : फिर झट्ट से फुर्ती दिखैकी ,एक काम करी ,फिर देख क्या हुंद
ब्वाडा : बोल बोल जल्दी  बोल क्या कन्न् ?
झबरू दा: जूत्यौल कैरी वख्मा ही साला कू
इत्गा बोलिक झबरू दा ,गुस्सा मा फोन काटी दिन्द !


Copyright@ Geetesh Singh Negi ,Mumbai  2/2/2014




[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक  से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- महर गाँव निवासी  द्वारा  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; कोलागाड वाले द्वारा   पृथक वादी  मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मल्ला सलाण  वाले द्वारा   भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; पोखड़ा -थैलीसैण वाले द्वारा  धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले द्वारा  वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  द्वारा  पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक द्वारा  विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक द्वारा  पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक द्वारा  सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक द्वारा  सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक द्वारा  राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; सांस्कृतिक मुल्य ह्रास पर व्यंग्य , गरीबी समस्या पर व्यंग्य, आम आदमी की परेशानी विषय के व्यंग्य, जातीय  भेदभाव विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं, पर्यावरण विषयों   पर  गढ़वाली हास्य व्यंग्य, राजनीति में परिवार वाद -वंशवाद   पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ग्रामीण सिंचाई   विषयक  गढ़वाली हास्य व्यंग्य, विज्ञान की अवहेलना संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य  ; ढोंगी धर्म निरपरेक्ष राजनेताओं पर आक्षेप , व्यंग्य , अन्धविश्वास  पर चोट करते गढ़वाली हास्य व्यंग्य    श्रृंखला जारी  ]