हिमालय की गोद से

हिमालय  की  गोद  से
बहुत खुबसूरत है आशियाना मेरा ,है यही स्वर्ग मेरा,मेरु मुलुक मेरु देश

Wednesday, May 21, 2014

अदम गोंडवी उर्फ रामनाथ सिंह की कविताओं का गढ़वाली भाषा अनुवाद श्रृंखला

अदम गोंडवी उर्फ रामनाथ सिंह को सादर समर्पित उनकी एक कविता का गढ़वाली भाषा अनुवाद 


         अनुवादक : गीतेश सिंह नेगी ,मुम्बई
                  
                     
  (1)

काजू भुने पलेट में, विस्की गिलास में
उतरा है रामराज विधायक निवास में

पक्के समाजवादी हैं, तस्कर हों या डकैत
इतना असर है ख़ादी के उजले लिबास में

आजादी का वो जश्न मनायें तो किस तरह
जो आ गए फुटपाथ पर घर की तलाश में

पैसे से आप चाहें तो सरकार गिरा दें
संसद बदल गयी है यहाँ की नख़ास में

जनता के पास एक ही चारा है बगावत
यह बात कह रहा हूँ मैं होशो-हवास में

गढ़वाली भाषा अनुवाद


काजू भुन्या प्लेट मा ,व्हिस्की गिलास मा
उतरींयूँ च रामराज विधायक निवास मा

छीं पक्का समाजवादी ,चाहे तश्कर व्हा या डकैत
इत्गा च असर देखा ये खद्दर का लिबास  मा

कन्नू कै मनाला खुशी वू आजादी की आखिर
 फ़ुटपाथ मा जू पहुँची अपडा घर की आश मा

पैंसोंऽळ चाहे तुम फिर सरकार गिरा द्यावा
संसद ही बदली ग्याई अब यक्ख बजार मा

जनता खुण बच्युं अब आखिर बिद्रोल ही च बाकी
या बात ब्वल्णु छौं मी  अप्डा पूरा  होश हवाश मा


अनुवादक : गीतेश सिंह नेगी ,मुम्बई

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