विश्व प्रसिद्ध कवियों की कविताओं का अनुवाद
गढ़ भाषा गौरव श्री "नरेंद्र सिंह नेगी " जी " को सादर समर्पित उनकी एक रचना का अनुवाद ,अनुवादक : गीतेश सिंह नेगी ,
" खैरिका अन्धयरों मा खोजायूँ बाटु "
नरेंद्र सिंह नेगी
खैरिका अन्धयरों मा खोजायूँ बाटु ,
सुख का उज्याला मा बिरडी ग्यूं -बिरडी ग्यूं
आँखा बुझिक सुलझिन गेड ,
आँखा खोली अल्झी ग्यूं -अल्झी ग्यूं
खैरिका अन्धयरों मा खोजायूँ बाटु ,
उमर भप्पेय की बादल बणी ग्ये ,बादल बणी ग्ये
उड़दा बादल हेरदी रयूँ ,हेरदी रयूँ
आँखा बुझिक सुलझिन गेड ,
आँखा खोली अल्झी ग्यूं -अल्झी ग्यूं
खैरिका अन्धयरों मा खोजायूँ बाटु ,
ज्वानि मा जरा सी हैंसी खते छै ,हैंसी खते छै
ज्वानि मा जरा सी हैंसी खते छै ,हैंसी खते छै
उमर भर आँशू ,उमर भर आँशू
टिप्दी ऱयूँ -टिप्दी ऱयूँ
खैरिका अन्धयरों मा खोजायूँ बाटु ,
सुख का उज्याला मा बिरडी ग्यूं -बिरडी ग्यूं
खैरिका अन्धयरों मा खोजायूँ बाटु
रूप का फेण मा सिवांलु नी देखि -सिवांलु नी देखि
खस्स रौड़ु खस्स ,खस्स रौड़ु अर रडदी ग्यूं ,रडदी ग्यूं
आँखा बुझिक सुलझिन गेड ,
आँखा खोली अल्झी ग्यूं -अल्झी ग्यूं
खैरिका अन्धयरों मा खोजायूँ बाटु ,
तुम्हरी बोलीं बत्त समझ नी साकू -समझ नी साकू
तुम्हरी बोलीं बत्त समझ नी साकू -समझ नी साकू
तुम्हारी चुप चट्ट,तुम्हारी चुप चट्ट
बिंगदी ग्यूं -बिंगदी ग्यूं
खैरिका अन्धयरों मा खोजायूँ बाटु ,
सुख का उज्याला मा बिरडी ग्यूं -बिरडी ग्यूं
खैरिका अन्धयरों मा खोजायूँ बाटु
देबतों मा कब्बि घुन्डा नी टेक्या -घुन्डा नी टेक्या
तुम खुणि मंदरु सी पसरी ग्यूं -पसरी ग्यूं
आँखा बुझिक सुलझिन गेड ,
आँखा खोली अल्झी ग्यूं -अल्झी ग्यूं
खैरिका अन्धयरों मा खोजायूँ बाटु ...........
" दुःख के अंधेरोँ में खोजा हुआ रास्ता "
अनुवादक : गीतेश सिंह नेगी
दुःख के अंधेरोँ में खोजा हुआ रास्ता
सुख के उजाले में भटक गया
बंद आँखोँ से सुलझाई थी कभी गाँठे मैने
आँखे खोली तो उलझ गया -उलझ गया
उम्र तपकर बादल बन गई -२
मैं बस उड़ते बादल ताकता रह गया
दुःख के अंधेरोँ में खोजा हुआ रास्ता
सुख के उजाले में भटक गया
बंद आँखोँ से सुलझाई थी कभी गाँठे मैने
आँखे खोली तो उलझ गया -उलझ गया
दुःख के अंधेरोँ में खोजा हुआ रास्ता
जवानी में बिखरी थी मुस्कुराहट जरा सी -2
ताउम्र आँशु फिर चुनता रहा
दुःख के अंधेरोँ में खोजा हुआ रास्ता
सुख के उजाले में भटक गया
दुःख के अंधेरे में खोजा हुआ रास्ता
रूप के झाग में फिसलन नहीं देखी ,
गिरा तो बस गिरता ही चला गया
बंद आँखोँ से सुलझाई थी कभी गाँठे मैने
आँखे खोली तो उलझ गया -उलझ गया
दुःख के अंधेरोँ में खोजा हुआ रास्ता
अक्सर समझ नहीं सकी तुम्हारी बातें ,
पर ख़ामोशी झट्ट से समझ गई
पर ख़ामोशी झट्ट से समझ गई
दुःख के अंधेरोँ में खोजा हुआ रास्ता
सुख के उजाले में भटक गया
बंद आँखोँ से सुलझाई थी कभी गाँठे मैने
आँखे खोली तो उलझ गया -उलझ गया
दुःख के अंधेरोँ में खोजा हुआ रास्ता
देबताओं के आगे भी नहीं टेके घुटने कभी
पर तुम्हारे लिए मखमली कालीन सा पसर गया
बंद आँखोँ से सुलझाई थी कभी गाँठे मैने
आँखे खोली तो उलझ गया -उलझ गया
दुःख के अंधेरोँ में खोजा हुआ रास्ता
सुख के उजाले में भटक गया
दुःख के अंधेरोँ में खोजा हुआ रास्ता ....
No comments:
Post a Comment