हिमालय की गोद से

हिमालय  की  गोद  से
बहुत खुबसूरत है आशियाना मेरा ,है यही स्वर्ग मेरा,मेरु मुलुक मेरु देश

Sunday, March 2, 2014

गढ़वाली हास्य व्यंग लेख : परपंच






                                                    " परपंच  "
                             
                              (चबोड़्या -चखन्यौर्या - गीतेश सिंह नेगी ,मुम्बई )


परपंचै  महिमा अपार च ,परपंच एक खास किस्मौ  भोत ही पुरणी कला कौंल च ,परपंच अप्णाप मा एक शास्त्र च जैकू ज्ञान  सरया  दुनिया मा सब्बि जग्गा एक जन्न फलीं फूलीं ,कब्बि यक्ख कब्बि  वक्ख ,कब्बि यीं कुणी मा कब्बि वीं पुंगडी मा ,कब्बि  ये छाल कब्बि वे छाल ,कब्बि   ये मुल्क ता कब्बि हैंका मुल्क ता कब्बि   म्यार दयार मा ता कब्बि आप्क चौक -सगोडी मा | कुल मिलैकी परपंच विधा आदम सभ्यतौ विकासक जलम भट्टेय आज तलक  लगातार फलणि फूलणि च अर परपंची आज बी ठाट कन्ना छिन्न | परपंच विधौ  जनक यांनी  जलम दाता कू छाई ,यीं कला कू जलम कब अर  कक्ख भट्टेय व्हाई ठीक ठीक ता नी बुल्लेय जा सकदु पर हाँ या बात सोला अन्ना सच च अर यामा कुई लुकाण छुपाण वली बात भी नी च  की बिना "परपंच महिमा " का बखान अर वर्णन यीं  दुनियक   कै बी कालखंड  मा कै बी कुणी कुम्चरि  कू  सामजिक - साहित्यिक अर राजनतिक इतिहासक जात्रा पूरी नी व्हेय सकदी | यीं कलौ वृतांत  माहभारत से लेकि रामैंण अवेस्ता -ए जेन्द अर कुरान सब्बी जग्गा मा कै ना कै रूप मा मिली ही जालू अर आज त यीं विधा का  ज्ञाता और जणगुरु लोग घर -इस्कूल -दफ्तर- अस्पताल अर   जिदगी का हर कुणा मा अप्डी यीं कला कौशल कू प्रत्यक्ष -अप्रत्यक्ष रूप मा प्रदर्शन करद दिखे जा सकदीं |

अज्कालौ जीवन मा परपंच ही "ब्रह्मास्त्र " च  पर ये ब्रह्मास्त्र थेय चलाणु हर के आदिम या मनखी बसे बात नी च , यांक वास्ता मनखी थेय झूठ अर छल  शास्त्र मा आचार्य हूँण जरूरी हुंद बिना झूठ अर छल  शास्त्र  ब्योंत मनखी परपंच शास्त्र कू  ज्ञाता कब्बी व्हेय ही नी सकदु | अगर परपंच कू ज्ञाता /जणगुरु  अक्वेकी पररपंच कु इस्तेमाल करण जणदू  व्हा त  भै  रे परपंच थेय  तुम ब्रह्मास्त्र  से कम विनाशकारी- विध्वंसकारी  अर अशागुनी  नि समझ्यां अर दुश्मंनो  जैड  टक्क  लगैक मोरयीं  समझ्यां |

परपंच थेय अलग अलग किस्मौ लोग  अलग अलग नौ  से जणदिन अर अपड़ी सुविधौ हिसाब से वेकु इस्तेमाल करदीं । कुछ लोग परपंच  थेय तेज दिमागै धाण बोल्दिन  त  कुछ लोग  खाली  शैतानी ख्यालौ उमाल । कुछ भला लोग परपंच  थेय यीं कला  कौंळ  थेय परपंच  बोलणु  अप्डू अर अपडा  परिवार कि मर्यादौ  घोर उलंघन   अर अपमान  समज्दीं उन्का हिसाब से परपंच परपंच  नि च  माया या लीला च ।
ना  भै  या बात  हजम नि हुणि  च यत  वी  बात  व्हाई  "तुम करिला  ता  रासलीला अर हम करला  ता कामक्रीड़ा " ।

अब द्वापर मा ही देखि  ल्यावा परपंच  का एक से एक ज्ञाता मिली जाला । लोग बोल्दिन  साब गन्धार नरेश शकुनि यीं विधा का असल ज्ञाता जणगुरु छाई  पर भै लोगौं क्या च अ र गिच्चा बुबा  क्या जांद  लोग ता  इन्ह बी बोल्दिन  कि यीं विधा कु असल सल्ली अर जलम दाता  एक सुदर्शन  चक्रधारी छाई ।  देखे  जाव कम ता धॄतराष्ट्र और वेका नौना  सुयोधन -दुशासन बी नि छाई । लोग ता  बोल्दिन कि साब  कौरव पैदा ही परपंच  से हुंई और आखिर समय तक छल -परपंचौ बाट फर ही हिटणा रैन ।  खैर उन्कू  क्या उन्का  ता  नाम ही दुर्योधन अर दुशासन छाई उन्कू  त परपंच  फर जलम  सिद्ध अधिकार  छाई ।
 परपंचै डिमाण्ड  महाभारत मा  बरोबर बढ़णी  राई और इत्गा बढ़ ग्याई  कि एक दा ता भगवान्  जी थेय अप्डू पांचजन्य बजाण पोड़ी ग्याई वी भी ठीक वे टैम फर जब धर्मराज "अश्वतथामा हतो  हत :  बोलिक  " नरो वा कुञ्जरो वा" बोलण  वलु छाई । अब साब आप बोलिला  कि यांम क्या परपंच  य ता प्रभु कि  माया छाई  ।अज्जी  साब कैकि  माया अर  कैकि छाया    ? बजाण  वला कु क्या गाई पर बिचारा आचार्य  द्रोण जु सब्भी  अस्त्र -शस्त्र अर  शास्त्र का ज्ञाता  छाई प्रभु कि यीं "माया " का  ऐथिर धनुष बाण  चूलैकि लम्पसार व्हेय  गईं कि ना ?

अब साब जब बात आचार्य द्रोण फर आ ही ग्याई  ता एकलव्यौ  बुरु भी किलै करण वे  बिचर थेय जी   किलै बिसराण  जैल सरया  महाभारत मा कैकु  बुरु नीं कारु  कैकु  बुरु नि स्वाचु । इतिहास मा एकलव्य आचार्य  कि विशेष कृपा/माया /लीला से   एक गुरु भगत  शिष्य त बणी  ग्याई  पर बडु धनुर्धारी नि बण साकू किल्लैकि  गुरुजीळ  गुरुदक्षिणा  मा वेकु दैण हथकु गुंठा मांगिक लच्छी /लुछी द्याई ।किलै भै ? आखिर क्या दोष  छाई  वे नौना  कु  ? क्या भील  या जंगली कु नौनु हूणु  ही वेकु अपराध  छाई ?
अज्जी  नौनु  समर्पित छाई वेमा भी लक्ष्य  थेय भेदणा कि और दुनियौ सबसे  बडू धनुर्धारी  बणणौ वू सब्बी गुण छाई जु   अर्जुन या  कर्ण मा छाई त  फिर आखिर कमी कक्ख  रै ग्ये  होलि ?
अज्जी साब एकलव्य  थेय परपंच शास्त्र कु ज्ञान नि छाई अगर हुन्दू तू उतरी दा पड़म बोल्दू   -गुरु जी आपकी सौं -करार आप जण्या ,मिल  गुरु भक्त बणणा बान धनुष बाण  नि थामू छाई बल्कि एक   श्रेष्ठ धनुर्धारी बणणा बान थाम छाई ,मिथेय माफ करयां मी कैकि सौं करार का वास्ता अप्डू "गुंठा" भी ना दयूं । पर निर्भगी एकलव्य का जोग मा सैद यी लिख्युं राई । एकबार वेकु "गुंठा" गाई  ता  सब कुछ गाई ?

आज कुई नि जणदू कि  "गुंठा" दिणा  बाद  एकलव्य  क्या दशा व्हेय होलि ,वे फर क्या बीती  होलि ?

महाभारत मा परपंची  ब्रहमास्त्र कू इस्तमाल शुरू भटेय आखिर तलक हुणु ही राई ,शकुनी का पासौं की रगड अर सुदर्शन की छत्र छाया मा सरया कुरु वंश हलैय ग्याई ,फुके ग्याई अर वेका चूल चूल तक हिली ग्याई छाई | जू परपंच  शास्त्र की जानकारी रखदा व्हाला वू कुरु वंश का नाश मा  परपंचै  मेहरबानी  थेय नी बिसिर सकदा |

अगर ठीक से देखेय जाव ता परपंच कू यू खेल कौरवौं अर पण्डों का जलम से भोत पैली महाराज शान्तनुक भ्वार ,सत्यवती का बुबल शुरू कैर याल छाई ,सत्यवती  बुबा कू ता कुछ नी  गाई पर भुगतण प्वाड गंगा पुत्र भीष्म थेय जैकू राजपाट त गाई गाई अर अणब्यो रैण प्वाड अलग से अर वेका बाद भी आखिर मा क्या हत्थ लग्ग " शर सैया " माने की बाणों कू डीशाण |बिचारा देबता समान भीष्म पितामह बी परपंची पीड़ा से नी बच साका ,सरया माभारतम या पीड़ा थेय सैद सब चुल्ले ज्यादा उन्ल ही भ्वाग |
उन्त  परपंचै पीड़ा पण्डोंल बी कम नी भोगी ,सरया महाभारतम दुर्योधन अपडा भै -बंधो -दगडियों  मदद से उन्थेय बगत बगत परपंची   भ्याल- फांगों मा मला-ढिश उन्दु -उब्बू ध्वल्णु -चुलाणु राई अर बिचारा पण्डों थेय आखिर मा क्या मिल ,परपंच पीड़ा भ्वगद - भ्वगद बिचारा आखिर मा स्वर्गवासी वे गईं |

साब मांग ता परपंचै त्रेतायुग मा भी कम नी छाई परपंची लोगौंल कैकयी जन्नी वीरांगना -पतिव्रता रानी थेय नी छ्वाडू ,वा कैकयी ज्वा देवासुर संग्राम से लैकी हर सुख -सुख मा राजा दशरथै दगड्या सौन्जड्या बणी राई मददगार बणी राई  वा बी झट्ट परपंचै चपेट मा आ ग्याई ,फिर क्या व्हाई या बात जग जाहिर च बिचरा रामचंद्र जी अर सीता माता थेय  लक्ष्मण दगडी चौदह बरस तक डांडीयूँ -कांठीयूँ मा भटकण प्वाड अर भुगतण प्वाड  वेका बाद सीता हरण की पीड़ा अर फिर धरमयुद्ध लंकापति रावण दगडी | बिचारा राम जी बी नी बच साका यीं परपंची  पीड़ा से  ,क्या दिन नी द्याखा उन्ल यूँ परपंचयूँ का भ्वार ,खैर हम कैर भी क्या सक्दो , आखिर यत प्रभु की माया च |

 स्वर्गलोक मा बी ये शास्त्र का ज्ञाता लोगौं की कुई कमी नी छाई पर अगर  देखेय जाव त ये माया शास्त्र का असल जणगुरु त देवराज इंद्र अर भगवान विष्णु ही छाई जौंकी माया का सतयां -हल्याँ -फुक्याँ -खफ्फचयाँ खबेश -राक्षस - मनुष्य और ता और देव गण भी उन्का खुटटौं मा त्राहि माम त्राहि माम करदा छाई |राक्षस तप कैरिक अपडा अपडा देब्तौं थेय खुश कैरिक पैली वरदान -शक्ति मंगदा छाई फिर विष्णु जी देवराज इन्द्र
अप्डी माया से सब बराबर कैर दिंदा छाई ,बिचारा राक्षस गण फिर तपस्या करदा छाई अर विष्णु जी अर देवराज इन्द्र फिर से अप्डी माया से  सब बराबर कैर दिंदा छाई ,इन्म कलेश तब हुणु ही छाई अर व्हाई भी च कत्गेय दा त देवासुर संग्राम तक करण प्वाड बिचरौं थेय अपडा हक्क अधिकारै बान | देब्तौं अर राक्षसौं मा यू लुका छुप्पी परपंची  खेल चल्णु राई युगौं -युगौं तक | या बात मी नी बोलणु छौं किताबौं मा लिखीं च अब आखिर समोदर मंथन कू बखान म्यारू ता नी करयुं ना |

अब साब जब सतयुग ,द्वापर ,त्रेतायुग परपंची  पीड़ा से नी बच साका ता हम तुम जन्ना कलजुगी लोगौं क्या ब्युंत च क्या औकात च | हम ता उन भी पैली परपंचो मा अल्झ्याँ छौं | रुपया -पैसा खाणु- कमाणु रैणु -सैणु वू भी इन्ह मँगैई मा क्या कम परपंच  च | ये कलजुग मा औलाद बाद मा पैदा हुंद परपंच  पैल्ली शुरू व्हेय जन्दी | व्हेय जाव ता परपंच  न व्हा त परपंच |आदिम दुनिया छोडिक चली जांद पर परपंच  च की मोरद मोरद अर वेका बाद बी वेका गाल बिल्क्युं रैन्द | कुल मिलाकी परपंच सखियुं भटी आज तलक एक कामगार शस्त्र अर शास्त्र रै जैकी महिमा बखान बिगैर  सामजिक -सांस्कृतिक अर साहित्यिक संसारै बारामा मा सोचुणु बी पाप च | राजनीति पुंगडीयूँ मा इन्न कुई हल्या नी च जैल यूँ पुंगडीयूँ मा परपंची निसुडी नी लगै होलि या फिर परपंची बीज नी बुता होला  अज्काल बिन परपंची बीजौं बुत्यां सत्ता सुखै फसल कब्बी हैरी व्हेय ही नी सकदी |

परपंच शास्त्र कू रसपान कैरिक ये रस थेय चाखिक आप कुछ भी कैर सक्दो ,आप तिल कू ताड़ और राई कू पहाड कैर सक्दो ,आप दिन दोपहरी कै थेय बी लुट सक्दो ,वेकु कुछ भी लुछिक अप्डू बतै सक्दो वू भी अप्डी मुछौ थेय पलैकी आँखा दिखैकि | परपंच की महिमा से आप कैकी भी मूण मडकै ना ना मडक्वै सक्दो आप कैक्की भी पुंगडीयूँ  मा उज्याड़ ख्वैकी ,वे थेय ही चटेलिकी गालियुं प्रसाद जी भोरिक दे सक्दो |परपंच शास्त्र का ज्ञाता कैकी सारयुं मा पैटदी कूल थेय तोडिक अपडा स्यारौं मा कब्बी बी पैटा सक्दिन वू भी छज्जा मा खुट्ट मा खुट्ट धैरिक बैठिक | परपंची  लोग दुसरौं क्याला- अखोड या ककड़ी चोरिक उन्ह थेय ही चोरी फर बडू भारिक इन्न उपदेश दे सक्दिन की जन्न की  उन्का अपडा ही घार मा चोरी हुईं होलि |
उन्न त बुलेय  जान्द की पंच परमेश्वर समान हुंद पर किल्लैकी परपंच की पीड़ा से आज तलक कुई नी बच साकू यख तक की परमेश्वर बी ना त सैद याँ वजह  से अज्काला पंच भी परपंची लोगौं की  डैर खन्दी ,उन्की आव भगत सेवा पाणी करदीं ,परपंचै महिमा सुणिक लोग इत्गा प्रभावित हुईं की कक्खी कक्खी ता पंच  ही परपंची व्हेय ग्यीन | हमर मुल्के कानून व्यवस्था भी  इन्ना परपंची लोगौं से अक्सर प्रेरणा लिणी रैन्द |

जू मनखी परपंच शास्त्र कू ज्ञाता हुंद वू धरती अगास एक कैर सकद ,वू पाणीम बी आग लग्गा सकद अर हव्वा-औडल  थेय भी सुखा सकद |
अब आप बुन्ना व्हेला की क्या मूर्ख आदिम च यार यू  ? आप बोलिला की  आत्मा एक इन्ह चीज च की ज्यां थेय ना कुई ना काट सकदु ,ना फुक सकदु ज्यां थेय पाणी बी बुगा नी सकदु अर हवा भी ज्यां थेय सुखा नी सकदी  ?आप बोलिला की यार सुणयू नी च
नैनं छिदन्ति शस्त्राणी नैनं दहति पावकः l
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः ||

अब आप बोलिला की परपंच  आत्मा कू कुछ नी बिगाड़ सकदु ? ना वीं  थेय फुक सकदु ना  वीं थेय बुगा सकदु ना वीं थेय चिर सकदु ?
अरे भै आप थेय कू समझा और कन्नू कै समझा की परपंची आत्म ज्ञान  थेय अफवाह जन्न् समझदीन,परपंची मनखी खुण छल शास्त्र अर  झूठ
शास्त्र कू ज्ञान जरूरी च वेकि आत्मा ता वे दिन ही मोर जान्द  जे दिन वू परपंचै पाठशाला मा दाखिला करांद ,वू शरीर अर आत्मा का मोह मा नी अल्झदु ,किल्लैकी शरीर से बडू त्याग आत्मा कू हुंद अर परपंची मनखी आत्मा कू त्याग कैर दिन्द इल्लेय परपंची मनखी परम योगी हुंद |
  परपंची मनखी सब्युं थेय सिर्फ एक नजर से देखद - मतलबी नज़र से ,वू कैमा कुई भेदभाव नी करदू ,सब वे खुण एक बराबर हुन्दी ,
आप बोल सक्दो की अज्काळ सै चराह से असल समाजवादी  ता परपंची लोग ही छी |
परपंचै  महिमा भ्वार जोगी चोर अर चोर जोगी व्हेय सकद ,झूठ सच अर सच सफ़ेद झूठ व्हेय सकद|
अज्काल प्रपंच का जणगुरु लोगौंकि राजनीति मा जबरदस्त डिमांड च ,अज्काल यी ज्ञाता लोग बन्नी बन्निक स्टिंग आपरेशन ,व्यक्ति विच्छेदन कैरिक जंक-जोड़ करिक अप्डी -अप्डी जुगत बिठाण मा लगयां छीं ,असल अर घाघ परपंची खादी कोट पैरिक दिल्ली ,देरादूण अर राजधानियुं मा लाल बत्ती रिन्गाण फर लग्यां छिन्न ,जनता जनार्दन थेय झूठा बचनो अर घोषणा कि  चुस्की- विस्की  पिलाणा छिन्न |
परपंचै ज्ञाता दागदार व्हेकि भी बेद्दाग ,चोर व्हेकि भी सिपहसलार -थानेदार बणिक घूमणा  छी ,जक्ख द्याखा परपंची ऐथिर हूँया छी |
सामाजिक कार्यकर्मों मा परपंची नेता -सामाजिक कार्यकर्ता अध्यक्षीय कुर्सी फर आज तलक बी उन्ही चिप्कयाँ छिन्न जन्न् धृतराष्ट्र कौरवौं का प्रेम मा अधर्म से चिप्कयाँ छाई ,वू आज भी बस फोटो  खिचाण अर रिबन कटण मा या फिर धू-धूपंण करण तक ही सीमित छिन्न ,विकाश कार्यौं का वास्ता उन्की आन्खियुं फर गांधारी जन्न् पट्टी बंधीं च |

अगर आप साहित्य मा छौ त भी परपंच थेय नमस्कार करया बिना आप ऐथिर नी बढ़ी सकदा ,परपंच आप्थेय रचना से लैकी पाठक ,लिख्वार से लैकी संपादक अर समारोह से लैकी सम्मान सब कुछ दयालू ,परपंचै कृपा से आप काणा व्हेकि बी मानसरोवरौ हंस व्हेय सक्दो आप सूरदास व्हेय कि बी नैनसुख नौ से जणे जा सक्दो ,आप बिना कुछ लेख्याँ बी सब कुछ लेखि सक्दो ,आप बिना कुछ करयाँ बी सब कुछ कैर सक्दो |

परपंचै महिमा बखान -गुणगान करणु  मी जन्न् मूर्ख आदिमौ बसै बात नी च काश आज महाकवि कालिदास ,भूषण या माघ बच्यां हुंदा त वू जरूर रस,छन्द अर अलंकारौ गैहणा-पाता पैरेक " परपंच शास्त्र " कू बखान करदा |
त फिर अब स्वचणा क्या छो  ? ब्वाला फिर -  ॐ परपंचाय  नमो : नम :


Copyright@ Geetesh Singh Negi ,Mumbai  22/2/2014



[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक  से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- महर गाँव निवासी  द्वारा  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; कोलागाड वाले द्वारा   पृथक वादी  मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मल्ला सलाण  वाले द्वारा   भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; पोखड़ा -थैलीसैण वाले द्वारा  धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले द्वारा  वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  द्वारा  पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक द्वारा  विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक द्वारा  पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक द्वारा  सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक द्वारा  सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक द्वारा  राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; सांस्कृतिक मुल्य ह्रास पर व्यंग्य , गरीबी समस्या पर व्यंग्य, आम आदमी की परेशानी विषय के व्यंग्य, जातीय  भेदभाव विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं, पर्यावरण विषयों   पर  गढ़वाली हास्य व्यंग्य, राजनीति में परिवार वाद -वंशवाद   पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ग्रामीण सिंचाई   विषयक  गढ़वाली हास्य व्यंग्य, विज्ञान की अवहेलना संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य  ; ढोंगी धर्म निरपरेक्ष राजनेताओं पर आक्षेप , व्यंग्य ,अन्धविश्वास  पर चोट करते गढ़वाली हास्य व्यंग्य  श्रृंखला जारी ]  

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