हिमालय की गोद से

हिमालय  की  गोद  से
बहुत खुबसूरत है आशियाना मेरा ,है यही स्वर्ग मेरा,मेरु मुलुक मेरु देश

Saturday, June 14, 2014

गढ़वाली हास्य व्यंग लेख : भगीरथ

                               भगीरथ                      

     (हंसोड्या , चुनगेर ,चबोड़्या -चखन्यौर्या - गीतेश सिंह नेगी ,Mumbai)



धरती बल ७१ % पाणिळ ढकीं च ,समोदर बी ९६.५ % खारु पाणि लेकि उछ्ल्णु च ,जाणकार लोग बुल्दीन बल धरती प्याट कुल १.७ % पाणि सम्युं च ,अब सुणा असल बात कुल २.५ % पाणि ही साफ़ पाणि च अर ये मदेै ०.३ % से बी कम पाणि गाड -गदेरौं अर नयारौं अर नदियों कु पाणि च ? मतलब समझणा छौ की ना
मतलब हम फर पाणि कु भारी संकट च
आज सुबेर लेकि ब्वाडा पाणि का यूँ आँकड़ों लेकि गंगजाणु छाई ,वूंन्की मुखडी फर इन्न झपाक प्वडीं  छाई जन्कि अब्बि  पाणि फर विश्व युद्ध हूँण वल व्हा,सोच विचार अर चिंतन कि यीं हालत मा ब्वाडै दशा दिल्ली जल बोर्डक प्रवक्ता  या उत्तर प्रदेशक बिजली वितरण अधिकारीयूँ सी लगणी छाई ,वूंन्की मुखडी कु पाणि सुख्युं छाई अर वूंन्का विचारौं  मा " पाणि बचावा -जीबन बचावा " कु दर्शनशास्त्र छुलुक-छुलुक कैरिक छ्ल्कणु छाई |

ब्वाडै पाणि चिंतन मा तर्र-बर्र हुयीं छ्वीं सुणिक हमर बी बरमून्ड ख्ज्याँण बैठी ग्याई ,हम बी सरया दिन पाणि  कि गाणी करण मा मिस्याँ रौ ,पाणि  का पुरण खाता टटौलदा-टटौलदा हम कक्खा कक्ख पौचीं ग्यो,हर्चिं- बिस्ग्यीं सरस्वती फर वैचारिक अस्धरा बुगाणा बाद भारतै सभ्यता अर संस्कृति विकास मा गाड -गदेरौं अर नदियों कि भूमिका फर स्वच्द-स्वच्द हम गंगा फर इन्न चिबट ग्यौ जन्न कै आदिम फर भूत-मसाण चिबट जान्द ,हमल सुण भगीरथ जी गंगा थेय धरती मा अप्डा पित्र तरौणा कु लीं ,वूंन्का पित्र तैरा छीं कि ना या बात हम ता नी जण्दा पर हाँ वेक  बाद गंगा जी मा सरया दुनियाौ पित्र तरौणा रिवाजै शुरुवात जरूर व्हेय ग्याई अर लोगौं खुण अप्डा पाप धुणाकि ले देकी  गंगा ही एक जग्गाह रे ग्याई ,लोगौं पाप इत्गा बढ़ी ग्यीं कि आज पाप धुन्द धुन्द गंगा अफ्फु मैली व्हेय ग्याई ,कैका  पित्र तैरा व्होला भाँ ना पर गंगा जीक छातीम बडा बडा डाम धरण व्ला रूप्पीयौं मा जरूर तैरी ग्यीं |

आज हर कुई गंगा जीक पैथिर प्वडयूं च अगर देखे जाव ता हर कुई बुग्दी गंगा मा अप्डा मैला हत्थ धूणा कोशिश कन्नु च अब इन्मा गँगा जील गंदलू त हूँणु ही च |

उन्न ता साखियुं  भटेय गंगा जी फर भारतै सभ्यता अर संस्कृति थेय गर्व रै पर यीं बात कु अन्ताज़ हम थेय आज इत्गा देर से किल्लैय हूँणु च कि गंगा मोरणी च सुखणी च जब्कि गंगा जीक छातीम डाम धरण व्ला बी हम ही छौ ,गंगा मा कीच -गिजार से लेकि अप्डू "सब्बि धाणी " बुगाण व्ला बी हम ही छौ अर गंगा थेय सुरंगों मा घालिक " गंगा बचावो अभियान "  चलाण व्ला बी हम ही छौ ,येका बाद बी हम आज बी गंगा थेय एक व्यौपारी  नज़र से ही द्याखणा छौ ,गंगा कु नफ्फा नुकसान हम आज बी किलोवाट अर मेगावाट से ही कन्ना छौ ,असल मा गंगा हमरि वीं संस्कृति कि जलमदात्री च जैन्की हम अजर अमर सोचिक कुई कदर नी कन्ना छौ बिलकुल उन्नी जन्न कौरवौंळ भीष्म पितामाह कि "इच्छा मृत्यु " बात सोचिक वूंन्की कब्बि कदर नी कैरी ,नतीजा क्या व्हेय बताणा जरुरत नी च |

सोच विचार का कीड़ा दिमाग मा कुलबुलाणा ही छाई कि वूंन्ल ब्वाल -अज्जी तुम थेय ले क्या फटीं च ? तुम ही ता व्हेला भारी भगीरथ जन्न भटेय ? एक गंगा सुखली ता तुम्हरू जी ले क्या जालू ? जन्न् दुनिया अप्डा पित्र तैराली तुम बी तैरा लियाँ ,तुम बी रैन्दो सदनी सुद्दी खाली बरमून्ड तचाणा ,अच्छा इन्न बतावा दी गंगा -जमना -सरस्वती सब्बि कैकी ?

मिल ब्वाल -पहाड़ै मतलब हमरी

ता बल तब्बी म्वन्ना छौ तुम बिगर पाणि का साखियुं भटेय ? तब्बी लग्णा छीं कांडा यूँ पुग्डों फर जक्ख बरसूँ भटेय पाणि ल्याण वल्लु रज्जा भगीरथ अज्जी तक पैदा नी व्हेय ,उल्टा गंगा जीक छातीम डाम खड़ा कैरिक डूबा याळ यूँन्ल अच्छी तरह से हम्थेय ,मौत कब अर कन्ना भटेय कै रूप मा आलि हम नी जणदा ,हमरी हालत ता बल इन्न हूयीं च कि " ना थूक सक्दो ना घूट सक्दो " ,सब्बि अप्डी अप्डी स्वचणा छीं,कुई धर्म कि बात कन्नु कुई विकासै बात कन्नु पर भै जरा हमरि बी ता स्वचा कि हम फर कन्न् भारी बितणी व्होलि ,सी घिर्याँ छौ हम चौ तरीफ पाणि मा फिर बी हमर जोग सुखु ही लिख्युं च ,पैली यून्ल टीरी डुबाई अब उत्तरकाशी -श्रीनगर डुबौण अर एक दिन यूँन्ल सरया मुल्क नी डूबै ता बोल्याँ ,

हे धारी देवी ,हे नरसिंह ,हे नागरज्जा कब हूँण तुमुल दैणु

वूंन्की बात हमुल इन्नी अणसुणी कार जन्न " जल जंगल अर जमीन " कि बात सरकार साखियुं भटेय अणसुणी कन्नी च ,खैर वूंन्का कलकला रस व्ला तर्कों से घैल व्हेकि ब्यखुंन्दा हम बी चौके कच्छडी मा पौन्छी ग्यो हालाँकि हमर पौन्छण से पैल्ली पाणि फर ब्वाडाळ खूब वैचारिक छांछ छोल याळ छाई ,सूणदरा ब्वाडा थेय इन्न सुणणा छाई जन्न ब्वाडा भागपत कैरिक वूंन्का पित्र अब्बी तैराण वल्लु व्हा ?
ब्वाडा फर इत्न दा रहीमदासै झसाग अयीं छाई अर ब्वाडा "रहिमन पाणि राखिये बिन पाणि सब सून " कि सन्दर्भ दगडी व्याख्या करण फर तुल्याँ छाई तबरी हमल ब्वाडा बीच मा ही घच्कै दयाई

ब्वाडा पाणि ता गौं मा आणु ही च वा बात अलग च कि ज़रा हम्थेय रौळ भटेय सैरिक ल्याण प्वडणु च ,बग्त आण फर योजना आलि ता पाणि बी आ जालू गौं मा 

हमर इत्गा ब्वल्द ही ब्वाडा उतडै ग्याई ,बल बेट्टा बग्तै बात ता ठीक च पर ज़रा कु बग्तै बी स्वाचा धौं ,अगर मैल गौं करूँळ पाणि मत्थी ही रोक याली ता तुमुल क्या कन्न ? बतावा धौं ज़रा 

मैल गौं व्ला बी डाम बणाणा छीं क्या ?
अरे डाम नी बी बणाणा छीं पर बग्त कुबग्त पाणि ता तोड़ ही दिणा छीं ना ,वूंन्का पुंगडा-स्यारौं मा बी पाणि-पाणि अर हमर यक्ख पाणि पीणा कि बी रोज रोज आफत ?
त क्या व्हालू ?
कन्न् क्या व्हालू ?तपस्या करण प्वाडली ,कैथेय ता भगीरथ बणण ही प्वाडलू ना अब
मतलब ?
देखा भै मैल गौं कि आबादी कम च अर हमरी भोत ,मतलब हमरा भोट ज्यादा मतलब अब्बा दौ चुनौ मा  प्रधान हमरू ,अर प्रधान हमरू मतलब योजना हमरि मतलब घर गौं मा पाणि ही पाणि

सब्युंळ गंगा रूपी पाणि थेय गौं मा ल्याणा वास्ता एक सुर मा ब्वाडा थेय "भगीरथ " कु अवतार सोचिक अपडा अपडा पित्र तरौण सुपिना द्यखिं ,

अब ब्वाडा से सब्युं थेय इन्नी आश जन्न् सगर का ६० हजार नौनौं थेय भगीरथ से आश छाई
गंगा ल्याण से भगीरथ का पित्र तैरद हमुल ता नी द्याखा पर पर गौं मा पाणि  बान ब्वाडा प्रधनी चुनौ जरूर तैर ग्याई ,गौं मा येक बाद योजना बी अैं ,ठेक्कदार बी अैं ,इंजिनियर बी अैं और ता और चुनौ बी कत्गे दौ आ ग्यीं पर ना गौं मा पाणि आई ना हमरा पित्र तैर साका  अर ना हमरा गौल उन्द पाणि तैर साकू  ब्वाडा जरोर प्रधनी -प्रमुखी का गदना तैरिक विधानसभा पहुँचणकि त्यरी मा लग्युं च अर हम छौ कि आज बी अप्डा भगीरथ थेय जग्वलणा छौ
स्वचणा छौ कि मिलला ता पुछला - भगीरथ जी तुम्हरा पित्र तर ग्यीं कि ना ?

Copyright@ Geetesh Singh Negi ,Mumbai  14/06/2014


*कथा , स्थान व नाम काल्पनिक हैं। 

[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक  से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- महर गाँव निवासी  द्वारा  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; कोलागाड वाले द्वारा   पृथक वादी  मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मल्ला सलाण  वाले द्वारा   भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; पोखड़ा -थैलीसैण वाले द्वारा  धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले द्वारा  वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  द्वारा  पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक द्वारा  विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक द्वारा  पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक द्वारा  सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक द्वारा  सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक द्वारा  राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; सांस्कृतिक मुल्य ह्रास पर व्यंग्य , गरीबी समस्या पर व्यंग्य, आम आदमी की परेशानी विषय के व्यंग्य, जातीय  भेदभाव विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं, पर्यावरण विषयों   पर  गढ़वाली हास्य व्यंग्य, राजनीति में परिवार वाद -वंशवाद   पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ग्रामीण सिंचाई   विषयक  गढ़वाली हास्य व्यंग्य, विज्ञान की अवहेलना संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य  ; ढोंगी धर्म निरपरेक्ष राजनेताओं पर आक्षेप , व्यंग्य ,अन्धविश्वास  पर चोट करते गढ़वाली हास्य व्यंग्य  श्रृंखला जारी ]

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