गढ़वाली कविता : " खैरीऽ का गीत "
मी त गीत खैरीऽ का लगाणु छौं !
कांडों थेय बिरैऽकी ,फूल बाटौं सजाणु छौं
छोडिक अप्डी , दुन्या कि लगाणु छौं
होली दुनिया बिरड़ी कलजुगी चुकापट्ट मा
सोचिऽक मुछियलौंऽल बाटा दिखाणु छौं
मी त गीत खैरीऽ का लगाणु छौं !
तिस्वला रें प्राण सदनी जू ,अस्धरियौंऽल उन्थेय रुझाणु छौं
ज्वा जिकुड़ी फूंकी रैं अग्गिन मा ,वा प्रीत पाणिऽल बुझाणु छौं
कु बग्तऽ कि फिरीं मुखडी सब्या , सुख मा सब सम्लाणु छौं
जौं पिसडौंऽल डमाई सरया जिंदगी मीथै , मलहम उन्ह फर आज लगाणु छौं
मी त गीत खैरीऽ का लगाणु छौं !
जौंल बुगाई मिथै ढंडियूँ मा , उन्थेय गदना तराणु छौं
जैल मार गेड खिंचिक सदनी ,वे थेय ही सुल्झाणु छौं
अटगाई जौंल जेठ दुफरी मा , छैल बांजऽक उन्ह बिठाणु छौं
जैल बुत्तीं विष कांडा सदनी , फुल पाती वे खुण सजाणु छौं
मी त गीत खैरीऽ का लगाणु छौं !
कांडों थेय बिरैऽकी ,फूल बाटौं सजाणु छौं
छोडिक अप्डी , दुन्या कि लगाणु छौं
होली दुनिया बिरड़ी कलजुगी चुकापट्ट मा
सोचिऽक मुछियलौंऽल बाटा दिखाणु छौं
मी त गीत खैरीऽ का लगाणु छौं !
तिस्वला रें प्राण सदनी जू ,अस्धरियौंऽल उन्थेय रुझाणु छौं
ज्वा जिकुड़ी फूंकी रैं अग्गिन मा ,वा प्रीत पाणिऽल बुझाणु छौं
कु बग्तऽ कि फिरीं मुखडी सब्या , सुख मा सब सम्लाणु छौं
जौं पिसडौंऽल डमाई सरया जिंदगी मीथै , मलहम उन्ह फर आज लगाणु छौं
मी त गीत खैरीऽ का लगाणु छौं !
जौंल बुगाई मिथै ढंडियूँ मा , उन्थेय गदना तराणु छौं
जैल मार गेड खिंचिक सदनी ,वे थेय ही सुल्झाणु छौं
अटगाई जौंल जेठ दुफरी मा , छैल बांजऽक उन्ह बिठाणु छौं
जैल बुत्तीं विष कांडा सदनी , फुल पाती वे खुण सजाणु छौं
मी त गीत खैरीऽ का लगाणु छौं !
जौं ढुंगौंऽल खैं ठोकर मिल , उन्थेय देबता आज बणाणु छौं
जौंल नि थामू अन्गुलू भी कब्बि ,कांध उन्थेय लगाणु छौं
रुसयाँ रैं मि खुण सदनी जू , वूं थेय आज मनाणु छौं
जौंल रुवाई सदनी मिथै ,भैज्जी वूं थेय आज बुथ्याणु छौं
मी त गीत खैरीऽ का लगाणु छौं !
जौं ढुंगौंऽल खैं ठोकर मिल , उन्थेय देबता आज बणाणु छौं
जौंल नि थामू अन्गुलू भी कब्बि ,कांध उन्थेय लगाणु छौं
रुसयाँ रैं मि खुण सदनी जू , वूं थेय आज मनाणु छौं
जौंल रुवाई सदनी मिथै ,भैज्जी वूं थेय आज बुथ्याणु छौं
मी त गीत खैरीऽ का लगाणु छौं !
रचनाकार : गीतेश सिंह नेगी ,सर्वाधिकार सुरक्षित
स्रोत : म्यार ब्लॉग - हिमालय की गोद से
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