गढ़वली अर हिंदी साहित्याऽक वरिष्ठ साहित्यकार आदरणीय ललित केशवान जी थेय सादर सप्रेम समर्पित मेरी एक कबिता
" ललित केशवान "
संवत १८६१ ,.....गते ....
पौड़ी जिल्ला , पट्टी इद्वाल्स्युं
छटी ग्या कुयेडी पुरणी ,चमक चौछ्व्डी घाम
आ हा पैदा व्हाई सिरालीऽम , गढ़ कवि एक महान
भै बंधो ,गढ़ कवि एक महान
खिल्दा फूल हंसदा पात ,रुमझुम बरखणी बरखा आज
खित खित हैसणु डांडीयूँ मा द्याखा , दंतुडी दिखान्द चौमास
बांजी पुंगडी चलदा व्हेंगी , इन्न आई गढ़ स्यारौं मा मौल्यार
भै बंधो ,इन्न आई गढ़ स्यारौं मा मौल्यार
डालियुं मा चखुली बसणी छाई , बस्णु छाई कक्खी कफ्फु हिलांस
मोरणी छाई मातृ भाषा , करण कैल अब म्यारू थवांस
कै से करण आज आश मिल ,छीं दिख्याँ दिन अर तपयाँ घाम
भै बंधो ,छीं दिख्याँ दिन अर तपयाँ घाम
दीबा व्हेय ग्या दैणी फिर ,व्हेय ग्या दैणु जय बद्री नरैण
प्रकट व्हेग्या लाल हिमवंत कु , प्रकट व्हेय ग्याई कवि ललित महान
भै बंधो , प्रकट व्हेय ग्याई कवि ललित महान
कलम प्लायी इन्ह उन्ल तब ,सर सर चलैं व्यंग बाण
लस्स लुकाई मुखडी अंध्यरऽल , पैटाई जब गढ़ गंगा ज्ञान
प्रकट कै दयाई भड गंगू रमोला ,प्रकट कै दयाई हरी हिंदवाण ,
भै बंधो , प्रकट कै दयाई हरी हिंदवाण ,
टूट्ट ग्यीं मायाऽक जाल पुरणा सब , तिडकीं पुरणा बिम्ब
छौंक लगाई ढौऽल पुरैऽक कविता कु तब , छोलिक किस्म किस्मऽक रंग
मच ग्याई जंग असलियात की तब ,जब ध्वलीं मर्चण्या व्यंग ,
भै बंधो ,जब ध्वलीं मर्चण्या व्यंग
भूख मिटै बरसूँ की मेरी ललित , तिल्ल मिटै साखियुंऽक तीस
संवत १८६१ ,.....गते ....
पौड़ी जिल्ला , पट्टी इद्वाल्स्युं
छटी ग्या कुयेडी पुरणी ,चमक चौछ्व्डी घाम
आ हा पैदा व्हाई सिरालीऽम , गढ़ कवि एक महान
भै बंधो ,गढ़ कवि एक महान
खिल्दा फूल हंसदा पात ,रुमझुम बरखणी बरखा आज
खित खित हैसणु डांडीयूँ मा द्याखा , दंतुडी दिखान्द चौमास
बांजी पुंगडी चलदा व्हेंगी , इन्न आई गढ़ स्यारौं मा मौल्यार
भै बंधो ,इन्न आई गढ़ स्यारौं मा मौल्यार
डालियुं मा चखुली बसणी छाई , बस्णु छाई कक्खी कफ्फु हिलांस
मोरणी छाई मातृ भाषा , करण कैल अब म्यारू थवांस
कै से करण आज आश मिल ,छीं दिख्याँ दिन अर तपयाँ घाम
भै बंधो ,छीं दिख्याँ दिन अर तपयाँ घाम
दीबा व्हेय ग्या दैणी फिर ,व्हेय ग्या दैणु जय बद्री नरैण
प्रकट व्हेग्या लाल हिमवंत कु , प्रकट व्हेय ग्याई कवि ललित महान
भै बंधो , प्रकट व्हेय ग्याई कवि ललित महान
कलम प्लायी इन्ह उन्ल तब ,सर सर चलैं व्यंग बाण
लस्स लुकाई मुखडी अंध्यरऽल , पैटाई जब गढ़ गंगा ज्ञान
प्रकट कै दयाई भड गंगू रमोला ,प्रकट कै दयाई हरी हिंदवाण ,
भै बंधो , प्रकट कै दयाई हरी हिंदवाण ,
टूट्ट ग्यीं मायाऽक जाल पुरणा सब , तिडकीं पुरणा बिम्ब
छौंक लगाई ढौऽल पुरैऽक कविता कु तब , छोलिक किस्म किस्मऽक रंग
मच ग्याई जंग असलियात की तब ,जब ध्वलीं मर्चण्या व्यंग ,
भै बंधो ,जब ध्वलीं मर्चण्या व्यंग
भूख मिटै बरसूँ की मेरी ललित , तिल्ल मिटै साखियुंऽक तीस
खुश व्हेयऽक सरस्वती तब्ब , दिन्द यू शुभ आशीष
मातृ भाषा की सेवा मा हे गढ़ गौरव ! अजर अमर करयाँ त्वे थेय जगदीश
मातृ भाषा की सेवा मा हे गढ़ गौरव ! अजर अमर करयाँ त्वे थेय जगदीश
मातृ भाषा की सेवा मा हे गढ़ गौरव ! अजर अमर करयाँ त्वे थेय जगदीश |
रचनाकार : गीतेश सिंह नेगी ,सर्वाधिकार सुरक्षित
मातृ भाषा की सेवा मा हे गढ़ गौरव ! अजर अमर करयाँ त्वे थेय जगदीश
मातृ भाषा की सेवा मा हे गढ़ गौरव ! अजर अमर करयाँ त्वे थेय जगदीश |
रचनाकार : गीतेश सिंह नेगी ,सर्वाधिकार सुरक्षित
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