गोपाल दास "नीरज "' की ग़ज़ल का गढ़वाली भाषा अनुवाद
गोपाल दास "नीरज "' को सादर समर्पित उनकी एक गजल का गढ़वाली भाषा अनुवाद
अनुवादक : गीतेश सिंह नेगी
अबा दौ सौण मा शरारत या मी दगडी व्हाई
म्यार घार छोड़िक बरखा सर्या मुल्क मा व्हाई
आप ना पूछा क्या बीत हम फर सफर मा ?
आज तलक हमरी अफ्फी से भेंट नि व्हाई
हर गलत मोड़ फर टोकणु च कुई मिथेय
एक बाच तेरी जब भटेय मी दगडी व्हाई
मिल स्वाच की म्यार मुल्कै हालत क्या च
एक गुनाहगार दगडी तब्बि मेरी भेंट व्हाई
अनुवादक : गीतेश सिंह नेगी
अबा दौ सौण मा शरारत या मी दगडी व्हाई
ReplyDeleteम्यार घार छोड़िक बरखा सर्या मुल्क मा व्हाई
sundar prayas
ReplyDeleteDhanesh Kothari
http://bolpahadi.blogspot.in/