हिमालय की गोद से

हिमालय  की  गोद  से
बहुत खुबसूरत है आशियाना मेरा ,है यही स्वर्ग मेरा,मेरु मुलुक मेरु देश

Sunday, April 12, 2015

विश्व प्रसिद्ध कवियों की कविताओं का गढ़वाली भाषा अनुवाद श्रृंखला : गोपाल दास "नीरज "'



गोपाल दास  "नीरज "'  की ग़ज़ल  का गढ़वाली भाषा अनुवाद
 गोपाल दास  "नीरज "' को सादर समर्पित उनकी एक गजल   का गढ़वाली भाषा अनुवाद
                          अनुवादक : गीतेश सिंह नेगी 

अबा  दौ  सौण  मा शरारत या मी  दगडी व्हाई 
म्यार घार  छोड़िक बरखा सर्या मुल्क मा व्हाई 

आप ना पूछा क्या बीत हम फर सफर मा ?
आज तलक हमरी अफ्फी से भेंट  नि  व्हाई 

हर गलत मोड़ फर टोकणु  च कुई मिथेय 
एक बाच तेरी जब भटेय मी  दगडी व्हाई 

मिल स्वाच की म्यार मुल्कै हालत क्या च 
एक गुनाहगार  दगडी तब्बि मेरी भेंट व्हाई 


अनुवादक : गीतेश सिंह नेगी 

2 comments:

  1. अबा दौ सौण मा शरारत या मी दगडी व्हाई
    म्यार घार छोड़िक बरखा सर्या मुल्क मा व्हाई

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  2. sundar prayas

    Dhanesh Kothari
    http://bolpahadi.blogspot.in/

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