हिमालय की गोद से

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बहुत खुबसूरत है आशियाना मेरा ,है यही स्वर्ग मेरा,मेरु मुलुक मेरु देश

Sunday, March 8, 2015

गढ़वाली हास्य -व्यंग्य : कुकुर अर समाजवाद

                                                 कुकुर अर समाजवाद

                (हंसोड्या , चुनगेर ,चबोड़्या -चखन्यौर्या - गीतेश सिंह नेगी )


कुकुर अर आदिमौ दगडू कुई आजै बात नि च यू साब बल लगभग तैतीस हजार साल पुरणु रिश्ता च ,तब भटेय कुकुर बिन आदिमौ अर आदिम बिन कुकुरौ काम नि चलदु,कब्बि आदिम ऐथर -ऐथर त कुकुर पैथर -पैथर त कब्बि कुकुर ऐथर -ऐथर त आदिम वेका पैथर -पैथर ,असल मा अगर दिखै जाव ता कुकुर अर आदिमौ प्रेम फर ही समाजवाद टिक्यूँ च, मी त यक्ख तक बोल्दु की समाजवाद सिद्धांत कु जलम सैद कुकुर अर आदिमौ ये प्रेम से ही व्हेय व्हालू |

शुरवात मा कुकुर अर आदिमौ प्रेम सम्बन्ध द्वी तरफ़ा बढिया रैं ,आदिम कुकुरौ ख्याल रखदू छाई द्वी रूट्टी अफ्फु खान्दू छाई त एक कत्तर कुकुर थेय बी दिन्दु छाई ,बदल मा कुकुर बी आदिमौ चौकदरी करदू छाई वेकि देलिम मुंड धैरिक आण जाण अर उटकाम करण वलूँ फर नजर रखदु छाई ,त आदिम निरफन्ग अर निछन्त वेकि प्वडयुं रैंदु छाई | बल साब कुकुर त सदनी आदिमौ दगडिया बणिक दगड मा घूमणू रैंदु छाई ,आदिम गोरू मा ता कुकुर बी गोरू मा ,आदिम गोठ मा ता कुकुर बी गोठ मा ,आदिम छन्न मा ता कुकुर बी छन्न मा ,आदिम घार मा ता कुकुर चौक मा ,प्रेम भाव इथगा गैरू व्हेय ग्याई छाई कि आदिमौ बान वू बिरल,स्याल ,गुणी-बान्दर यक्ख तक कि रिक्ख बाघ फर बिल्कण मा नी घबरान्दू छाई,यक्ख तक कि माभारत मा अपडा स्यें-गुसैं पन्डो का बान कुकुरळ एकलव्यै बाणाौळ अपड गिच्चु तक बुजवाण मा देर नी कैरी बदल मा धर्मराजळ बी स्वर्ग जान्द जान्द तक वेकु दगडू नी त्वाडू |

अब भै य त व्हाई कुकुर अर आदिमौ असल समाजवादी दगडै बात यक्ख तक त सब ठीक ठाक ही छाई पर वेका बाद क्या व्हाई ? वेका बाद समाजवाद खतरा मा किलै पोड ग्याई ,किलै समाजवाद फर अवसरवाद गर्रू पोडी ग्याई ?

म्यार हिसाबळ कुकुरक स्वर्ग जाणा बाद संसार मा वेकु ईमान बखान सैद आदिम थेय हजम नी व्हेय अर बस यक्खम भटेय ही आदिम अर कुकुर मा कम्पीटीशन शुरू व्हेय ग्ये ,आदिमळ सुरुक सुरुक कैरिक कुकुरक हक दबाण शुरू कैर दयाई , बग्त कक्खै कक्ख चली ग्याई पर कुकुर च कि आज बी आदिमौ बफादार बणीयूँ च ,हाँ आदिम जरूर वेकि गौलीन्द छजिला पट्टा डालिक संगुलौं मा बाँधिक वे थेय चौ-छ्वडी रिंगाणु च | शुरू शुरू मा कुकुर थेय आदिमै या चाल समझ नी आई ,वू भोत खुश व्हेय कि अब सैद आदिम अर कुकुर बराबर कु हक पाला ,आदिम थेय कुकर बोलणु पैल्ली कुकुरल अप्डी सरया कुकुर जातिक बडू मान -सम्मान समझी पर बाद बाद मा वेल द्याख कि आदिम त समाज का हर ज्याँ-बित्याँ-खतम किस्मौ आदिम खुण बी कुकुर बोलिक वेकु नौ बिगाणु च ,इथगा हूँणा बाद बी कुकुरक सुभाव मा कुई फरक नी आई पर हाँ आदिमै यीं आदत से समाज मा कुकुर ज्यादा अर आदिम कम जरूर हूँण बैठी ग्यीं अर आज हालत यी छीं कि आज यू पता कन्नु भोत भारी व्हेय ग्ये कि समणी वल्लु आदिम ही च कि सच्ची मा कुकुर च |

फरक यू बी प्वाड कि पैल्ली आदिमौ घारै द्वार फर लिख्युं रैंदु छाई "स्वागतम " अब् रिवाज बदली ग्यीं अब वेका द्वार फर लिख्युं रैन्द " कुकुरौं से सावधान " ,अब् समस्या या च कि यीं बात से असल कुकुर अर असल आदिम दुया घंग्तोल मा प्वडयाँ रैंन्दी कि आखिर खतरा असल मा कै थेय च और कै से च ? इन्न मा कु आदिम च अर कु कुकुर कुछ पता नी चल्णु |

खैर कुकुर इथगा हूँणा बाद बी कुकुर ही च वू आज तलक बी आदिम नी बण साकू अर ना वेल यांकी कब्बि कोशिश ही कैरी हाँ कुकरौ नौ बिगाणा चक्कर मा आदिम जरूर कुकुर बणि ग्याई |

याँ से फरक यी व्हेय कि अज्काल बस अड्डा -हवै-अड्डा -सड़क -बजार -गौं -दफ्तर -इस्कोल जक्ख द्याखा तक्ख कुकुर ही कुकुर हूयाँ छीं पर यी नै कुकुर असल कुकुर जन्न बफादार नी ,इलै आज हालत यी वे ग्यीं कि समाज खासकर ब्यठुला कुकुर फर ता आज बी भरोसू कन्ना छीं पर आदिम फर भरोसू कन्न् मा डरणा छीं ,लोग अज्काल कुकुर थेय मलसणा अर आदिम थेय ढुंगयाँणा छीं , फिर्बी आदिमै चाल ता कामयाब व्हेय ही ग्ये ,आज " कुकुर " अर " कुत्ता " एक स्थापित गालि ता व्हेय ही ग्यीं | आज अगर आप कै आदिम खूण त छ्वाडा अगर कै असल कुकुर खुण बी "कुत्ता " शब्द इस्तमाल करदो ता सब्बि कुकुर कट्ठा व्हेकि गुर्र -गुर्र कैरिक बिल्कण मा बी टैम नी लगान्दा |
आज कुकुर अर आदिम मा या बिल्का-बिल्की किलै भै ,कक्ख गै वून्कू वू समाजवाद अर कक्ख गै वू प्रेम ?

ब्याली आदिमै रंग -ढंग अर कला -करतूत देखिक कुकुरौंळ अपडू "अंतराष्ट्रीय कुकुर सम्मेलन " बिरयुं छाई ,कुकुर यीं बात से भारी नाराज छाई कि या त आदिम आदिम बणिक रौ या फिर कुकुर समाज मा बिगैर बातै घुसपैठ नी कारू ,कुकुरौंक प्रवक्ता का हिसाब से आदिमै इन्न करतूतौं से कुकुर समाजै मान -सम्मान अर स्वाभिमान फर भारी हाल आणि च ,कुकुरौंळ यीं माँग का दगडी ब्याली समाज कल्याण मंत्री थेय अपडू ज्ञापन द्याई कि समाज कल्याण बिभाग थेय आदिमौ नस्ल सुधरण वास्ता ठोस योजना बणाकि काम करण चैन्द ताकि आदिम आदिम बणिक खुश रे साक वू कुकुर बणणै कोशिश बी नी कार ,वूंन्ल माँग कार कि समाज कल्याण अर बाकी सब्बि बिभागौं मा केवल आदिमौं थेय मौका दिए जाव अर यूँ नै कुकुरौं थेय कै बी बिभाग मा सेवा कु मौका ना दिए जाव याँ से पैल्ली त आदिम मा कुकुर बणणै इच्छा कम होलि और फिर सबसे बड़ी बात आदिम अर कुकुर मा फरक कन्नू बी आसान व्हेय जालू अर हमर बी जग्गाह -२ मा नाक नी कटैली | सुणण मा आणु च कि कुकुरौं कि माँग अर हड़ताल कि धमकी से डैरिक समाज कल्याण बिभागळ फिलहाल आदिमौ कि कुकुर समाज मा घुसपैठ अवैध घोषित कैर याळ अर अब सी .बी . आई . सब्बि फर्जी कुकुरौं फर अर आदिमौं फर भारी नज़र रखणी च पर फिर्बी समाजवादै सारु फर आदिम आज बी बिगैर कैकी डैर खयाँ बग्त बग्त य त कुकुर बणणु च या फिर डाली फर फाँस खाणा कु मजबूर हूयूँ च खैर नतीजा चाहे जू बी हो पर हर हालत मा बदनाम त अज्जी बी बिचरु कुकुर ही हूँणु च ,
हालत चाहे कन्ना बी हो समाजवादै असल फर्ज त आज बी कुकर ही निभाणु च ,समाजवादी ठेकादार अज्काल क्या कन्ना छीं या बात त भै हम नी जणदा







Copyright@ Geetesh Singh Negi ,Mumbai 23/08/2014

*कथा , स्थान व नाम काल्पनिक हैं।

[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- महर गाँव निवासी द्वारा जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; कोलागाड वाले द्वारा पृथक वादी मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मल्ला सलाण वाले द्वारा भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; पोखड़ा -थैलीसैण वाले द्वारा धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले द्वारा वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी द्वारा पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक द्वारा विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक द्वारा पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक द्वारा सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक द्वारा सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक द्वारा राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; सांस्कृतिक मुल्य ह्रास पर व्यंग्य , गरीबी समस्या पर व्यंग्य, आम आदमी की परेशानी विषय के व्यंग्य, जातीय भेदभाव विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक बिडम्बनाओं, पर्यावरण विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य, राजनीति में परिवार वाद -वंशवाद पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ग्रामीण सिंचाई विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य, विज्ञान की अवहेलना संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य ; ढोंगी धर्म निरपरेक्ष राजनेताओं पर आक्षेप , व्यंग्य ,अन्धविश्वास पर चोट करते गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला जारी ]

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