हिमालय की गोद से

हिमालय  की  गोद  से
बहुत खुबसूरत है आशियाना मेरा ,है यही स्वर्ग मेरा,मेरु मुलुक मेरु देश

Sunday, March 8, 2015

गढ़वाली हास्य -व्यंग्य : महंगै अर माभारत



महंगै अर माभारत



(हंसोड्या , चुनगेर ,चबोड़्या -चखन्यौर्या - गीतेश सिंह नेगी )




महंगै एक इन्नु शब्द च जैकू असर शब्दभेदी बाण से बी जादा च ,म्यार ख्याल से त महंगै अर गरीबी कू साख्युं कु बैर च ,क्या पता महंगै अर गरीबी कू जलम जलामांतर कू प्रेम व्हा या व्हेय सकद वूंन्कि सौं करार करीं हो ,खैर जू बी व्हा यक्खम म्यारु मकसद आज अचाणचक्क से महंगै अर गरीब गुर्बौं रिश्ता नातौं कि ऐसी तैसी कन्ना कतै नी च उन्न बी महंगै अर हमरू रिश्ता कुई द्वी चार दिनौ रिश्ता नि च ,सच बात या च कि हमर बुबा अर दद्दा बी महंगै से इन्नी डरदा -घबरान्दा छाई जत्गा आज हम घबराणा छौ ,हमर मुल्क मा महंगै थेय कू ल्याई ? जब हम ईं बातै छांल छांट करण बैठो त पता चली कि भारतम गरीबी अर महंगै प्रेम कि या कथा पटकथा कुई नै नि च ,पिक्चर वी च बस पिक्चर का कलाकार किरदार नै- नै छीं | महंगैळ जनता सदनी त्राहि त्राहि करद वा बात हैंकि च कि सरकार थेय खाली चुनौ टैम फर महंगै से मुण्डरु हूँन्द ,महंगै कि मार से कत्गै सरकारौं कि मौ धार लग्गीं जान्द त कत्गै दा या विरोधी पार्टी थेय सत्ता सुख चखणा कु मौक़ा बी दिन्द ,वेका बाद सैद फिर नै सरकार अर महंगै मा घुंच-पींच व्हेय जान्द ,सरकार फिर अपडा राज काज मा मस्त व्हेय जान्द अर महंगै अपडा काम मा |

महंगै फर दिमाग तचाणा बाद जब म्यारू द्वी घूट च्या पीणा कु ज्यू ब्वाल त साब मी भितर तक कौंपी ग्यौं अर सोच मा पोड़ी ग्यौं कि जे मुल्क मा चिन्नी कु जबरदस्त उत्पादन हूँणु च वक्ख च्या अज्काल इत्गा कढ़ी किलै हूँणी च ,आखिर क्या बात च कि अज्काल च्या कु नौ सुणिक ही बस लोगौं गिच्ची टटमिरी अर मिजाज खराब व्हेय जान्द ? खैर उन्न बी हम्थेय आज तक च्या पेकि क्या मिल ? अरे भै मी त ब्वल्दु कि आखिर हम ईं च्या थेय पीणा किलै छौ ? सवाल त यू बी च कि हम प्याज अर टिमाटर किलै खन्दौ ? खैर सवाल ता और बी भोत छीं पर फिलहाल म्यार ज्यू च्या पीणा कु कन्नू च | च्या से एक बात दिमाग मा कबलान्द कि जे देश मा च्या फर चर्चा कैर कैरिक एक मजबूत सरकार खड़ी व्हेय जान्द वे देश मा महंगै कि मार से टटमिरी हुयीं बिचरि चिन्नी कि ईं हालत फर शोक मनाणु क्या असल राष्ट्र -प्रेम अर लोकतांत्रिक परम्परा वल्ली बात नि च ? खैर परम्परा कु क्या च ? वू या त निभाणा खुण हुन्दी या फिर त्वडणा खुण ? सैद नै सरकार बी महंगै फर पिछिल सरकार जन्न परम्परा निभाणी च !

च्या पिन्द पिंन्द परम्परा से मेरी खोपड़ी मा एक ख्याल आई कि अगर पुरण जमाना मा बी अगर इन्नी महंगै हूँन्दी त क्या हाल हुन्दा ? जरा स्वाचा धौं कि अगर द्वापर युग मा बी इन्नी महंगै हूँन्दी त तब क्या हालत हुन्दी ? क्या पता से कुरुक्षेत्र मा श्रीकृष्ण कु गीता उपदेश "महंगै " फर फोकस हूँन्दू ?
तब क्या पता से श्रीकृष्ण ब्वल्दा : हे पार्थ " ना शस्त्र ईं थेय भेद सक्दु ना आग ईं थेय फूक सकद ,न औडल ईं थेय उड़ा सक्दु ना पाणि ईं थेय बुगा सक्दु ,
हे कौन्तेय ! या महंगै अजर-अमर च "

सैद अर्जुन सवाल करदू

आखिर ईं महंगै कु कारण क्या च माधव ?
त क्या माधव ईं महंगै से बचणा कु कुई उपाय नि च ?
क्या ईं महंगै से एक आम आदिम थेय कब्बि मुक्ति नि मिल सकदी माधव ?
महंगै अर गरीबी मा क्या रिश्ता च माधव ?

येक बाद सैद अर्जुन ब्वल्दु :
हे कृष्ण मिथै महंगै से भारी डैर लगद ,ईं महंगै दगड मी लडै नि कैर सक्दु !

फिर सैद श्रीकृष्ण ब्वल्दा :
हे पार्थ तुम समझदार आदिम व्हेय कि बी वीं धाणी खुण शोक कन्ना छौ ज्वा शोक करण लैक नि च ,जू विद्वान आदिम हूँन्दी वू बचीं या फिर म्वरीं खुण शोक नि करदा ,इन्नु कब्बि नि व्हेय कि महंगै नि रै व्होलि ,मी नि रै व्होलू अर तुम नि रै व्होला , अर ना भविष्य मा इन्नु व्हालू कि हम सब्बि नि रौला ,

हे अर्जुन महगैं सुख -दुःख गरीबी सब ह्युंद अर रूडयूँ जन्न हूँन्दी ,जू आदिम महंगै से नी घबरान्दू वे थेय साक्षात मोक्ष प्राप्त हूँन्द ,तत्वदर्शियों मतलब कि आधुनिक अर्थशास्त्रीयूँक हिसाबळ असत (भौतिक शरीर) चिरस्थाई मतलब कि सदनी रैण वल्लु नि च पर सत (महंगै ) चिरस्थाई मतलब कि सदनी रैण वल्ली च | वूंन्ल अर्थशास्त्र का घोर गैरा सिद्धांतौ आधार फर या बात ब्वलीं च ,इल्लै हे पार्थ ज्वा सरया दुनिया मा फैलीं च तुम वीं महंगै थेय अविनाशी जाणा ,वीं कु नाश कन्नै सक्या कै फर बी नि च |
जू ईं महंगै थेय मरण वल्ली समझद वू परम ज्ञानी च अर जू इन्न समझद कि ईं महंगै थेय मरै जा सकद वू परम अज्ञानी च किलैकि महंगै मार सकद पर महंगै थेय मरै नि जा सक्दु |

हे पार्थ जन्न मनखि पुराणा लारा लत्ता छोडिक नै लारा पैरद उन्नी महंगै बी पुरणी सरकार थेय छोडिक नै सरकार फर चिबट जान्द
ना महंगै थेय अर्थशास्त्री रोक सक्दा ना शिक्षा-स्वास्थ्य -रेल या वितमंत्री अर और त और ना ही देशक प्रधानमंत्री |

या महंगै ना टूटण वल्ली च अर ना माटम मिलण वल्ली ,ईं थेय ना त फुंड धौलै जा सक्दु अर ना ही ईं कु बाढ़ण रोकै जा सक्दु ,या शाश्वत,सब्बि जग्गाह एक जन्न अर सदनी इन्नी रैण वल्ली चीज च |

जातस्य हि ध्रुवो कि व्याख्या सैद तब्ब इन्न हूँन्दि - "जैल जलम धार वे थेय म्वरद -म्वरद या महंगै त भुगतण हि प्वाडलि ,यक्ख तक कि म्वन्ना बाद फिर दुबारा जलम व्हालू अर फिर या महंगै दुबर भुगतण प्वाडलि ,इल्लै हे पार्थ! ईं महंगै से ना डैर वीं खुण शोक नि कैर |

" आश्चर्यवत्पश्यति कश्चिदेन .." कि व्याख्या सैद तब्ब इन्न हूँन्दि -हे पार्थ ! कुई महंगै थेय अचरज कैरिक दयख्द ,कुई ईं थेय अचरज कैरिक बतान्द अर कुई ईं थेय अचरज कैरिक सुणद पर कुई -कुई महगैं बारम सुणिक बी ईंका बारम कुछ नि समझ सक्दा ,क्षत्रिय हूँणा नाता से अपणा धर्मक हिसाबळ महंगै से लडै करण से बडू कुई और कर्म तुम खुणि नि च ,इल्लै संकोच नि कैर |
" कर्मण्येवाधिकरास्तेय मा फलेषु कदाचन: " मा श्रीकृष्ण कु पैली ब्वल्यूं च कि भै अर्जुन तू बस कर्म कैर फल कि इच्छा बिलकुल नि कैर !

फिर सैद अर्जुन सवाल करदू : केशव महंगै का क्या -क्या लक्षण हूँन्दि ? महंगै कु मरियूँ आदिम कन्न बच्यांद ,कन्न बैठद अर कन्न कैरिक चलद ?

खैर या त व्हाई महंगै का नौ फर मनोरंजन या टैम पास कन्ना बात पर असल बात क्या च ?

सच अर उल्टी बात या च अज्काल अर्थशास्त्री मतलब बोलण्या अर्थशास्त्री सरया दिन सूचकांक फर आँखा लग्गैकि महंगै खुण रुणा रैन्दीन ,अखबार ,टी.वी . फर जणगुरु लोग अर विपक्षी नेता महंगै कु महामात्य सुणाकि सुबेर भटेय राति तक रुदन कैरिक हम थेय इन्न समझाणा रैंदीन कि भै सरकारळ महगैं बढ़ा याळ ,निर्भगी इन्न बी नि स्वचदा कि जे फर बितणी होलि वू कन्न नि जाणलू या बात ?
या बात ता हम बी जणदौ कि हम फर महंगै कु रोग लग्युं च ,हल्ला क्यों कन्ना छौ भई सुद्दी मुद्दी ,कुछ दवै-दारु च ता ब्वाला नथिर सुद्दी ...

भै म्यार विचार से त महंगै एक गल्या बल्द सी च ,वे थेय कत्गा हि सोट्गी मारा वेल अपड गल्यापन्न नि छ्व्डणु ,पर किलैकि सरकार ब्वलद कि हमल महंगै फर लगाम लगाण ता यान्कू मतलब क्या व्हाई ?

मतलब यू व्हाई कि महंगै गल्या बल्द नि च घ्वाडा च ,अरे भै लगाम त आखिर घ्वाडा फर हि लगद ना बल्द फर थोड़ी लगद ,वे फर त म्वाला लग्दीं,पर यक्ख ता उलटा काम हूँणा छीं सरकार महंगै फर त लगाम लगा नि सकणी च उल्टू जनताौ गिच्चौं फर म्वाला लगाणी च |
महंगै से सरकार अर जनता जथ्गा परेशान छीं विपक्षी दल उत्गा हि खुश कि बेट्टौं अब् ब्वाला ? भोत हल्ला मचाणा छाई ना तुम हमर टैम मा ? इतिहास बी गवाह च कि महंगै सदनी सरकार कि सौत अर विपक्ष कि प्रेमिका बणिक रैंन्द ,महंगै विपक्ष खुणि खाली एक मुद्दा नि च यू सरकार फर चलाणा कु एक अचूक ब्रह्मास्त्र च ,या रियलीटी शो मा विपक्ष कि बौडई खुण एक "वाईल्ड कार्ड एंट्री " जन्न च ,हाँ महंगै का बारामा एक ख़ास बात या च कि महंगै संवैधानिक रूप से पूरी "सेकुलर" हूँन्द किलैकि या सब्बि धर्म अर जाति का लोगौं फर एक ही जन्न चिबटद ,हाँ वा बात हैंकि च की असर या आदिम देखिक करद | उन्न अगर देखेय जाव त या एकदम बेशरम अर नानसेंस टैप कि चीज हूँन्द जैं फर शरम लिहाज या मन्खियात जन्न कुई गुण नि हूँन्दू ,यत एक खबेश जन्न हूँन्द ,एक बार चिबटी ग्याई त समझा चिबटी ग्याई सदनी खूण | महंगै कि एक और खासियत या बी च कि या भेष बदलण मा नंबर एक हूँन्द ,कब्बि चिन्नी कब्बि तेल ,कब्बि पिट्रोल कब्बि प्याज कब्बि टिमाटर त कब्बि दाल जक्ख मौका मिलद वक्खी चिबट जान्द | या महंगै कुण्डली मा लग्युं कालसर्प दोष से बी खतरनाक च ,महंगै कि दशा शनि -राहू या केतु दशा से बी भारी हूँन्द ,वू दिन बी दूर नी छीं जब लोग ज्योतिष -बामणु -या पुछयर मा शनि -राहू या कालसर्प दोष निमारणौ जग्गाह "महंगै " रोग से मुक्ति कु बाटू खुज्याणा कु जाला |

मी स्वच्णु छौं की महगैं फर एक "महंगै पुराण " या फिर " महंगै कि विकास जात्रा ,एक शोधपरक अध्ययन " नौ से किताब ल्यखुं ,पैली मी स्वच्णु छाई कि याँ से पैली कै "अर्थशास्त्री" से सौ सलाह कैर ल्यूं पर जब भटेय कुछ अर्थशास्त्री महंगै थेय कंट्रोल कन्न मा फ्लाप हुईं मिथेय सब्बि अर्थशास्त्री अब सिरफ गिच्चा लाल शास्त्री जन्न लग्दीं अर मी वूं से दूर रैणु ही पसंद करदू वुन्थेय बिलकुल बी मुख नि लगांदु ,फिर मी स्वचदू कि " महंगै से बचणक १००१ उपाय " किताब ल्यखणु आर्थिक हिसाब से जादा बढिया रालु |

पर एक बात च या महंगै बी क्या बक्की बातै चीज च तब्बा ? अब द्याखौ जू नेता -मंत्री कुछ बग्त पैली ईं महंगै फर खामोश बैठयाँ छाई ,जौंका गिच्चौं फर म्वाला लग्यां छाई वू आज सुबेर शाम महंगै नौ फर गिच्चा चिरफाडिक रुणा छीं ,सरकार थेय गालि दिण फर लग्यां छीं अर जनता फर बी चुगनी दिणा छीं कि अब खावा माछा बेट्टौं,
कन्न अन्दीन बेट्टों अब तुम्हरा अच्छा दिन ?

अर जू विपक्षी नेता ब्याली तक पिछली सरकार थेय महंगै का नौ फर बदनाम कन्ना छाई वूंन्का पितृ पूजणा छाई ,आज वूंन्का सरकरी गिच्चौं फर म्वाला लग्यां छीं |
इन्नमा सवाल यु खडू हूँन्द कि आखिर सरकार अर ईं महंगै कु रिश्ता क्या च ? अगर महंगै आज तलक सरकारौ थेय डूबाणि च त भै सरकार ईं महगैं कु क्या कन्नी च ?
भैज्जी बल सुणणा मा आणु च कि सरकार जनता थेय कड़ी दवै पिलाणै त्यरी कन्नी च ,

त फिर भारै अब च्या छ्वाडा अर कड़ी दवै पिणा खूण व्हेय जाव सब तयार !



Copyright@ Geetesh Singh Negi ,Mumbai 23/08/2014

*कथा , स्थान व नाम काल्पनिक हैं।

[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- महर गाँव निवासी द्वारा जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; कोलागाड वाले द्वारा पृथक वादी मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मल्ला सलाण वाले द्वारा भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; पोखड़ा -थैलीसैण वाले द्वारा धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले द्वारा वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी द्वारा पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक द्वारा विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक द्वारा पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक द्वारा सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक द्वारा सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक द्वारा राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; सांस्कृतिक मुल्य ह्रास पर व्यंग्य , गरीबी समस्या पर व्यंग्य, आम आदमी की परेशानी विषय के व्यंग्य, जातीय भेदभाव विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक बिडम्बनाओं, पर्यावरण विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य, राजनीति में परिवार वाद -वंशवाद पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ग्रामीण सिंचाई विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य, विज्ञान की अवहेलना संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य ; ढोंगी धर्म निरपरेक्ष राजनेताओं पर आक्षेप , व्यंग्य ,अन्धविश्वास पर चोट करते गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला जारी ]

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