हिमालय की गोद से

हिमालय  की  गोद  से
बहुत खुबसूरत है आशियाना मेरा ,है यही स्वर्ग मेरा,मेरु मुलुक मेरु देश

Friday, January 4, 2013

विश्व प्रसिद्ध कविताओं / रचनाओं का गढ़वाली भाषा अनुवाद श्रृंखला :7 (नवाज़ देवबंदी , सहारनपुर )

            

            विश्व प्रसिद्ध  कविताओं / रचनाओं  का गढ़वाली  भाषा  अनुवाद श्रृंखला :7  

                      वो रुलाकर हँस न पाया देर तक (नवाज़ देवबंदी , सहारनपुर )


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रचनाकार परिचय 
उपनाममुहम्मद नवाज़ खान (मूल नाम)
जन्म स्थानदेवबन्द, सहारनपुर, उत्तरप्रदेश
कुछ प्रमुख
कृतियाँ
पहली बारिश, पहला आसमान (दोनों ग़ज़ल-संग्रह)

वो रुलाकर हँस न पाया देर तक  ,  वू  रुवा की हैंसी नि साकू भण्डया देर तक
जब मैं रोकर मुस्कुराया देर तक     जब मी हैन्सू   रौ  भण्डया देर तक
भूलना चाहा अगर उस को कभी      चाही बिसराणु वे थेय जब भी कब्भी
और भी वो याद आया देर तक       याद वू खूब आयी  भण्डया देर
भूखे बच्चों की तसल्ली के लिये        भूखा नौना की तसल्ली खुणि
माँ ने फिर पानी पकाया देर तक       ब्वेऽल फिर पाणी तचाई अबेर तक
गुनगुनाता जा रहा था इक फ़क़ीर      गीत गान्दा जाणु छाई एक फ़कीर
धूप रहती है ना साया देर तक           घाम रैंन्द ना छैल भण्डया देर तक .......


(मूल रचना : भाई  नवाज देबबंदी ,सहारनपुर ,गढ़वाली अनुवादक ,गीतेश सिंह नेगी )









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स्रोत : हिमालय कि गोद से ,गढ़वाली भाषा अनुवादक : गीतेश सिंह नेगी

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