" हिसाब "
उम्र कट्टी ग्याई जग्वाल मा ,
जोडिक खैरि कु मेरी हिसाब रख्याँ
तुमल कब्भी कुछ ब्वालू निच ,
ना कुछ मी ही बोल साकू
बगत आलू बौडिक फिर ,
सोचिक इत्गा ही तुम ऐथिर
अफ्फु फर हौसला बाच रख्याँ
जौं बाटों मा छुट दगडू तुम्हरू ,
आज तलक भी वू सुनसान ही छीं
कभी ता व्होली मुलाक़ात फिर ,
संभाली कि कुछ अपडा पुरणा जज्बात रख्याँ
नी स्याई बरसूं भट्टी ई आँखी ,
रुझी रुझिक खुदैक बस्गाल व्हेय गईँ
मी सायेद आ भी जौलू बौडिक स्वीणौ मा ,
तुम एक बार कैरिक म्यारु ख्याल त देख्याँ
अस्धारियुं का समोदर मा ,
पीड़ा मेरी अब जब एक बूंदा पाणि सी व्हेय ग्याई
खैर लगौलू तुम मा फिर भी अप्डी ,
कब्भी निकालिक बगत तयार रख्याँ
ब्याली तक छाई अणबुझा सवाल जू ,
आज वीह मि खुण कन्न जवाब व्हेय गईँ
क्या ही मौलला घौव मेरी जिकड़ी का उन्न त अब
पर फिर भी तुम कैरिक मलहम अप्डी प्रीत कु तयार त रख्याँ
स्रोत : हिमालय की गोद से ,गीतेश सिंह नेगी (सर्वाधिकार सुरक्षित )
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