हिमालय की गोद से

हिमालय  की  गोद  से
बहुत खुबसूरत है आशियाना मेरा ,है यही स्वर्ग मेरा,मेरु मुलुक मेरु देश

Saturday, January 5, 2013

हिसाब


          " हिसाब "


उम्र कट्टी ग्याई जग्वाल मा ,
जोडिक खैरि कु मेरी हिसाब रख्याँ
तुमल कब्भी कुछ ब्वालू निच ,
ना कुछ मी ही  बोल साकू
बगत आलू  बौडिक फिर ,
सोचिक इत्गा ही तुम ऐथिर
अफ्फु फर   हौसला बाच रख्याँ

जौं बाटों मा छुट दगडू तुम्हरू ,
आज तलक  भी वू सुनसान ही छीं 
कभी ता व्होली मुलाक़ात फिर ,
संभाली कि  कुछ अपडा
पुरणा जज्बात रख्याँ

नी स्याई बरसूं भट्टी ई आँखी ,
रुझी रुझिक  खुदैक बस्गाल व्हेय गईँ
मी सायेद आ भी 
जौलू बौडिक  स्वीणौ मा ,
तुम एक बार कैरिक म्यारु ख्याल त देख्याँ


अस्धारियुं का समोदर मा ,
पीड़ा मेरी अब जब एक बूंदा पाणि सी व्हेय ग्याई
खैर  लगौलू तुम मा फिर भी  अप्डी  ,
कब्भी निकालिक बगत तयार  रख्याँ



ब्याली  तक छाई अणबुझा सवाल जू ,
आज वीह  मि खुण  कन्न जवाब व्हेय गईँ 
 क्या ही  मौलला घौव मेरी जिकड़ी का उन्न त अब
 पर  फिर भी तुम कैरिक  मलहम अप्डी प्रीत कु तयार त  रख्याँ 

 


स्रोत : हिमालय की गोद से ,गीतेश सिंह नेगी (सर्वाधिकार सुरक्षित )

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