" फर्क "
मेरी तन्हाईयाँ अब दिल उदास नहीं करती
खामोश आती हैं तेरी यादें चुपचाप लौट जाती हैं
अश्कों की वो अब वो हरपाल बरसात नहीं करती
मेरी तन्हाईयाँ अब दिल उदास नहीं करती
मेरे घर अब भी आते हैं परिंदे प्यार के मानिद
बस खतों की उनसे हम तुम्हारे अब फ़रियाद नहीं होती
तुम्हारी याद अक्सर आती हैं बेशक हम तुम्हे याद नहीं करते
हर ख्वाईश हो जाती है मुकम्मल जब से हम ख्वाइशैं नहीं रखते
इश्क तुमने भी किया हमने भी किया हम इससे कभी इनकार नहीं करते
फर्क इतना ही रहा की तुम इसका कभी जिक्र सरे बाज़ार नहीं करते
स्रोत : हिमालय की गोद से ,गीतेश सिंह नेगी (सर्वाधिकार सुरक्षित )
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