घुप्प अंधेरों मे कटता है तन्हा सफ़र
कुछ तो बचा के उम्मीदों के उजाले रखो
बहुत उडेंगी सुर्ख फिजाओं में खामोश बातें
जितना हो सके कम हमसे अब फासला रखो
यू आसां नहीं मुस्कुराना इस जमाने में प्यार बिन
अक्सर अकेले में भी रोने का कभी हौसला रखो
बहुत आयेंगी कयामतें राह एय मोहबत्त में अभी
हो सके तो हुनर आँधियों में चिराग जगमगाने का रखो
इश्क से रुस्वाईयां तुझको ही नहीं दुनिया को भी हैं "गीत "
मुमकीन है तकरार हो खुदा से भी कभी इतना तो कलेजा रखो
स्रोत : हिमालय की गोद से ,गीतेश सिंह नेगी (सर्वाधिकार सुरक्षित )
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