" ठेकादारी "
पहाड़ मा पहाड़ नि च ,मुल्क गंगा पाणी जी
गोमती का तीर बैठीं ,अज्काल बुड़ेंदा की स्याँणी जी
कब्भी खाई गैरसैंण यूँल ,कब्भी परिसीमन पचाई जी
कब्भी डुबाई टिहरी यून्ल , कब्भी रस कुम्भ चस्गाई जी
कक्खी चिपकाई संस्कृत यून्ल ,कक्खी उर्दू कुच्याई जी
गढ़वली कुमौनी बोलण मा युन्थेय ,हे ब्वे कन्न शर्म आई जी
कुई ब्व़नु बंगाली छौँ ,कुई ब्व़नु मी नेपाली जी
उत्तराखंडी बोलण मा यून्की ,किल्लेय टवट्कि व्हाई जी .....
अपड़ो थेय थंतियाई यून्ल ,बिरणो थेय पिल्चाई जी
अप्डी ही फूकी झोपडी तमाशु , दुनिया थेय दिखाई जी
कैल बुखाई डाम यक्ख ,कैल बस चक्डाम ही खाई जी
कैमा फौज़ चकडैतौंऽ की ,कैमा भड बड़ा बड़ा नामधारी जी
कुई बणया छीं चारण दिल्ली का ,कुई भाट देहरादूण दरबारी जी
शरम ,मुल्क बेची याल ,छीं इन्ना कमीशन खोर व्यापारी जी
कैकु मुल्क कैक्की भाषा कैकु विकास ,हम त दर्जाधारी जी
कुई मोरयाँ भाँ कुई बच्यां ,बैठ्यां हम त बस सार ठेक्कदारी जी
बैठ्यां हम त बस सार ठेक्कदारी जी
बैठ्यां हम त बस सार ठेक्कदारी जी
स्रोत : हिमालय की गोद से ,गीतेश सिंह नेगी ( सर्वाधिकार सुरक्षित )
No comments:
Post a Comment