"आखिर कब तक " ?
अर्जुन का गांडीव आज खंडित है
फिर स्तब्ध है महाबली का बल
शून्य उद्घोष है आज पांचजन्य फिर से
चक्र रहित है फिर सुदर्शन हस्त
पुरुषोतम को है शायद वनवास अभी तक भारत में
और क्यूँ धृत-राष्ट्र
मौन है सदियौं से
अट्टहास कर रहा दुर्योधन देखो फिर
असहाय खड़ी है एक द्रोपदी फिर से आज
खंडित हुआ गौरव भारत का
हाय लुट गई मानवता की लाज
अश्रु लिये विलाप रही द्रोपदी फिर
पूछ रही फिर वही सवाल
हे पुरुष -कब तक जारी रहेगी यह महाभारत तेरी
और कब तक बनती रहूंगी शिकार सिर्फ मैं ही
चीरहरण का
और झेलती रहूँगी दंश
तेरे तथाकथित पौरुष अभिमान का
बार बार
हर युग में
यूँ ही
इसी तरह
आखिर कब तक ?
स्रोत : हिमालय की गोद से ,गीतेश सिंह नेगी ,
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