"आखिर कुछ त बात होलि "
लग्युं च ह्युं हिवालियुं या फिर लग्गीं कुयेडी बस्गाल होलि
मुछियला फिर बागी बण्या छीं आखिर कुछ त बात होलि
मनु जब सच किटकतली खित हैसणु च झूठ मुख खोली
किल्लेय कुई फिर भी चुपचाप च बैठ्युं आखिर कुछ त बात होलि
सुलगणा छीं लोग जक्ख तक्ख उठ्युं धुँवारोळ द्याखा
लग्गीं खिकराण सब्बू थेय आखिर कुछ त बात होलि
हुयाँ छीं अपडा ही दुश्मन ,सज्जीं च गढ़ भूमि कुरुक्षेत्र
लग्गीं च लडै महाभारत आखिर कुछ त बात होलि
गर्जणा घनघोर बादल चमकणी चम-चम चाल भी होलि
किल्लेय मुख उदंकार लुकाणु च आखिर कुछ त बात होलि
उठणा छीं कुछ लोग अभी अभी कै बरसू मा नीन्द तोड़ीऽ
मचलू घपरोल भारी भोल जब आखिर तब कुछ त बात होलि
यक्ख भी होलि वक्ख भी होलि अब बस हकैऽ बात होलि
इंकलाबी बगत आलू बोडिक उज्यली फिर चिन्गरोंल हर रात होलि
सुलगणा छीं पाहड पुटग ही पुटग झणी कब भटेय "गीत "
पिल्चली आग जब पिरूल मा त फिर आग ही आग होलि
यक्ख भी होलि वक्ख भी होलि अब बस हकैऽ बात होलि
पिल्चली आग जब पिरूल मा त फिर आग ही आग होलि
पिल्चली आग जब पिरूल मा त फिर आग ही आग होलि |
स्रोत :अप्रकाशित गढ़वाली काव्य संग्रह "उदंकार " से ,गीतेश सिंह नेगी ( सर्वाधिकार सुरक्षित )
लग्युं च ह्युं हिवालियुं या फिर लग्गीं कुयेडी बस्गाल होलि
मुछियला फिर बागी बण्या छीं आखिर कुछ त बात होलि
मनु जब सच किटकतली खित हैसणु च झूठ मुख खोली
किल्लेय कुई फिर भी चुपचाप च बैठ्युं आखिर कुछ त बात होलि
सुलगणा छीं लोग जक्ख तक्ख उठ्युं धुँवारोळ द्याखा
लग्गीं खिकराण सब्बू थेय आखिर कुछ त बात होलि
हुयाँ छीं अपडा ही दुश्मन ,सज्जीं च गढ़ भूमि कुरुक्षेत्र
लग्गीं च लडै महाभारत आखिर कुछ त बात होलि
गर्जणा घनघोर बादल चमकणी चम-चम चाल भी होलि
किल्लेय मुख उदंकार लुकाणु च आखिर कुछ त बात होलि
उठणा छीं कुछ लोग अभी अभी कै बरसू मा नीन्द तोड़ीऽ
मचलू घपरोल भारी भोल जब आखिर तब कुछ त बात होलि
यक्ख भी होलि वक्ख भी होलि अब बस हकैऽ बात होलि
इंकलाबी बगत आलू बोडिक उज्यली फिर चिन्गरोंल हर रात होलि
सुलगणा छीं पाहड पुटग ही पुटग झणी कब भटेय "गीत "
पिल्चली आग जब पिरूल मा त फिर आग ही आग होलि
यक्ख भी होलि वक्ख भी होलि अब बस हकैऽ बात होलि
पिल्चली आग जब पिरूल मा त फिर आग ही आग होलि
पिल्चली आग जब पिरूल मा त फिर आग ही आग होलि |
स्रोत :अप्रकाशित गढ़वाली काव्य संग्रह "उदंकार " से ,गीतेश सिंह नेगी ( सर्वाधिकार सुरक्षित )