हिमालय की गोद से

हिमालय  की  गोद  से
बहुत खुबसूरत है आशियाना मेरा ,है यही स्वर्ग मेरा,मेरु मुलुक मेरु देश

Sunday, January 13, 2013

आखिर कुछ त बात होलि

              "आखिर कुछ त बात  होलि  "


लग्युं  च ह्युं  हिवालियुं  या फिर  लग्गीं कुयेडी बस्गाल होलि
 मुछियला फिर बागी बण्या छीं  आखिर कुछ त बात  होलि

मनु जब सच  किटकतली  खित हैसणु च झूठ मुख खोली
किल्लेय कुई  फिर भी चुपचाप च बैठ्युं आखिर कुछ त बात  होलि

सुलगणा छीं  लोग
जक्ख  तक्ख उठ्युं धुँवारोळ  द्याखा
लग्गीं  खिकराण सब्बू थेय आखिर कुछ त बात  होलि

 हुयाँ छीं  अपडा ही दुश्मन ,सज्जीं  च गढ़ भूमि कुरुक्षेत्र
लग्गीं  च लडै महाभारत  आखिर कुछ त बात होलि

गर्जणा  घनघोर बादल चमकणी चम-चम चाल भी होलि
किल्लेय मुख उदंकार लुकाणु  च आखिर कुछ त बात होलि


उठणा छीं  कुछ लोग अभी अभी  कै बरसू मा नीन्द  तोड़ीऽ 
मचलू घपरोल भारी भोल जब  आखिर तब कुछ त बात होलि 

यक्ख भी होलि वक्ख  भी होलि अब बस  हकैऽ   बात होलि
इंकलाबी बगत आलू बोडिक उज्यली फिर चिन्गरोंल हर रात  होलि 

सुलगणा  छीं पाहड पुटग  ही पुटग झणी कब भटेय "गीत "
पिल्चली आग जब  पिरूल मा त  फिर आग ही आग होलि

यक्ख भी होलि वक्ख  भी होलि अब बस  हकैऽ   बात होलि
पिल्चली आग जब  पिरूल मा त  फिर आग ही आग होलि
पिल्चली आग जब  पिरूल मा त  फिर आग ही आग होलि  |



स्रोत :अप्रकाशित गढ़वाली काव्य संग्रह "उदंकार " से ,गीतेश सिंह नेगी ( सर्वाधिकार सुरक्षित )

Sunday, January 6, 2013

अलविदा जिंदगी !

                 अलविदा जिंदगी !
 
गमो को सुर बना लिया यादों को तेरी साज  बना लिया
तंग थी जिंदगी सो ख्वाबौं  को तेरी पनाहगाह बना लिया

यु तो अब आलम है रोज ख़ामोशी का और नया कुछ नहीं  
लब्ज़ लगे होठों को तेरे सोच मैने अपनी  आवाज बना लिया

क़दम मेरे अक्सर ठिठक जाते  है आज भी  उस राह पर जहाँ कभी हम थे मिले 

मैं अब भी मिलूंगा बिलखता वहीँ जहाँ  खीचकर लकीर तुमने दरम्यां फासला बना लिया 

बहुत रोया लिपटकर उस रोज वो शख्स पहली बार शायद मुझसे "गीत "
जब मैने कहा अलविदा जिंदगी ! अब दिन तेरी रुक्सत का आ गया
जब मैने कहा अलविदा जिंदगी ! अब दिन तेरी रुक्सत का आ गया


 

 स्रोत :हिमालय हिमालय  की गोद से ,गीतेश सिंह नेगी,सर्वाधिकार सुरक्षित

तन्हा सफ़र



घुप्प अंधेरों  मे कटता  है तन्हा  सफ़र  
 कुछ तो बचा  के उम्मीदों  के उजाले रखो

बहुत उडेंगी सुर्ख फिजाओं में खामोश बातें
जितना हो सके कम हमसे अब फासला रखो

यू  आसां नहीं  मुस्कुराना इस जमाने में प्यार बिन
अक्सर अकेले में भी रोने का  कभी   हौसला रखो

बहुत आयेंगी कयामतें राह एय  मोहबत्त  में  अभी
हो सके तो हुनर आँधियों  में चिराग जगमगाने का रखो

 इश्क से रुस्वाईयां  तुझको ही नहीं दुनिया को भी हैं "गीत "
 मुमकीन है तकरार हो  खुदा  से भी कभी इतना तो कलेजा रखो 
 


स्रोत :   हिमालय की गोद से ,गीतेश सिंह नेगी (सर्वाधिकार सुरक्षित )

Saturday, January 5, 2013

फर्क


       " फर्क "

मेरी तन्हाईयाँ  अब दिल उदास  नहीं करती
खामोश आती हैं तेरी यादें चुपचाप लौट जाती हैं 
अश्कों  की वो अब वो हरपाल बरसात नहीं करती
मेरी तन्हाईयाँ  अब दिल उदास  नहीं करती

मेरे घर अब  भी आते हैं परिंदे प्यार के मानिद
बस खतों  की उनसे हम तुम्हारे अब फ़रियाद नहीं होती

तुम्हारी याद अक्सर आती हैं  बेशक हम तुम्हे याद नहीं करते
हर ख्वाईश हो जाती है मुकम्मल जब से हम ख्वाइशैं नहीं रखते  

इश्क तुमने भी किया हमने भी किया हम  इससे कभी  इनकार नहीं करते
फर्क  इतना  ही रहा  की तुम  इसका कभी जिक्र सरे बाज़ार नहीं   करते

स्रोत : हिमालय की गोद से ,गीतेश सिंह नेगी (सर्वाधिकार सुरक्षित )


ग़ज़ल : खुदा

              " खुदा "

वक्त गुजरता रहा क्या से क्या हो गया
हमने जब भी जिसे चाहा वही  खुदा हो गया

चाहत एय इश्क में  क़त्ल हो गयीं आँखें
फिर कुछ नहीं देखा
जब भी जिसको देखा वही बस फरिश्ता हो गया

गम की स्याह रातौं में रोने से अब क्या फ़ायदा
वक्त की करवटों के रुख से मैं  खुद ही बे-जिया हो गया

वक्त गुजरता रहा क्या से क्या हो गया
हमने जब भी जिसे चाहा वही  खुदा हो गया

मेरे खुदा ने लिख दी तहरीर मेरी अश्कों से उस रोज
 चाहा लिपटकर जब रोना मैने
 और उसने सिर्फ चुप होने का इशारा कर दिया

उसकी यादें  जीनत है  मेरी जिंदगी भर की 
और अब मुझे  तडफ कर नहीं  जीना
मांगता रहा मौत खुदा से यही सोचकर
पर उसने जीना सजा मुकरर्र कर दिया

वक्त गुजरता रहा क्या से क्या हो गया
हमने जब भी जिसे चाहा वही  खुदा हो गया




स्रोत : हिमालय की गोद से ,गीतेश सिंह नेगी  (सर्वाधिकार सुरक्षित)

हिसाब


          " हिसाब "


उम्र कट्टी ग्याई जग्वाल मा ,
जोडिक खैरि कु मेरी हिसाब रख्याँ
तुमल कब्भी कुछ ब्वालू निच ,
ना कुछ मी ही  बोल साकू
बगत आलू  बौडिक फिर ,
सोचिक इत्गा ही तुम ऐथिर
अफ्फु फर   हौसला बाच रख्याँ

जौं बाटों मा छुट दगडू तुम्हरू ,
आज तलक  भी वू सुनसान ही छीं 
कभी ता व्होली मुलाक़ात फिर ,
संभाली कि  कुछ अपडा
पुरणा जज्बात रख्याँ

नी स्याई बरसूं भट्टी ई आँखी ,
रुझी रुझिक  खुदैक बस्गाल व्हेय गईँ
मी सायेद आ भी 
जौलू बौडिक  स्वीणौ मा ,
तुम एक बार कैरिक म्यारु ख्याल त देख्याँ


अस्धारियुं का समोदर मा ,
पीड़ा मेरी अब जब एक बूंदा पाणि सी व्हेय ग्याई
खैर  लगौलू तुम मा फिर भी  अप्डी  ,
कब्भी निकालिक बगत तयार  रख्याँ



ब्याली  तक छाई अणबुझा सवाल जू ,
आज वीह  मि खुण  कन्न जवाब व्हेय गईँ 
 क्या ही  मौलला घौव मेरी जिकड़ी का उन्न त अब
 पर  फिर भी तुम कैरिक  मलहम अप्डी प्रीत कु तयार त  रख्याँ 

 


स्रोत : हिमालय की गोद से ,गीतेश सिंह नेगी (सर्वाधिकार सुरक्षित )

Friday, January 4, 2013

विश्व प्रसिद्ध कविताओं / रचनाओं का गढ़वाली भाषा अनुवाद श्रृंखला :7 (नवाज़ देवबंदी , सहारनपुर )

            

            विश्व प्रसिद्ध  कविताओं / रचनाओं  का गढ़वाली  भाषा  अनुवाद श्रृंखला :7  

                      वो रुलाकर हँस न पाया देर तक (नवाज़ देवबंदी , सहारनपुर )


विश्व प्रसिद्ध कवियौं क़ि  कविताएँ; विश्व प्रसिद्ध कवियौं क़ि कविताओं का एशियाई अनुवादक का अनुवाद ; विश्व प्रसिद्ध कवियौं क़ि कविताओं का दक्षिण  एशियाई अनुवादक का अनुवाद ; विश्व प्रसिद्ध कवियौं क़ि कविताओं का भारतीय  अनुवादक का अनुवाद ; विश्व प्रसिद्ध कवियौं क़ि कविताओं का उत्तर भारतीय  अनुवादक का अनुवाद ; विश्व प्रसिद्ध कवियौं क़ि कविताओं का हिमालयी  अनुवादक का अनुवाद ; विश्व प्रसिद्ध कवियौं क़ि कविताओं का मध्य हिमालयी  अनुवादक का अनुवाद ; विश्व प्रसिद्ध कवियौं क़ि कविताओं का गढ़वाली  अनुवादक का अनुवाद;


रचनाकार परिचय 
उपनाममुहम्मद नवाज़ खान (मूल नाम)
जन्म स्थानदेवबन्द, सहारनपुर, उत्तरप्रदेश
कुछ प्रमुख
कृतियाँ
पहली बारिश, पहला आसमान (दोनों ग़ज़ल-संग्रह)

वो रुलाकर हँस न पाया देर तक  ,  वू  रुवा की हैंसी नि साकू भण्डया देर तक
जब मैं रोकर मुस्कुराया देर तक     जब मी हैन्सू   रौ  भण्डया देर तक
भूलना चाहा अगर उस को कभी      चाही बिसराणु वे थेय जब भी कब्भी
और भी वो याद आया देर तक       याद वू खूब आयी  भण्डया देर
भूखे बच्चों की तसल्ली के लिये        भूखा नौना की तसल्ली खुणि
माँ ने फिर पानी पकाया देर तक       ब्वेऽल फिर पाणी तचाई अबेर तक
गुनगुनाता जा रहा था इक फ़क़ीर      गीत गान्दा जाणु छाई एक फ़कीर
धूप रहती है ना साया देर तक           घाम रैंन्द ना छैल भण्डया देर तक .......


(मूल रचना : भाई  नवाज देबबंदी ,सहारनपुर ,गढ़वाली अनुवादक ,गीतेश सिंह नेगी )









विश्व प्रसिद्ध कवियौं क़ि  कविताएँ; विश्व प्रसिद्ध कवियौं क़ि कविताओं का एशियाई अनुवादक का अनुवाद ; विश्व प्रसिद्ध कवियौं क़ि कविताओं का दक्षिण  एशियाई अनुवादक का अनुवाद ; विश्व प्रसिद्ध कवियौं क़ि कविताओं का भारतीय  अनुवादक का अनुवाद ; विश्व प्रसिद्ध कवियौं क़ि कविताओं का उत्तर भारतीय  अनुवादक का अनुवाद ; विश्व प्रसिद्ध कवियौं क़ि कविताओं का हिमालयी  अनुवादक का अनुवाद ; विश्व प्रसिद्ध कवियौं क़ि कविताओं का मध्य हिमालयी  अनुवादक का अनुवाद ; विश्व प्रसिद्ध कवियौं क़ि कविताओं का गढ़वाली  अनुवादक का अनुवाद ;  


स्रोत : हिमालय कि गोद से ,गढ़वाली भाषा अनुवादक : गीतेश सिंह नेगी