हिमालय की गोद से

हिमालय  की  गोद  से
बहुत खुबसूरत है आशियाना मेरा ,है यही स्वर्ग मेरा,मेरु मुलुक मेरु देश

Sunday, December 19, 2010

गढ़वाली कविता : यकुलांस

 यकुलांस

दिल्ली मा
अज्काला कि सब्बि सुबिधाओं व्ला
एक सांस बुझण्या फ्लैट मा
एतवारा का  दिन
जक्ख  ब्वे सुबेर भट्टेय मोबाइल फ़र चिपकीं छाई 
बुबा टीवी मा वर्ल्ड कप खेल्ण मा लग्युं छाई
और ६ बरसा कु एक छोट्टू नौनु वेडियो गेम मा मस्त हुयुं छाई
वक्ख ६२ बरसा की  एक बुडडि
छत्ता का एक कुण मा यखुली बैठीं 
टक्क लगाकि असमान देख़न्णी 
मनं ही मनं मा 
झन्णी क्या सोच्णी छाई  ?
और झन्णी क्या खोज्णी छाई ? 


रचनाकार :गीतेश सिंह नेगी (सिंगापूर प्रवास से ,दिनांक १७.१२.१० , सर्वाधिकार सुरक्षित )

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