जू भी मिल उन्थेय ,सब त्वे से ही त मिल ,
वा बात अलग चा ,
की त्वे थेय ख्वे कै ही त मिल ,
जब भी हैंस्दी, वू खित खित ही हैंस्दी अब ,
ख़ुशी या उन्थेय ,त्वे थेय रूव्ये-रूव्येक ही त मिल ,
जू भी मिल उखुंण व्हि भोत छाई ,
वा बात अलग चा ,
की उंल फिर भी त्वे से कम ही पाई ,
जू भी मिल उन्थेय ,सब त्वे से ही त मिल ,
वा बात अलग चा , की त्वे थेय ख्वे कै ही त मिल ,
वू देखणा छीन ,सुपन्या बड़ा बड़ा बल अज्ज्काल ,
वा बात अलग चा ,
दिन वूं थेय यु , त्वे से मुख -फेरीक ही त मिल ,
जू भी मिल उन्थेय , सब त्वे से ही त मिल ,
वा बात अलग चा , की त्वे थेय ख्वे कै ही त मिल ,
उक्काल काटी कै, दौड़णा छीन सरपट वू आज ,
क्या व्हाई त़ा ,
दिन यु उन्थेय, तेरी छाती म़ा खुट्टू धैरिक ही त मिल ,
जू भी मिल उन्थेय , सब त्वे से ही त मिल ,
वा बात अलग चा , की त्वे थेय ख्वे कै ही त मिल ,
बस ग्यीं आज प्रदेशु म़ा जाकी ,कैरि यलीं बल महल खड़ा ,
क्या व्हाई त़ा ,
बूणं भी उन्थेय यु ,अपड़ा घार- गौं थेय उजाडिक ही त मिल ,
जू भी मिल उन्थेय , सब त्वे से ही मिल ,
वा बात अलग चा , की त्वे थेय ख्वे कै ही त मिल ,
" गीत " तू बोडिक अई घार चम्म भुल्ला,कैकी सिखा सैऱी नि करी
किल्लेय की ख़ुशी युन्थेय ,सदनी धार पोर जाके ही त मिल !
वा बात अलग चा ,
की त्वे थेय ख्वे कै ही त मिल ,
जब भी हैंस्दी, वू खित खित ही हैंस्दी अब ,
ख़ुशी या उन्थेय ,त्वे थेय रूव्ये-रूव्येक ही त मिल ,
जू भी मिल उखुंण व्हि भोत छाई ,
वा बात अलग चा ,
की उंल फिर भी त्वे से कम ही पाई ,
जू भी मिल उन्थेय ,सब त्वे से ही त मिल ,
वा बात अलग चा , की त्वे थेय ख्वे कै ही त मिल ,
वू देखणा छीन ,सुपन्या बड़ा बड़ा बल अज्ज्काल ,
वा बात अलग चा ,
दिन वूं थेय यु , त्वे से मुख -फेरीक ही त मिल ,
जू भी मिल उन्थेय , सब त्वे से ही त मिल ,
वा बात अलग चा , की त्वे थेय ख्वे कै ही त मिल ,
उक्काल काटी कै, दौड़णा छीन सरपट वू आज ,
क्या व्हाई त़ा ,
दिन यु उन्थेय, तेरी छाती म़ा खुट्टू धैरिक ही त मिल ,
जू भी मिल उन्थेय , सब त्वे से ही त मिल ,
वा बात अलग चा , की त्वे थेय ख्वे कै ही त मिल ,
बस ग्यीं आज प्रदेशु म़ा जाकी ,कैरि यलीं बल महल खड़ा ,
क्या व्हाई त़ा ,
बूणं भी उन्थेय यु ,अपड़ा घार- गौं थेय उजाडिक ही त मिल ,
जू भी मिल उन्थेय , सब त्वे से ही मिल ,
वा बात अलग चा , की त्वे थेय ख्वे कै ही त मिल ,
" गीत " तू बोडिक अई घार चम्म भुल्ला,कैकी सिखा सैऱी नि करी
किल्लेय की ख़ुशी युन्थेय ,सदनी धार पोर जाके ही त मिल !
किल्लेय की ख़ुशी युन्थेय ,सदनी धार पोर जाके ही त मिल !
किल्लेय की ख़ुशी युन्थेय ,सदनी धार पोर जाके ही त मिल !
रचनाकार : गीतेश सिंह नेगी, सिंगापूर प्रवास से, सर्वाधिकार सुरक्षित
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