हिमालय की गोद से

हिमालय  की  गोद  से
बहुत खुबसूरत है आशियाना मेरा ,है यही स्वर्ग मेरा,मेरु मुलुक मेरु देश

Friday, December 10, 2010

गढ़वाली कविता : कै थेय क्या मिल ?

जू भी मिल उन्थेय ,सब त्वे से ही त मिल ,
वा बात अलग चा ,
की त्वे थेय ख्वे कै ही  त मिल ,
जब भी हैंस्दी, वू खित खित ही हैंस्दी अब ,
ख़ुशी या उन्थेय ,त्वे थेय रूव्ये-रूव्येक ही त मिल ,

जू भी मिल उखुंण व्हि भोत छाई ,
वा बात अलग चा ,
की उंल फिर भी त्वे से कम ही पाई ,
जू भी मिल उन्थेय ,सब त्वे से ही त मिल ,
वा बात अलग चा , की त्वे थेय ख्वे कै  ही त मिल ,

वू देखणा छीन ,सुपन्या बड़ा बड़ा बल अज्ज्काल ,
वा बात अलग चा ,
दिन वूं थेय यु , त्वे से मुख -फेरीक ही त मिल ,
जू भी मिल उन्थेय , सब त्वे से ही त मिल ,
वा बात अलग चा , की त्वे  थेय ख्वे कै ही त मिल ,

उक्काल काटी कै, दौड़णा छीन सरपट वू  आज ,
क्या व्हाई त़ा , 
दिन यु उन्थेय, तेरी छाती म़ा खुट्टू धैरिक ही त मिल ,
जू भी मिल उन्थेय , सब त्वे से ही त मिल ,
वा बात अलग चा , की त्वे थेय ख्वे कै ही त मिल ,


बस ग्यीं आज प्रदेशु म़ा जाकी ,कैरि यलीं  बल महल खड़ा ,
क्या व्हाई त़ा ,
बूणं भी उन्थेय यु ,अपड़ा घार- गौं थेय उजाडिक  ही त मिल ,
जू भी मिल उन्थेय , सब त्वे से ही  मिल ,
वा बात अलग चा , की त्वे थेय ख्वे कै ही   त मिल ,


" गीत " तू बोडिक अई घार चम्म
भुल्ला,कैकी सिखा सैऱी नि करी
किल्लेय  की ख़ुशी 
युन्थेय ,सदनी धार पोर जाके ही त मिल   !
किल्लेय  की ख़ुशी  युन्थेय ,सदनी धार पोर जाके ही त मिल   !
 किल्लेय  की ख़ुशी  युन्थेय ,सदनी धार पोर जाके ही त मिल   !
 
रचनाकार : गीतेश सिंह नेगी, सिंगापूर प्रवास से, सर्वाधिकार सुरक्षित

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