कक्ख छाई और अब कक्ख चली ग्यों मी
फर्क बस इत्गा च की अब अणमिल्लू सी व्हेय ग्यों मी
बगत आई जब जब बोटणा कु अंग्वाल त्वे पर
फुन्डेय-फुन्डेय उत्गा और व्हेय ग्यों मी
कक्ख छाई और अब कक्ख चली ग्यों मी ?
कबही बैठुदू छाई रोल्युं की ढुंगयुं म़ा
तप्दु छाई तडतुडू घाम,त्यारू गुयेर बन्णी की
बज़ांदु छाई बांसोल ,और लगान्दु छाई गीत
सर -सर आंदी छाई हव्वा डांडीयूँ की तब वक्ख
बगत बगत मेरी भी भुक्की पिणकु
अब बैठ्युं छोवं यक्ख , समोदर का तीर यखुली
जक्ख आण वालू पान्णी ,चल जान्द हत्थ लगाण से पहली
खुटोवं थेय डमाकि ,जन्न भटेय बोल्णु ह्वालू
अप्डू बाटू किल्लेय बिरिडी ग्यो तुम
" गीत " क्या छाई और बेट्टा क्या व्हेय ग्यो तुम ?
रेन्दू छाई मी भी स्वर्ग म़ा कबही
हिवांली डांडी कांठीयूँ का बीच
बांज ,बुरांस ,फ्योंली ,सकनी,कुलौं
सब दगडिया छाई म्यारा
लगाणु रैंदु छाई फाल डालीयूँ -पुन्गडियूँ म़ा तब
अट्टगुदू छाई गुन्णी बान्दर सी बन्णीक
पीन्दु छाई तिस्सलू प्राण म्यारु भी पांणी
हथ्गुलियुंल धारा-पंधेरौं कु
अब रेन्दू अज्ज्काला की बहुमंजिली बिल्डिंग म़ा
द्वार भिचोलिक,लिणु छोवं स्वांश भी अब वातानुकूलित व्हेकि
और विकलांग सी भी व्हेय ग्युं जरा जरा मी अब
किल्लेय कि बगत नि मिलदु अब ,भुन्या खुटू धैरिक हिटणा कु
क्या छाई और अब क्या व्हेय ग्यों मी
फर्क बस इत्गा च की अब अणमिल्लू सी व्हेय ग्यों मी
अ हाह क्या दिन छाई वू भी
जब खान्दू छाई थिचोन्णी अल्लू मूला की मी
सौन्लौं कु साग पिज्वडया , गुन्द्कौं म़ा घीऊ -नौणी का
चुना की रौट्टी खान्दू छाई, रेन्दू छाई कित्लू बैठ्युं सदनी चुलखांदी म़ा
लपलपान्दू छाई जब जीभ सरया दिन डांडीयूँ म़ा
बेडू,तिम्ला ,हिन्सोला-किन्गोड़ा और भमोरौं दगडी
फिर चढ़चुडू घाम म़ा कन्न चुयेंदी छाई गिच्ची
मर्चोण्या कच्बोली का समणी
अब खान्दू मी बर्गर ,डोसा ,पिज्जा और सैन्डविच बस
पिचक ग्या ज़िन्दगी भी अब सैद सैन्डविच सी बन्णी की
और मी देख्णु छोवं चुपचाप खडू तमशगेर सी बन्णी की
समोदर का ये पार भटेय सिर्फ देख्णु और सोच्णु
कन्नू व्हालू म्यारु पहाड़ अब
बदल ग्ये होलू सैद वू भी मेरी ही तरह से ?
बदल ग्ये होलू सैद वू भी मेरी ही तरह से ?
रचनाकार : गीतेश सिंह नेगी ,सिंगापूर प्रवास से ,सर्वाधिकार सुरक्षित
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