ब्याली अचान्चक से लमड्डी गयुं मी एक जग्गाह मा
अलझि गयौं सडाबड़ी मा एक ढुंगा से
और व्ये ग्यूं चौफुंड वक्खी मा
चोट की पीड़ा बहुत व्हये
और अचानक मिल ब्वाल
औ ब्वई मोर गयुं मी
झन्णी जैक्कू म्वाड़ म्वार होलू
कैल धार होलू यु ढुंगु यम्मा ?
थोड़ी देर मा व्हेय ग्या सब ठीक
पर व्ये ढुंगा की ढसाक से
मी रौं जम्मपत्त झन्णी कत्गा दिनों तक
और स्येद आज भी छोवं
किल्लेय की ढुंगा की चोट करा ग्या याद बचपन की
और कैर ग्या घाव हरा सम्लौंणं का
याद करा ग्या गौं का बाटा कु वू
वाडा कु ढुंगु
जू अल्झंणु रेहंदु छाई
रोज कै ना कै का खुटोउन फ़र
पर जेथे कुई रड्डा भी नि सकदु छाई
किल्लेइ की वू छाई "वाडा कु ढुंगु "
भोत गाली दीन्दा छाई आन्दा जान्दा लमडदरा लोग
व्ये ढुंगु थेय
पर झणी किल्लेय,मी अब सम्लाणु छोवं
व्ये वाडा कु ढुंगु थेय
जोडिकी हत्थ ,अस्धरियुं का साथ
जैल याद दिला देय मित्थेय
म्यारू बोगयुं और ख़तयूँ
निरपट पान्णी की खीर सु बचपन
अब जब भी जन्दू मी वीं सड़क का ध्वार से
ता सबसे पहली देखुदु व्ये ही ढुंगु थेय
और फिर मनं ही मनं
सेवा लगाई की बोल्दु
जुगराज रेए हे वाडा का ढुंगा
रए सदनी व्ये ही बाट मा
सम्लाणु रहे इन्ही हम्थेय
जू बिसिर ग्यें अपडा गौं कु बाटू
जू बिसिर ग्यें मेरा गढ़ -कुमौं कु बाटू
जू बिसिर ग्यें मेरा गढ़ -कुमौं कु बाटू
रचनाकार :गीतेश सिंह नेगी (सिंघापुर प्रवास से ),२०-१०.१०
(*सर्वाधिकार सुरक्षित )
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