हिमालय की गोद से

हिमालय  की  गोद  से
बहुत खुबसूरत है आशियाना मेरा ,है यही स्वर्ग मेरा,मेरु मुलुक मेरु देश

Saturday, October 2, 2010

गढ़वाली कविता : ह्यूं की खैर


तेरी  जिकुड़ी की सदनी त्वे मा राई,
मेरी जिकुड़ी की सदनी मै  मा ,
बाकी रैं इंन्हे फुन्डे मूक लुकाणा  मा,
और सरकार भी राहि फिर  सदनी  सर्कसी मज्जा ठट्टऔं मा,

" गीत" तू किल्लेय छे खोल्युं सी बगछट मा !
भण्डया नि सोच य्क्ख ,
जैल भी स्वाच वू  बस  सोच्दैई गाई,
जैल भी स्वाच वू  बस  सोच्दैई गाई,

हुणा खूण क्या नि ह्वेय सकदु य्क्ख ,
लेकिन वूंल हम्थेय सदनी फुटुयूं कस्यरा ही किल्लेय   थमाई?
सैद  कैल कब्भी  य्क्ख, पैली कोशिश ही नी काई ,
सैद  कैल कब्भी  य्क्ख, पैली कोशिश ही नी काई  ,

वू रहैं सदनी कच्वरना कुरुन्गुलू सी मी थेय  ,
पर तुमुल भी  कब्भी  इन्ह बीमारि की कुई  दवा दारू किल्लेय नि काई? 
जैल भी कच्वार  ,वू बस कच्वर दै गाई,
जैल भी कच्वार  ,वू बस कच्वर दै गाई


इन्न प्वाड रवाड यूं संभल-धरौं खुणं
जैल भी खेंड़  ये  पहाड़ थेय खड्डअल्लू    सी
वू आज तलक बस खेंड़ दै गाई,
वू आज तलक बस खेंड़ दै गाई,

हिंवाली डांडी  रैं रुन्णी  सदनी कुहलौं मा म्यारा मुल्क की
और वूं निर्भगीयूंल  ब्वाळ,
अजी बल  घाम आण से ह्यूं पिघ्लेये गाई !
अजी बल  घाम से ह्यूं पिघ्लेये गाई !
अजी बल घाम आण से ह्यूं पिघ्लेये गाई !

No comments:

Post a Comment