हिमालय की गोद से

हिमालय  की  गोद  से
बहुत खुबसूरत है आशियाना मेरा ,है यही स्वर्ग मेरा,मेरु मुलुक मेरु देश

Friday, October 22, 2010

गढ़वाली कविता : जय हो उत्तराखंड




गलदारौं की  
ठेकादारौं की
जय हो उत्तराखंड त्यारा समल्धरों की !

प्रधनौ की 
प्रमुखौं की  
जय हो उत्तराखंड त्यारा "जनं-प्रतिनिधियौं "  की !

भित्तर का बेरोजगारों की
बहेर्रा का रोजगारों  की 
जय हो उत्तराखंड उन्का लगन्दरों की !

नय साला का बढ़दा खर्चौं  की 
पुराणा पाँछि कर्जौं की 
जय हो उत्तराखंड त्यारा लुछधरौं की !

बज्दा घान्डों की 
खाली भांडों की 
जय हो उत्तराखंड त्यारा बड़ा बड़ा डामों  की !

बिस्गदी गंगा की
बोग्दी कच्ची- दारू का छानियुं की 
जय हो उत्तराखंड त्यारा घियु -दुधा का धारौं की !

टूटयाँ हैल-दंदुलोउन की
निकम्मा दाथी थमलोउन की
जय हो उत्तराखंड त्यारा अज्कल्य्या ब्वारी नौनौं की !
जय हो उत्तराखंड त्यारा अज्कल्य्या ब्वारी नौनौं की !

रचनाकार : गीतेश सिंह नेगी (सिंघापुर प्रवास से ),दिनांक २२-१०-१०  (*सर्वाधिकार  सुरक्षित )

Wednesday, October 20, 2010

गढ़वाली कविता : वाडा कु ढुंगु

                      
ब्याली अचान्चक से लमड्डी गयुं मी  एक जग्गाह  मा
अलझि गयौं सडाबड़ी  मा एक ढुंगा से
और व्ये ग्यूं चौफुंड वक्खी  मा  
चोट की पीड़ा  बहुत व्हये
और अचानक मिल ब्वाल 
औ ब्वई  मोर  गयुं  मी 
झन्णी जैक्कू म्वाड़ म्वार  होलू
कैल धार  होलू  यु  ढुंगु   यम्मा ?
थोड़ी देर मा व्हेय ग्या सब ठीक
पर व्ये ढुंगा की ढसाक से 
मी रौं जम्मपत्त झन्णी कत्गा दिनों तक
और स्येद आज भी छोवं
किल्लेय की  ढुंगा की चोट करा ग्या याद बचपन की
और कैर ग्या घाव हरा सम्लौंणं का
याद करा ग्या गौं का बाटा कु वू
वाडा कु ढुंगु
जू अल्झंणु रेहंदु छाई
रोज कै ना कै का खुटोउन  फ़र
पर जेथे कुई रड्डा भी नि सकदु छाई
किल्लेइ  की वू छाई "वाडा कु ढुंगु "
भोत गाली दीन्दा  छाई आन्दा जान्दा लमडदरा  लोग
व्ये ढुंगु थेय
पर झणी किल्लेय,मी अब सम्लाणु छोवं
व्ये  वाडा कु ढुंगु थेय
जोडिकी हत्थ ,अस्धरियुं का साथ 
जैल याद दिला देय  मित्थेय
म्यारू बोगयुं और ख़तयूँ
निरपट पान्णी  की खीर सु बचपन
 अब जब भी जन्दू मी  वीं  सड़क का ध्वार से
ता  सबसे पहली देखुदु व्ये ही ढुंगु  थेय 
और फिर मनं  ही मनं
सेवा लगाई  की  बोल्दु
जुगराज रेए  हे  वाडा का ढुंगा
रए सदनी व्ये ही  बाट  मा
सम्लाणु रहे  इन्ही  हम्थेय
जू बिसिर  ग्यें   अपडा गौं कु बाटू    
जू  बिसिर ग्यें  मेरा गढ़ -कुमौं कु बाटू  
जू बिसिर ग्यें    मेरा गढ़ -कुमौं  कु बाटू  

रचनाकार :गीतेश सिंह नेगी (सिंघापुर प्रवास से ),२०-१०.१० 
                (*सर्वाधिकार सुरक्षित )

Monday, October 18, 2010

गढ़वाली कविता : तिम्ला का फूल



ब्वारी कु गुलबंद
नाती की धगुली
नातिनी की झगुली
पतल्या भात
लिंगवड्या साग
चुल्हा  की आग
कस्य्यरा  कु पाणि
होली का गीत
बन्सुल्या गुयेर
दयें  का बल्द
गुठार्या गोर
पुंगड़ों कु मओल
शिकार की   बान्ठी
ब्वाडा की लान्ठी  
भंगुला का बीज
मुंगरी की पत्रोट्टी
गैथा का रौट्टा
घस्यरियौ का ठट्टा
कख गयीं सब
ख्वाजा धौं  !
नि मिलणा सयेद
किल्लेय की व्हेय गिन सब
अब बस " तिम्ला का फूल "
             " तिम्ला का फूल "
              " तिम्ला का फूल "

गढ़वाल मा पुंडीर राजपुतौं कु संक्षिप्त इतिहास :1

गढ़वाल मा पुंडीर  नेगी या पुंडीर रावत  जाति की  मूल उत्पत्ति का बारा मा चर्चा करणं  से पहली पुंडीर राजपूतों कु  सम्पूर्ण इतिहास  का बारा मा चर्चा  करण जरुरी चा जू भगवान श्री राम का पुत्र कुश का वंशज  छीन | पुंडीर सब्द की उत्पति रजा पुंडरिक   का नाम फ़र व्ह्याई जू बाद मा राज -पाट छोड़ छाडी की कुल्लू (हिमाचल प्रदेश ) मा चली ग्या छाई |
पुंडीर  सूर्यवंशी राजपूत हुन्दी जौंल नाह्न (हिमाचल ),सहारनपुर (जसमोर रियासत ) और उत्तराखंड प्रदेश का गढ़वाल क्षेत्र मा राज काई | यूँ की कुलदेवी राजस्थान और सहारनपुर मा माँ शाकुम्बरी देवी छीन जौं कु भव्य मंदिर जसमोर रियासात का बेहट क़स्बा मा विराजमान चा  जबकि गढ़वाल मा यूं की  कुलदेवी पुण्याक्षणी देवी   चा | परन्तु उत्तर भारत मा पुंडीर वंश की उत्पति  दक्षिण भारत  का तेलंग परदेश जू की आधुनिक तेलंगाना परेद्श ( प्राचीन पुण्डर रियासत ) का नाम से प्रसिद्ध च व्ह्याई जैका   प्रतापी राजा मंदोंखरदेव हुईं जू एक बार आधुनिक हरियाणा  परदेश का कुरुक्षेत्र मा भ्रमण खुण गईं तब सिंध परदेश का राजल  उन्थेय अपड़ी पुत्री कु विवाह कु प्रस्ताव दये  और बदला मा कैथल (आधुनिक हरियाणा कु एक जिल्ला ) कु क्षेत्र  उन्थेय  भेंट कार | उत्तर भारत मा पुंडीर राजपुतौं  कु असल   विकास राजा वंशधर का राज मा व्ह्याई जौंल  कैथल का समीप पूंडरी (आधुनिक पूंडरी ) और कुरुक्षेत्र का थानेसर (जो कन्नौज  का  राजा हर्ष -वर्धन की राजधानी भी राहि) मा अनेक किल्लूं कु निर्माण काई जैक्का  प्रमाण आज भी पुरातात्विक  रूप मा उपलभ्द छी |
आपकी जानकारी खुण यक्हम यु जिकर कर्णु जरुरी च क़ि पंजाब का भटिंडा  और आधुनिक हरियाणा का समांना ,करनाल , और अम्बाला पुंडीर राजपूतों का गढ़ रहिन और चौहान राजा पृथिवी राज  चौहान का राज मा पुंडीर राजपूतों थे प्रमुख अधिक्कार और सम्मान दिए ग्या | पुंडीर राजपूत मा चन्द कदम्बवासा  पृथिवी राज चौहान का प्रमुख  मंत्री  छाई ,वेकु भुल्ला चन्द पुंडीर सीमांत लाहौर क्षेत्र  मा सेना प्रमुख  छाई जबकि सबसे छोटू भुल्ला चन्द राय पृथिवी राज चौहान और मोहम्मद गौरी का बीच प्रमुख एतिहासिक ताराईन(आधुनिक तरावडी जू कुरुक्षेत्र का पास एक छुट्टू सी  क़स्बा चा और बासमती चौलं की खेती खूण  मशहुर चा) क़ि लड़ाई मा जनरल छाई | यूँ बातुन से या बात एक दम साफ़ चा क़ि इतिहास  मा पुंडीर राजपूतों थे अत्याधिक सम्मान प्राप्त  छाई जो क़ि उनकी राजपूती शान और वीरता क़ी परिचायक चा .
 मुग़ल शासक शाहजहाँ का काल मा  गंगा और जमुना का बीचा कु भाग ( दोआब ) का मऊ क्षेत्र मा पुंडीर राजा जगत सिंह पुंडीर प्रतापी राजा  छाई जौन औरंगजेब क़ी बगावत कु फायदा उठाकी मुग़ल शासन का खिलाफ बगावत कु बिगुल बजा देय और अपड़ी छुट्टी सी सेना से मुगलों थे युद्ध मा धुल चटाई दये .ये  का अलवा अलीगढ मा पुंडीर राजा धमर सिंह पुंडीर प्रतापी राजपूत वहीं जौलं बिजैगढ़ किल्ला कु निर्माण कार .अठारवीं सदी मा पुंडीर राजपूतों और अंग्रेज सेना मा भीषण युद व्ह्याई जै मा अंग्रेजओउन  थे विजय प्राप्त व्हाई और बिजैगढ़ कु किल्ला  फर अंग्रेजओउन  कु कब्ज़ा व्हेय ग्या.येक्का अलवा मनहर  खेडा  (आधुनिक जलालाबाद जू क़ी मुज्ज़फरनगर और सहारनपुर का बीच एक क़स्बा चा)  मा पुंडीर राजपूत मनहर सिंह पुंडीर का अधीन  छाई जौन क़ी कुल देवी मा शाकुम्बरी का मंदिर मा सड़क निर्माण का कारण मुग़लओउन दगड  बिगड़ी ग्या और जै क़ी कीमत उन थे मनहर गढ़ कु किल्ला  गवांणं प्वाड़ .अलीगढ का नज़दीक अकराबाद क्षेत्र भी पुंडीर राज्पुतोउन का अधीन राहि और सोलवीं सदी मा रोहन सिंह पुंडीर न रोहाना  सिंहपुर (आधुनिक रोहाना  ) क़ी स्थापन्ना काई .
सहारनपुर क्षेत्र  मा जसमोर रियासत जू की पुंडीर राज्पुतौं की कुलदेवी शाकुम्बरी कु क्षेत्र च,  गढ़वाल का पुंडीर नेगी और पुंडीर रावतों का मूल क्षेत्र चा |  आधुनिक पश्चिमी  उत्तर परदेश का सहारनपुर जनपद मा आज भी बेहट ,नानोता   और छुटमलपुर और निकटवर्ती क्षेत्र  मा पुंडीर राजपूतों का कयी गौं छि और सहारनपुर  नगर से ४० कि.मी पूर्व दिशा मा जसमोर गौं का नजदीक माँ शाकुम्बरी देवी कु मंदिर चा जू पुंडीर राज्पुतौं की कुल देवी चा .लोक कथाओं का अनुसार माँ दुर्गा ल यक्ख  महिसासुर  कु वध  करण से पहली १०० साल तक तप कार और हर मास का अंत मा वुन बस फलाहार कार छेई .एय कारण से दुर्गा कु नाम शाकुम्बरी अर्थात (शाक का आहार करण वल्ली ) पोड़ ग्य्याई .ऐय  मंदिर से एक क़ि . मी  पहली बाबा भूरा देव (भेरों ) कु मंदिर चा जौन का बार मा एन्न बोल्दी क़ि  वू तप का दौरान देवी क़ि रक्षा कन्ना चाई . देवी  का दर्शन से पहली आज भी लोग पहली बाबा  भूरा  देव का मंदिर मा पूजा कन्ना कु जंदी ,  उन शाकुम्बरी देवी कु दुसुरु  मंदिर आधुनिक राजस्थान  का जयपुर शहर से ९० क़ि.मी दूर एक एक लूणया  पानी क़ि झील (सांभर झील ) का तीर  भी विराज्म्मान चा जू त-करीबन १३३० साल पुराणु मानने जांद.एय मंदिर का बारा मा बुली जांद क़ि एक बार देवी ल खुश  हवे क़ि पहाड़ी  जंगल थे चाँदी का मैदान मा बदल द्याए पर भगत लोगों ल  ऐय  थे देवी कु हंकार समझक़ि  व्हींकी पूजा सुरु कार और विनती करण बैठ गईं  तब देवी ल  प्रसन व्हेय क़ि चाँदी थे लूण मा बदल दई जो क़ि आज भी झील का पानी मा मिलद .
गढ़वाल मा  प्रतापी पुंडीर  राजा वत्सराज देव वहीं जै क़ी राजधानी मायापुर (आधुनिक हरिद्वार )  छाई.चूँकि मायापुर पूरण जम्ना से ही एक प्रसिद्ध धार्मिक क्षेत्र  छाई एल्ले मुग़ल और अन्य आक्रमणकरियौं  क़ी बुरी नज़र सदनी मायापुर जन्ने लगीं राहि और व्हेय क़ी भारी कीमत मायापुर थे चुकाणी प्वाड़ नासिर- उद- दिन मोहम्द और वेक बाद तेमूर का भयानक आक्रमण से ज्यालं ऐय  क्षेत्र मा पुंडीर राज्पुतौं  कु अधिपत्य समाप्त हवे गेई .
 लगभग १८ वी  सदी मा   गढ़वाल का राजा ललित शाह  छाई जौलं देहरादून का १२ गौं राणा गुलाब सिंह पुंडीर थे अपड़ी नौनी  का हाथ दगडी सौंप दी अगर सच बुल्ले जा एय उनकी कोशिश  छाई वे क्षेत्र  मा राज्पुतौं और गुर्जर बिद्रोल थेय  कम कन्ना क़ी | राज़ा ललित शाह का द्वी नौंना छाई (१) जयकृत शाह (२) प्रदुम्न  शाह
अठारवीं सदी मा जयकृत शाह और  प्रदुम्न  शाह   क़ी आपसी मन मुटाव कु लाभ गोरखों न  उठाई और उन श्रीनगर पर आक्रमण करी द्याई.राजा प्रदुम्न  शाह थे श्रीनगर भट्टे पलायन करण  प्वाड़  पर उन् हार  नि मानी और पुंडीर राज्पुतौं,रांगड़ राज्पुतौं और गुर्ज्जर सेना का साथ खुदबुडा का मैदान मा पहुँच गयें  .ऐय  युद्ध मा राजा का द्वी भाई और द्वी राजकुमार सुदर्शन शाह और देवी सिंह भी लडीं पर दुर्भाग्य बस एय युद्ध मा   राजा प्रदुम्न  शाह थे अपना प्राण गवांण प्वडी.
काल-अंतर मा ब्रिटिश सेना क़ी मदद से गोरखों थेय खदेड़ना का  बाद दून क्षेत्र पुंडीर राज्पुतौं का अधिपत्य मा ही राहि  |
गढ़वाल मा चौन्दकोट पट्टी मा और अन्य क्षेत्र मा आज भी पुंडीर रावतुं और पुंडीर नेगियौं का गौं राजी -ख़ुशी बस्यां  छीन  |
हालांकि अभी पुंडीर रावत और पुंडीर नेगी गढ़वाल मा कख कख बस्यां छें मी ठीक से नि बोल सकदु पर मेरी जानकारी का हिसाब से  चौन्दकोट पट्टी का रिटेल गौं मा पुंडीर रावत  बस्यां छी| जू क्वाला (बौन्द्र ) से रिटेल मा आकी बसीं उन् पौड़ी मा  पुड्यर गौं मा भी पुंडीर राजपूत बस्यां छी और मेरी जानकारी से पुड्यर  नाम पुंडीर जाति का   कारण से ही  प्वाडू होलू |
मी थेय  उम्मीद च की ऐय का अलावा भी गढ़वाल या कुमौं  मा पुंडीर राजपूत बस्यां व्हाला पर मेरी जानकारी अभी ऐय मामला माँ एत्गा तक ही सिमित चा और सायेद कुछ समय बाद ऐय बार मा मी अधिक जानकारी आप लोगौं दगड बाँट सकूँ |
आज भी सहारनपुर का निकटवर्ती क्षेत्र मा पुंडीर राजपूत ,सामाजिक,आर्थिक और राजनीतिक  रूप से सक्रिय  छी |ये का अलावा रायल  गढ़वाल  रायफल से लेकर कारगिल युद्ध मा भी गढ़वाल और सहारनपुर क्षेत्र  का पुंडीर राजपूत समय-समय समय फर अप्डू इतिहास दोहराणा रैं |

आखिरी  मा मी ऐय निष्कर्ष फर औं  और मान सकदु   क़ी पुंडीर नेगी और पुंडीर रावत मूल रूप से सहारनपुर का ही पुंडीर राजपूत छी जौं कु विस्तार तेलंग प्रदेश से लेकर राजस्थान,पंजाब ,हरियाणा ,दोआब क्षेत्र सहारनपुर और देहरादून राहि |


* उपरोक्त जानकारी थेय केवल आदान प्रदान मा प्रयोग का वास्ता लिये जाव,जू मिल विषय मा रूचि का कारण  विगत कुछ वर्षो मा सहारनपुर ,मनहर -खेडा ,जस्मोर, बेहट ,छुट-मलपुर ,सरसावा व नानोता  क्षेत्र  का अपणा दोस्तों व कुरुँक्षेत्र मा अपडा छात्र काल मा पूंडरी ,अम्बाला ,कैथल ,थानेसर ,करनाल,समाना आदि  स्थानों का भ्रमण  व   सहारनपुर  मा अनेक बार माता शाकुम्बरी का दर्शन से विभिन्न लोगो से जुटाई |ऐतिहासिक विवरण अध्यन का विभिन्न माध्यमों(अखबार,पत्रिका,और अन्य ) से छें |उपरोक्त जानकारी कक्खी  मा या  बहुत  सी जगहों मा गलत भी व्हेय सकद  पर साथ मा  मी आपसे आशा भी करदू की  इंयी दिशा मा आपकू  ज्ञान और सहयोग  सायेद हम सबही थेय  पुंडीर रावतोउन और पुंडीर नेगी जाति का लघु   इतिहास की इंयी श्रंखला थेय एथिर बढाना मा सहयोग कार  |

Friday, October 15, 2010

गढ़वाली कविता : उक्ताट


अब्ब्ही भी बगत चा
आवा हम दगडी चितेई जौला
न्थरी भोल दगडी  फट्टा  सुखोला
पहली कारू छाई एक आन्दोलन घमासान
व्हे  गयीं कत्गा शहीद, खाई   की छाती और कपाल फ़र लट्ठा -गोली
तब हम ही  जीतो  ,किल्लेय की तब  हम एक छाई
भोल  एक और आन्दोलन ना करण प्वाडू कक्खी  फिर हम्थई ?
आन्दोलन अपड़ा आप थेय बचाणा कु
आन्दोलन अप्ड़ी भाषा और रिवाज़ों थेय सम्लाणाकू
आन्दोलन थोल म्य्लों थेय बचाणा कु
आन्दोलन अरसा,स्वआला, मीठू भात  बचाणा खूण
आन्दोलन ढोल दम्मो  ,निसाणं और तुर्री थेय बचाणा खूण
आन्दोलन घार- गौं और गुठ्यारों थेय बचाणा खूण
आन्दोलन  हैल- दंदलू  दाथि और निसुड़ थेय बचाणा खूण
गीत बाजूबंद,थडिया ,चोफ़ुला और मांगलों  थेय बचाणा खूण
बांज ,बुरांस ,हिसोला -बेडू ,तिम्ला और काफल  थेय बचाणा खूण
पर तब भोत मुंडारु व्हे जाण छुच्चो
किल्लेय ?
जरा स्वाचा?
कैमा जाण और कई दगड़ लड़ण वा  लडई ?
कन क्य्ये    जितण, हेर्री की अपणाप से त्भ?
क्या बोलण की  नि के साकू   इंसाफ हमुल अप्ड़ी ही  जन्म भूमि  दगडी  ?
नि सँभाल साका हम अप्ड़ी ही संस्कृति थेय ?
तब नि लग्गणा  तुम से वू जन गीत भी आन्दोलन का
जू लगायी और कन कन के पाला पोसा छायी
उंल  जो आज बन गयीं देबता आगास मा
भेंट गईं हम्थेय एक विरासत
जू नि पचणी चा  आज   हमसे ?
इल्लेइ  ता मी  बुनू छोवं
आवा हम दगडी चितेई जौला
गर  चितेई जौला बगत से
ता सयेद बणा  द्युन्ला
अपड़ा सुपिनो  कु "उत्तराखंड "
ता सयेद बणा  द्युन्ला
अपड़ा सुपिनो  कु "उत्तराखंड "




रचनाकार :गीतेश सिंह नेगी (सिंघापुर प्रवास से )

Thursday, October 7, 2010

"कब तक मौन रहोगे ? "



जटिल प्रश्न
शंका कठोर
संग  ह्रद्य का अंतरद्वंद
आखिर तुम कब तक मौन रहोगे ?

                                                             उलझन विचित्र
                                                            घनघोर अँधेरा
                                                            संग मन चंचल यौवन
                                                           आखिर तुम कब तक मौन रहोगे ?

अंतस की पीड़ा
विस्मय का बोध
खोल पाश  मोह-माया के
आखिर तुम  कब तक मौन रहोगे ?

                                                          अनंत अथाह संघर्ष
                                                          कर जिजिवेच्छा
                                                          तोड़ भ्रम के पैमाने मनं
                                                          आखिर तुम कब तक मौन रहोगे ?

करुण क्रंदन
जिह्वा का कम्पन्न
अब छोड़ ह्रद्य का भी स्पंदन
आखिर तुम कब तक मौन रहोगे ?

                                                                 उठ प्रचंड
                                                                हो सिंह गर्जना
                                                                कर प्रतिकार का शंख -नाद
                                                              आखिर तुम कब तक मौन रहोगे ?
संघर्ष  अनवरत
हो विजय अटल
चल न्याय का  उठा खडग
आखिर तुम कब तक मौन रहोगे ?
 




Sunday, October 3, 2010

" पुकारते गीत "



मेरे  गीत और मेरी गजल, तुम्हे आवाज  लगाने आयेंगे  
शायद  तुम ना पहचान पाओ,मेरे अतीत को भी
वो  कल  तुम्हे बीते लम्हों की ,याद दिलाने आएंगे
मेरे  गीत और मेरी गजल, तुम्हे आवाज  लगाने आयेंगे


जिन रास्तौं  से भटकी हुए हो तुम अभी ,प्यार के ऐ - बेवफा
मोहब्बतकशों के पिछले निशाँ,तुम्हे मंजिल दिखाने आयेंगे
मेरे  गीत और मेरी गजल, तुम्हे  आवाज लगाने आयेंगे  

स्याह रात के सन्नाटो में अक्सर,जब मैं खो जाता हो तन्हाई में
ऐसे में  सुखद स्वप्न मेरे ,बेशक तुम्हारी नींद उड़ाने आयेंगे
मेरे  गीत और मेरी गजल, तुम्हे आवाज  लगाने आयेंगे

मेरे दिल का पता भी ,तुम बेशक  भुला दोगे कल तलक
ऐसे में  जज्बाती ख़त मेरे ,तुम्हे मेरा पता बताने आयेंगे
मेरे  गीत और मेरी गजल, तुम्हे आवाज लगाने आयेंगे

मेरी यादौं के जनाजे पे ,तू  बेशक  ना आये ऐ - बेवफा
तेरी बेवफाई की अर्थी को ,मेरे ख्वाब हर- हाल  कन्धा देने आयेंगे
मेरे  गीत और मेरी गजल, तुम्हे आवाज  लगाने आयेंगे
मेरे  गीत और मेरी गजल, तुम्हे आवाज  लगाने आयेंगे
मेरे  गीत और मेरी गजल, तुम्हे आवाज  लगाने आयेंगे

Saturday, October 2, 2010

गढ़वाली कविता : ह्यूं की खैर


तेरी  जिकुड़ी की सदनी त्वे मा राई,
मेरी जिकुड़ी की सदनी मै  मा ,
बाकी रैं इंन्हे फुन्डे मूक लुकाणा  मा,
और सरकार भी राहि फिर  सदनी  सर्कसी मज्जा ठट्टऔं मा,

" गीत" तू किल्लेय छे खोल्युं सी बगछट मा !
भण्डया नि सोच य्क्ख ,
जैल भी स्वाच वू  बस  सोच्दैई गाई,
जैल भी स्वाच वू  बस  सोच्दैई गाई,

हुणा खूण क्या नि ह्वेय सकदु य्क्ख ,
लेकिन वूंल हम्थेय सदनी फुटुयूं कस्यरा ही किल्लेय   थमाई?
सैद  कैल कब्भी  य्क्ख, पैली कोशिश ही नी काई ,
सैद  कैल कब्भी  य्क्ख, पैली कोशिश ही नी काई  ,

वू रहैं सदनी कच्वरना कुरुन्गुलू सी मी थेय  ,
पर तुमुल भी  कब्भी  इन्ह बीमारि की कुई  दवा दारू किल्लेय नि काई? 
जैल भी कच्वार  ,वू बस कच्वर दै गाई,
जैल भी कच्वार  ,वू बस कच्वर दै गाई


इन्न प्वाड रवाड यूं संभल-धरौं खुणं
जैल भी खेंड़  ये  पहाड़ थेय खड्डअल्लू    सी
वू आज तलक बस खेंड़ दै गाई,
वू आज तलक बस खेंड़ दै गाई,

हिंवाली डांडी  रैं रुन्णी  सदनी कुहलौं मा म्यारा मुल्क की
और वूं निर्भगीयूंल  ब्वाळ,
अजी बल  घाम आण से ह्यूं पिघ्लेये गाई !
अजी बल  घाम से ह्यूं पिघ्लेये गाई !
अजी बल घाम आण से ह्यूं पिघ्लेये गाई !