हिमालय की गोद से

हिमालय  की  गोद  से
बहुत खुबसूरत है आशियाना मेरा ,है यही स्वर्ग मेरा,मेरु मुलुक मेरु देश

Friday, May 21, 2010

" फ़रियाद "

उनकी चाहत में इतना मसरूफ रहता हूँ
की आह भरने की भी अब फुर्सत नहीं
और वो जालिम कहते हैं !
की हमसे अब क़द्र - ऐ - मुहबत नहीं होती

ता उम्र चले पैदल मुसाफिर बनके जिनकी खातिर
वो सरेआम कहते हैं की दिल को उनके अब
कदमो आहट हमारी नहीं आती

मंदिरों ,मस्जिदों और ना जाने कहाँ-कहाँ
जिनकी चाहत में मांगी थी हमने मन्नतें
वो रुस्वा है !
वो रुस्वा है !
सुना है खुदा पर भी वो अब यकीं नहीं करते
सुना है खुदा पर भी वो अब यकीं नहीं करते



BY : Geetesh Singh Negi "

2 comments:

  1. waaah, bhai next time bewaafi pe likha, eager to hear it frm . . . . .

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  2. ... it was awesum n very deep n beautiful creation.. keep writing.. !! :)

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