" प्रश्नचिन्ह "
रात क्या होती है ? और क्यूँ इसमे घना अँधेरा होता है ?
वर्षों सोचते रहे हम पर पता नहीं चलता
पता तब चलता है जब कहीं सवेरा होता है
मनुज तुम सुंदर दिखते हो मुखौटों में भी पर ?
मन के दर्पण में देखो तो खुद का पता चलता है
सच क्या होता है ? और कैसा होता है ?
झूठ के महलौं में ठहरो कभी तो पता चलेगा !
कैसा सच के झोपडों का सुहावना शहर होता है
कैसा सच के झोपडों का सुहावना शहर होता है
नदी ,झरने,सागर बहते है सभी मगर क्यूँ ?
कभी संघर्ष खुद से करो तो पता चलता है
इच्छायें क्या होती है ?और आखिर होती है क्यूँ ?
मुट्ठी भर रेत लो हाथो में और देखो फिर क्या होता है ?
जिंदगी एक सफ़र है ,एक लम्बा सफ़र ,जिसका पता नहीं चलता
पता तब चलता है जब इसमे तू अकेला हमसफ़र होता है
अकेला तू ही नहीं तन्हा इस दुनिया में " गीत "
महसूस तब होता है जब कहीं तन्हाइयों का मेला सजता है
महसूस तब होता है जब कहीं तन्हाइयों का मेला सजता है
महसूस तब होता है जब कहीं तन्हाइयों का मेला सजता है
very impressive! keep it up negi ji.
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