" जज्बात "
लब्ज़ झूठे और जज्बात अधूरे लगते हैं ,
तेरी चाहत बिना अब सब ख्वाब अधूरे लगते हैं
अब भी ताकता हूँ टूटे दरवाजे की चोखट को मैं ,
बेशक दिन इंतजारी के लाचार कटते हैं
वो सजते भी हैं, और सवरतें भी हैं ,
और तेरा जिक्र भी करते हैं ऐ दिल-ऐ नादान
पर अफ़सोस ,पर अफ़सोस !
हाल ऐ दिल बयाँ "आईना " से करते हैं
सुना है अब वो लोग जलते हैं ,
जो कल तक तेरे रहनुमा थे "गीत "
तेरी खामोशियौं का जिक्र वो,
अब सरे बाज़ार करते है
तेरी खामोशियौं का जिक्र वो,
अब सरे बाज़ार करते है
BY : Geetesh Singh Negi
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