हिमालय की गोद से

हिमालय  की  गोद  से
बहुत खुबसूरत है आशियाना मेरा ,है यही स्वर्ग मेरा,मेरु मुलुक मेरु देश

Friday, May 14, 2010

" रुस्वाईयां "





बरसों पहले एक सुबह , वो रुस्वा होकर गया
साँझ तक लौट आता , तो उसका क्या चला जाता
नींद भी आती नहीं मुझको ,अब उसके ख्यालौं से
ख्याल इतना भी उसको आ जाता , तो उसका क्या चला जाता

वो दिल- ये -आईना हैं ,ऐसा लोग कहते हैं
मेरा चेहरा उसमे निखर आता, तो उनका क्या चला जाता
उनके इंतेजार में हमने ,यूँ तन्हा उम्र काटी है
एक लम्हा संग गुजर जाता , तो उनका क्या चला जाता

वो शख्स जो भरी महफिल में मुझको छोड़कर तन्हा
खामोश ही लौट आया था
वो हाल -ए -दिल बयाँ कर जाता ,तो उसका क्या चला जाता
वो हाल -ए -दिल बयाँ कर जाता ,तो उसका क्या चला जाता
वो हाल -ए -दिल बयाँ कर जाता ,तो उसका क्या चला जाता

2 comments:

  1. God bless you my dear.....naturally talented creative and innovative....keep discovering your self and world too.....carry on your travel path

    with lots of love,
    JP Bhai

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