हिमालय की गोद से

हिमालय  की  गोद  से
बहुत खुबसूरत है आशियाना मेरा ,है यही स्वर्ग मेरा,मेरु मुलुक मेरु देश

Sunday, April 12, 2015

विश्व प्रसिद्ध कवियों की कविताओं का गढ़वाली भाषा अनुवाद श्रृंखला : गोपाल दास "नीरज "'



गोपाल दास  "नीरज "'  की ग़ज़ल  का गढ़वाली भाषा अनुवाद
 गोपाल दास  "नीरज "' को सादर समर्पित उनकी एक गजल   का गढ़वाली भाषा अनुवाद
                          अनुवादक : गीतेश सिंह नेगी 

अबा  दौ  सौण  मा शरारत या मी  दगडी व्हाई 
म्यार घार  छोड़िक बरखा सर्या मुल्क मा व्हाई 

आप ना पूछा क्या बीत हम फर सफर मा ?
आज तलक हमरी अफ्फी से भेंट  नि  व्हाई 

हर गलत मोड़ फर टोकणु  च कुई मिथेय 
एक बाच तेरी जब भटेय मी  दगडी व्हाई 

मिल स्वाच की म्यार मुल्कै हालत क्या च 
एक गुनाहगार  दगडी तब्बि मेरी भेंट व्हाई 


अनुवादक : गीतेश सिंह नेगी 

गढ़वाली कविता : वूंल बोलि

" वूंल बोलि "


वूंल बोलि 
भैज्जि जक्ख पांणि नि 
वक्ख पांणि पहुँचौला
जक्ख सड़क नि 
वक्ख गाडी  पहुँचौला 
जक्ख अस्पताल नि 
वक्ख डाक्टर  पहुँचौला
जक्ख इस्कूल  नि 
वक्ख मास्टर पहुँचौला 
जक्ख कुछ नि  च 
ब्वै का सौं वक्ख 
सब्बि  धाणी पहुँचौला
हमर  पाणि कन्नै  पैटि 
हमर सड़क कक्ख बिरड़ 
हमर डाक्टर बीमार च कि व्यबस्था 
हमर नौना फेल हूंयीं  की मास्टर 
ब्वै का सौं हम नि ज़णदा  
पर हाँ 
वू  दिल्ली -देहरादूण  तक पौंची गयीँ 
वूं  मा  सड़क ,पाणि ,गाडी ,डाक्टर ,मास्टर 
 सब्बि धाणी  छीं  आज 
इत्गा त हम बी जाणि ही ग्यो 



रचनाकार : गीतेश सिंह नेगी ,सर्वाधिकार  सुरक्षित 

विश्व प्रसिद्ध कवियों की कविताओं का गढ़वाली भाषा अनुवाद श्रृंखला : कतील शफ़ाई (3)

" कतील शफ़ाई " की शायरी का गढ़वाली भाषा अनुवाद
 " कतील शफ़ाई " को सादर समर्पित उनकी एक शायरी  का गढ़वाली भाषा अनुवाद
                    अनुवादक : गीतेश सिंह नेगी 


कक्खी  कुई औडळ  ना आ म्यारा बिद्रोल से 
डरदु  छौं  मी  त्यारा मुल्क़ै रस्मौं -रिवाज से 

लोग ब्वळदीं एक आदिमल अफ्फी  कैर यालि अप्डी  मौत 
वु बदला लिंणा जाणु  छाई बल ये समाज  से 

लिंण प्वाडलू प्रेम मा वफ़ा छोड़िक काम 

परहेज ये रोग मा  च बढ़िया ईलाज से 


ज्यू ब्वळद  वींका बाटा मा  रौं  खडू 
ये चक्कर मा हम बी गाई  काम -काज से 

क्वी नशा मा नी छुपौन्दू  सच थेय "क़तील "'
शामिल  मी बी छौं ,कछडियूं मा  झाँझीयूँ की आज  से 

अनुवादक : गीतेश सिंह नेगी

Saturday, April 11, 2015

विश्व प्रसिद्ध कवियों की कविताओं का गढ़वाली भाषा अनुवाद श्रृंखला : गोरख पाण्डेय

विश्व प्रसिद्ध कवियों की कविताओं का गढ़वाली भाषा अनुवाद श्रृंखला
 गोरख पाण्डेय की कविता का गढ़वाली भाषा अनुवाद

 
           तुम्थेय डैर च

हज़ार बरस  पुरणु  च वूंकू  गुस्सा 
हज़ार बरस पुरणी च वूंकि नफ़रात 
 मी त बस 
वूंका खत्याँ शब्दोँ थेय 
ढौल अर तुक  मा रलै की  लौटाणु छौं 
पर तुम्थेय डैर च  कि 
आग भड़काणू छौं 

अनुवादक : गीतेश सिंह नेगी   

Thursday, April 9, 2015

विश्व प्रसिद्ध कवियों की कविताओं का गढ़वाली भाषा अनुवाद श्रृंखला : कतील शफ़ाई (2)

               
विश्व प्रसिद्ध कवियों की कविताओं का गढ़वाली भाषा अनुवाद श्रृंखला

" कतील शफ़ाई " की शायरी का गढ़वाली भाषा अनुवाद
अनुवादक : गीतेश सिंह नेगी

                  हे भगवान

दर्दल भोर दे  मेरि  खुचली  हे भगवान
फिर चाहे मिथेय बौल्या बणा दे हे भगवान 

मिल कब्ब मंगिन त्वे  मा चाँद तारा
साफ़ दिल खुला आँखा दे हे भगवान 


सुर्ज सी एक चीज त देखि याल   हमुल 
अच्छेकि अब कुई  सुबेर दे  हे भगवान 

यत धरती का जख्मोँ फर धैर  दे मलहम 

या म्यारु दिल ढुंगु कै दे हे भगवान 

 अनुवादक : गीतेश सिंह नेगी