हिमालय की गोद से

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Wednesday, January 12, 2011

गढ़वाली व्यंग कथा : कुक्करा कु इंसाफ

                                                कुक्करा कु इंसाफ

नयार का पल छाल ,बांज ,बुरांश और कुलाँ की डालियुं का छैल एक भोत ही सुन्दर और रौंत्यलू  गौं छाई | गौं की   धार मा देबता कु एक मंदिर भी छाई  | उन् त गौं मा पंद्रह -बीस कुड़ी छाई पर चलदी बस्दी मौ द्वि- तीन  ही छाई एक छाई दिक्का बोडी की जू छेंद नौना ब्वारी का हुन्द भी गौं मा यखुली  दिन कटणी छाई और ज्वा रोग  से बिलकुल  हण-कट बणी छाई , दूसरी मौ छाई पांचू ब्वाडा की ,बिचरा द्वी मनखी छाई कुल मिला की ,बोडी और ब्वाडा ,आन औलाद त भगवान्  उन्का जोग मा लेख्णु ही बिसरी ग्या छाई और तीसरी मौ छाई जी बल झ्युन्तु काका की  की जू रेंदु छाई काकी और अपड़ी नौनी दगड मा |

 अब साब किल्लेय  की गौं मा मनखी  त भोत की कम छाई इल्लेय दिक्का  बोडी ल  एक कुक्कर पाल द्ये छाई , बोडी ल स्वाच कि एक त  कुक्कर धोखा नी द्यालू  ,दुसरू येका  बाना पर  द्वि गफ्फा  रौट्टा का  मी भी खौंलूँ   |
अब साहब कुक्कर थेय भी आखिर कैकू दगुडू चैणु ही छाई तब ,कुई नी मिलु त वेल मज़बूरी मा बिरलु और स्याल  थेय अप्डू दगड़या बणा देय,अब कैल बोलुणु भी क्या छाई अब ,सब अप्डू अप्डू मतलब से ही सही पर कुल मिल्ला कि  कटणा छाई अपड़ा अपड़ा दिन जन तन कैरी की  |

अब साहब दिक्का बोडी ल  भी  अपड़ी सब खैरी -विपदा का आंसू  भोटू कुक्कर मा लग्गा ही याली छाई ,बिचरु भोटू बोडी थेय अपड़ा नौना से भी जयादा मयालु लगदु छाई |

गौं कि धार मा देबता बांजा कि डाली मा अपड़ी खैर लगाणु छाई कि देख ले कन्नू  ज़मनू  आ ग्याई ये पहाड़ मा, ये  गौं मा ,कभी सूबेर शाम आन्द -जांद मनखियुं कु धुदरट ह्युं रेन्दु  छाई धार मा ,सूबेर शाम लोग- बाग़ मंदिर मा आन्दा जांदा छाई ,अपड़ा  सुख -दुःख ,खैरी -विपदा मी मा लगान्दा छाई ,मी भी सरया दिन मस्त रेन्दु  छाई | खूब आशिर्बाद-प्रेम दींदु छाई उन्थेय पर अब त मी भी अणमिलु  सी व्हेय ग्यु ,सालौं व्हेय ग्यीं मिथेय  भी यकुलांश मा ,मनखियुं थे देख्यां |

इन्नेह  बांजा कि डाली भी अपड़ी जिकड़ी कि खैर लगाण लग्गी  ग्या देबता मा  और वक्ख  ताल  पंदेरू भी तिम्ला कि डाली क समणी टुप- टुप रुण लग्युं छाई  | बिचरू अपडा ज्वनि का वू दिन सम्लाणु छाई जब वेक ध्वार नजदीक गौं की ब्वारी - बेटीयूँ की सुबेर शाम कच्छडी लग्गीं रेंदी छाई और एक आजकू दिन च  की  कुई  बिरडी की भी नी आन्दु वे जन्हे ? क्या कन्न यु दिन भी देख्णु रह ग्या छाई वेक भी जोग मा ?

 अचांणचक से द्वि दिन बाद दिक्का  बोडी  सदनी खुण ये गौं और भोटू थेय छोडिकी परलोक पैट्टी ग्या  छाई  |

अब साब बिरलु ठाट से डंडली मा ट्वटूगु व्हेय कि आराम से स्याल दगड गप ठोकणू  छाई पर भोटू कुक्कर दिक्का बोडी की मौत से बहोत दुखी छाई आखिर बोडी की खैरी -विपदा भोटू  से ज्यादा गौं मा और जंणदू  भी कु छाई ?
अचांणचक से भोटू ल भोकुणु शुरू कैर द्या | बिरलु थेय भारी खीज उठ ,वेक्की निन्द  ख़राब जू हुणी छाई,आखिर वेल कुक्कर खूण  ब्वाल - क्या व्हेय रे निर्भगी ,किल्लेय   भोकुणु  छाई सीत्गा जोर से  ?
श्याल और मी त त्यारा दगडया  व्हेय ग्योव अब ,और इन् तिल क्या देखि याल पल छाल भई की खडू व्हेय की गालू चिरफड़णू छेई तू ? 

कुक्कर ल  ब्वाल-  यार तू  भंड्या चकडैती ना कैर मी दगड  मिल एक  मनखी सी  द्याखू छाई पल छाल अब्भी
बिरलु और स्याल  चड़म से उठी की कुक्कर क समणी आ ग्यीं और पल छाल देखण लग्गी ग्यीं
 बिरोला ल थोड़ी देर मा कुक्कर का कपाल  फर खैड़ा की एक चोट मार और ब्वाल - अरे छुचा क्या व्हेय गया त्वे थेय ?
मी और स्याल  त जाति का ही चंट  छोव पर निर्भगी तू  त कुक्कर छै कुक्कर ,कुछ त शर्म लाज कैरी  दी ,और कुछ ना त बोडी का रौट्टा की ही सही कुछ त एहसान मानी दी | जैखुंण तू भुक्णु क्या छै वू बोडी कु ही नौनु च रे सैद  बोडी की खबर सुणीक घार बोडिकी आणु च बिचरु

इत्गा सुणीक स्याल  भी रम्श्यांण लग्गी ग्या ,सैद कुक्कर ल स्याल  मा कुछ दिन पैली बोडी की खैरी ठुंगा याली छैय,  स्याल  ल ब्वाल अगर जू  मी दानु नी हुन्दु त सेय थेय आज गौं मा आणि नी दिंदु  ,पर क्या कन्न ?
बस जी फिर क्या छाई इत्गा  सुणीक कुक्कर ल जोर जोर से भुक्णु शुरू कैरी द्याई

स्याल  ल स्यू-स्यू ब्वाल और कुक्कर सरपट बोडी का  नौना का जन्हे अटग ग्या ?

लेखक : गीतेश सिंह नेगी ,सिंगापूर प्रवास से ,सर्वाधिकार सुरक्षित )

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