जिंदगी अब साँसों की मोहताज़ कहाँ रही ?
ख्वाबों में हो रहा है सफ़र -ए - ज़िन्दगी
इसमे अब वो खनक वो आवाज कहाँ रही ?
बंद आंखों के सुकून से देखते हैं अब हम उन्हे
पलके उठाने की भी हमे अब फुर्सत कहाँ रही ?
हवाओं में ढूंडते फिरते है अक्सर तब से उनको हम
सुना है जब से ज़मीं पर रखने की कदम खुदा से उनको इज्जाजत नहीं मिली
सुना है जब से ज़मीं पर रखने की कदम खुदा से उनको इज्जाजत नहीं मिली
रचनाकार :गीतेश सिंह नेगी (सिंगापूर प्रवास से,सर्वाधिकार सुरक्षित )
wow wat a creation...
ReplyDeletei like it...