हिमालय की गोद से

हिमालय  की  गोद  से
बहुत खुबसूरत है आशियाना मेरा ,है यही स्वर्ग मेरा,मेरु मुलुक मेरु देश

Friday, November 26, 2010

चलो कहीं एक ऐसा मकां बना डालें

चलो कहीं एक ऐसा आशियाँ  बना डालें 
न हो भेद अमीर - गरीब का जिसमे  
आओ  कहीं एक ऐसा जहाँ बना डालें                     
चलो कहीं एक ऐसा मकां बना डालें  
                        
ना जला सके जिसको कोई उन्माद में
ना झोंक सके जिसको कोई जेहाद  में 
आओ  कहीं एक ऐसा जहाँ बना डालें  
चलो कहीं एक ऐसा मकां बना डालें  

जिसकी खिदमत करे मिलकर सभी
हिन्दू -मुस्लिम- सिख-ईसाई
आओ एक ऐसा भगवान बना डालें
चलो कहीं एक ऐसा मकां बना डालें

ना पहुंचें  चाँद पर बेशक कदम,कोई शिकवा नहीं 
हो कद्र इन्सान को इन्सान की  बस बहुत इतना 
कहीं एक ऐसा भी  इन्सान  बना डालें
चलो कहीं एक ऐसा मकां बना डालें
 
जहाँ ना बिकती हो सरे-आम इंसानियत की इज्ज़त-आबरू
और ना लगतीं हो बोलियाँ ईमान  की 
आओ कहीं एक ऐसा जन्नती बाज़ार बना डालें
 चलो कहीं एक ऐसा मकां बना डालें

रचनाकार :( गीतेश सिंह नेगी ,सिंगापूर प्रवास से,दिनांक २६--१०-१० ,सर्वाधिकार-सुरक्षित )

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