बेबस हालातों को
खामोश बातों को
मौन अपराधों को
भ्रष्ट सरकारों को
चीखते घोटालों को
अंधे कानून की
गूंगी-बहरी अदालतों को
आओ तिलांजलि दें !
गिरते जमीर की
उठती दिवारों को
बिखरते चरित्र की
ढहती आधुनिक इमारतों को
बिकती इंसानियत के
सस्ते बाजारों को
लुटते गरीबों की
डरी सहमी सी आवाजों को
आओ तिलांजलि दें !
रचनाकार :गीतेश सिंह नेगी (सिंगापूर प्रवास से ,दिनांक २५.११.२०१०, सर्वाधिकार सुरक्षित )
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