हिमालय की गोद से

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बहुत खुबसूरत है आशियाना मेरा ,है यही स्वर्ग मेरा,मेरु मुलुक मेरु देश

Wednesday, September 15, 2010

गढ़वाली कविता : त्वे आण प्वाडलू

          "त्वे आण प्वाडलू   "

                         

रंगली बसंत का  उडी  जाण से पैल्ली
फ्योंली  और  बुरांश  का  मुरझाण से पैल्ली
रुमझुम  बरखा  का रुम्झुमाण  से पैल्ली
त्वे  आण प्वाडलू

बस्गल्या गद्नियुं का रौलियाँण से पैल्ली
डालीयूँ मा चखुलियुं का च्खुलियाँण से पैल्ली
फूलों फर भौंरा - पोतल्यूं का मंडराण से पैल्ली
त्वे  आण प्वाडलू

उलैरया  होली का हुल्करा
ख्वै जाण से पैल्ली
दमकदा  भेलौं का बग्वाल  मा
बुझ जाण  से पैल्ली
हिन्सोला  -किन्गोडा अर काफल
पक जाण से पैल्ली
त्वे  आण प्वाडलू

छुंयाल  धारा- पन्देरौं का बिस्गान से पैल्ली
गीतांग ग्वेर्रऊ का गीत छलै जाण से पैल्ली
बांझी पुंगडीयों का ढीस
खुदेड घुगती का घुरांण से पैल्ली
त्वे  आण प्वाडलू


मालू , गुईराल , पयां-कुलैं
बाटू  सार लग्यां
अर धै लगाणा त्वे
खुदेड आग  मा तेरी ,
उन्का फुक्के जाण से पैल्ली
त्वे  आण प्वाडलू

आज चली जा मीसै कत्गा भी दूर
म्यार   लाटा !
पर कभी मीसै मुख ना लुकै
पर जब भी त्वे मेरी  खुद लगली ,
त्वे मेरी सौं
मुंड उठैकी ,
छाती  ठोकिक
अर हत्थ जोडिक
त्वे  आण प्वाडलू
त्वे  आण प्वाडलू
त्वे  आण प्वाडलू

    रचनाकार : "गीतेश सिंह नेगी "  (सिंघापुर प्रवास से ,दिनाक १५-०९-१०) 

2 comments:

  1. Geetesh bhai ji bahut sundar.. bahut badhiya.. bahut acchhu likhi aapan bas eni hi likhdi jayan. bahut badhiya likhdan chha aap.

    vinod Jethuri

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  2. Sach, bahut hi achhu likhie chha aapan. Bahut hi sundar.. likhdi ja mera pahad ka kavion.. taki lukara bhitar apara garhwal ka parti prem kam na ho saku

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